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चीन की अल्पसंख्यक जाति

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सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2004-10-19 10:19:56    
चीन की लीसू जाति -- दो

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चीन एक बहुजातीय देश है। चीन में कुल 55 अल्पसंख्यक जातियां हैं। लीसू जाति दक्षिण- पश्चिमी चीन के य्वन नान प्रांत की अल्पसंख्यक जातियों में से एक है। इस की जनसंख्या लगभग 6 लाख है, जो मुख्यतः नब च्यांग में केंद्रित है पर इस जाति के कुछ लोग ली च्यांग, दी छिंग, दा ली, द हुंग, छू श्योंग और पाओ शेन आदि क्षेत्रों में भी रहते हैं। य्वन नान प्रांत की वेईशी काउंटी चीन की एकमात्र लीसू जातिबहुल काउंटी है। चलिए आज चलें वेई शी और हासिल करें चीन की लीसू जाति की जानकारी।

चीन की अन्य अल्पसंख्यक जातियों की तरह, लीसू जाति के लोगों को नाच-गाना बहुत पसंद है। विवाह या फसल की कटाई के वक्त या फिर परम्परागत नववर्ष त्यौहार पर वे लोग खूब नाचते-गाते हैं। वेशी काउंटी की सुश्री ल्यू श्यो फींग ने बताया, लोग विशेष अवसरों पर नाचते हैं औऱ गाते हैं और साथ ही परम्परागत गाय प्रतिस्पर्द्धा, बास्केटबाल आदि खेल खेलते हैं। त्यौहार के समय गांव के सभी लोग इकट्ठे होकर एक साथ खाना खाते हैं।

लीसू जाति के लोग इस तरह के कार्यक्रम को फींग ह्वो कहते हैं।इसमें हर परिवार कुछ खाद्य, अनाज, मांस व शराब के साथ शामिल होता है। इस वक्त लोग आ छी मू क्वा नामक नृत्य भी करते हैं।

आ छी मू क्वा चीन के लीसू जातिबहुल क्षेत्र में प्रचलित पुराना लोकनृत्य है। उस का दूसरा नाम है बकरा नृत्य। लीसू जाति पहाड़ों पर रहती है, और बकरे उस के सब से अच्छे मित्र हैं। इसलिए, लीसू जाति के लोगों ने इस नृत्य की रचना की। आ छई मू क्वा नृत्य के अनुसंधान में लगी सुश्री ली छ्वू फांग ने कहा, आ छी मू क्वा नाचने के लिए आम तौर पर लगभग 100 नर्तकों की जरूरत होती है। शुरू में लोग धीरे-धीरे नाचते हैं और बाद में संगीत के तेज होने के साथ-साथ जल्दी-जल्दी।

सुश्री ली के अनुसार, आ छी मू क्वा नृत्य चरवाहों के जीवन को प्रतिबिंबित करता है।इस नृत्य के लिए किसी वाद्य की जरूरत नहीं होती और इसमें पुरुषव महिलाएं सब एक साथ नाचते हैं।

लीसू जाति चीन की एक ऐसी अल्पसंख्यक जाति है, जिस के पास अपनी लिखित भाषा भी है।

लीसू जाति की यह भाषा पुरानी व नयी दो किस्मों की है। कहा जाता है कि वर्ष 1923 में वेई शी काउंटी के ये जी जिले के शिन रे गांव के किसान वारनपो ने पुरानी लीसू भाषा की रचना की। सुश्री ल्यू श्यो फिंग ने बताया, पहले लीसू जाति की अपनी भाषा नहीं थी। ये ज़ी जिले के वारनपो ने लीसू जाति के लिए भाषा का सर्जन किया। वारनपो दूसरों से पैसे उधार लेते थे चूंकि तब भाषा न थी, इसलिए इसका हिसाब लकड़ी पर निशान लगा कर रखा जाता था। लेकिन, उधार लौटाते समय लोग रकम बढ़ा देते थे। इस वजह से वारनपो ने निर्णय लिया कि वे लीसू जाति के लिए भाषा की रचना करेंगे।

वर्ष 1949 में नये चीन की स्थापना के बाद वारनपो द्वारा रचित भाषा को सरकार ने भारी महत्व दिया। वर्ष 1975 में सरकार ने वारनपो की लीसू भाषा के आधार पर लातिन अक्षरों वाली नयी लीसू भाषा का विकास किया। आज लीसू जाति के दैनिक जीवन में इस नयी लीसू भाषा का व्यापक प्रयोग हो रहा है। नयी लीसू भाषा में कई पुस्तकें भी प्रकाशित की गई हैं।

लीसू जाति के लोग प्रकृति पर विश्वास करते हैं और भालू, मछली, मुर्गे और अनाज आदि को पूजते हैं। 

लीसू जाति पहले पहाड़ी क्षेत्रों में रहती थी, इसलिए, उसका जीवन बहुत कठिन था। नये चीन की स्थापना के बाद उन के जीवन में भारी परिवर्तन आया। यों चीन के भीतरी इलाकों और समुद्रतटीय शहरों की तुलना में उन का जीवन अपेक्षाकृत पिछड़ा है। स्थानीय सरकार अब लीसू जाति के लोगों के जीवन को बेहतर व समृद्ध बनाने के लिए पर्यटन जैसे व्यवसायों का विकास कर रही है।