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(GMT+08:00) 2004-10-18 09:29:46    
मशहूर पेइचिंग ऑपेरा अभिनेता---मेइ बाओच्यू

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चीन का पेइचिंग ओपेरा पूरे विश्व में बहुत प्रसिद्ध है और पेइचिंग ओपेरा के क्षेत्र में मेइ बाओच्यू का नाम चीन में सब से ऊपर है । कुछ समय पूर्व मंचित "थांग राजवंश की रानी" नामक पेइचिंग ओपेरा में सत्तर वर्षीय श्री मेइ बाओच्यू ने मुख्य पात्र का अभिनय किया। पश्चिमी सिंफ़नी और पेइचिंग ओपेरा के मेल वाली इस विशेष प्रस्तुति ने चीनी दर्शकों को एक नया अनुभव प्रदान किया ।

    "थांग राजवंश की रानी" ओपेरा में चीन के थांग राजवंशी राजा ली लोंगची और उनकी रानी यांग यूह्वुआन की प्रेम कहानी कहता है । "थांग राजवंश की रानी" ओपेरा की ताजा प्रस्तुति चीनी ओपेरा में एक नया प्रयोग थी। इसमें चीन के परम्परागत पेइचिंग ओपेरा के वाद्यों के साथ पश्चिमी सिंफ़नी का वाद्यवृंद भी शामिल रहा । आम दर्शकों का मत है कि इससे चीनी ओपेरा और पश्चिमी ओपेरा ने मिलकर पेइचिंग ओपेरा की सुन्दरता बढ़ा दी । मेइ बाओच्यू ने इस प्रस्तुति में थांग राजवंश की रानी यांग यूह्वुआन का चरित्र निभाया । अपनी सुन्दर भंगिमा , कुलीन स्त्री सुलभ वाणी और प्रेम भरी आंखों से उन्होंने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किये रखा । उनके अभिनय की सराहना दर्शकों ने देर तक तालियां बजा कर की ।

    वर्ष 1934 में दक्षिणी चीन के शांग हाए शहर में जन्मे मेइ बाओच्यू पेइचिंग ओपेरा के मशहूर अभिनेता रहे स्वर्गीय मेई लानफ़ांग के सब से छ़ोटे पुत्र हैं । मेइ बाओच्यू का बचपन चीन में जापान आक्रमण विरोधी युद्ध का समय था । उनके देशप्रेमी पिता मेइ लानफ़ांग ने जापानी सैन्यवादियों के मनोरंजन के लिए पेइचिंग ओपेरा प्रस्तुत करने से इनकार कर दिया था । बाद में जापानियों के हाथों में पड़ने से बचने के लिए उन्होंने पेइचिंग ओपेरा के मंच से विदा ले ली और घर-घर जाकर छात्रों को इस परंपरागत अभिनय कला की शिक्षा देने लगे । इस तरह नन्हे मेइ बाओच्यू ने भी अपने पिता से पेइचिंग ओपेरा सीखना शुरू किया ।

    मेइ बाओच्यू 10 वर्ष की उम्र से ही पेइचिंग ओपेरा की औपचारिक शिक्षा लेने लगे थे। उन्होंने इस ओपेरा के 40 से ज्यादा नाटकों का अभ्यास किया । आज सत्तर वर्ष की आयु में भी उनकी आवाज़ के मधुर बने रहने के पीछे युवावस्था का उन का कठोर अभ्यास ही है । बचपन के ओपेरा सीखने के दिनों की याद करते हुए मेइ बाओच्यू ने कहा

    "मैं एक सभ्य परिवार में पला-बढ़ा । पिता जी पेइचिंग ओपेरा का विश्व भर में प्रसार करने के लिए देश विदेश की यात्रा करते थे। मैं और मेरी बड़ी बहन उन्हीं से ओपेरा सीखते । वे एक बहुत अच्छे व आदरणीय पुरुष थे। उन से ओपेरा सीखना मुझे कोई भारी काम नहीं लगता था ।"

    पेइचिंग ओपेरा चीन की प्राचीन शैली की अभिनय कला है । मेइ लानफ़ांग ने खुले दिल से विश्व की विभिन्न कलाओं को सराहा था । 1920 और 30 वाले दशकों में उन्होंने विश्व के विभिन्न देशों की यात्रा की ।उनकी इन यात्राओं का उद्देश्य जहां बाहरी दुनिया को चीनी ओपेरा का परिचय देना था वहीं अन्य देशों की कला से सीखना भी । विश्व की प्रगतिशील संस्कृति से प्रभावित मेइ लानफ़ांग ने अपने बेटे मेइ बाओच्यू को विदेशी अध्यापकों से फ़्रांसीसी, अंग्रेज़ी जैसी भाषाओ तथा धर्मशास्त्र की भी शिक्षा दिलवायी । इस से मेइ बाओच्यू पेइचिंग ओपेरा के साधारण अभिनेता ही नहीं , विद्वान भी बने ।

    वर्ष 1950 में 16 वर्ष की आयु में मेइ बाओच्यू ने अपने पिता के साथ चीन के विभिन्न स्थलों में जाकर पेइचिंग ओपेरा की प्रस्तुतियां देनी शुरू कर दी थीं । वे अभिनय करते हुए भी पिता से सीखते चलते थे। इस तरह अपने पिता और बड़ी बहन के साथ पेइचिंग ओपेरा की प्रस्तुति करते हुए उन्होंने दस साल बिताये और आज तक इस विशेष दशक की चर्चा कर बहुत प्रसन्न होते हैं ।

    पिता के देहांत के बाद 27 वर्ष की उम्र में मेइ बाओच्यू ने पेइचिंग ओपेरा के प्रसार की विरासत की जिम्मेदारी उठायी । धीरे-धीरे उन की पेइचिंग ओपेरा प्रस्तुतियों को चीनी लोगों की मान्यता प्राप्त हुई । पिता की पेइचिंग ओपेरा की शैली की अपनी समझ मेइ बाओच्यू इस तरह सामने रखते हैं

    "पेइचिंग ओपेरा की उनकी शैली का कलात्मक मूल्य है । उस की सुन्दरता लोगों के लिए अविस्मणीय रही है इस लिए मैं इसे जारी रखना चाहता हूं।"

    इधर उम्र बढ़ने के साथ-साथ मेइ बाओच्यू की प्रस्तुतियां कम हो गई हैं । अब वे मुख्य तौर पर पेइचिंग ओपेरा की शिक्षा देते हैं । उनकी अपने विद्यार्थियों से अपेक्षा है कि वे मीठी आवाज़ और सुन्दर चेहरे के अलावा अपने अच्छे सांस्कृतिक आधार पर भी ध्यान देंगे। उनका विचार है कि पेइचिंग ओपेरा के विद्यार्थियों को चीन की शास्त्रीय संस्कृति की भी अच्छी समझ होनी चाहिए । मेइ बाओच्यू के विचार में पेइचिंग ओपेरा की सुन्दरता शास्त्रीय संस्कृति में ही जाहिर होती है ।

    मेइ बाओच्यू अपने पिता की अभिनय शैली अपनाने के साथ पेइचिंग ओपेरा के आधुनिक दर्शकों की मांग पर अपनी प्रस्तुति में बड़े सुधार भी लाये । "थांग राजवंश की रानी" इसकी एक आदर्श मिसाल है । इस की चर्चा आने पर मेइ बाओच्यू कहते हैं

    "मैं पेइचिंग ओपेरा में पश्चिमी वाद्यों के प्रयोग की कोशिश में लगा रहा हूँ और इसमें सिंफ़नी के इस्तेमाल से मैंने एक नयी शैली पेश की है लेकिन मेरा मानना है कि प्रयोगों से ओपेरा की परम्परागत चीज़ नहीं बदली जानी चाहिए।"

    पेइचिंग ओपेरा में "डान चो"नामक पात्र आम तौर पर महिला चरित्र होता है । लेकिन अक्सर पुरूष अभिनेता यह चरित्र निभाता है यानी पूरे ओपेरा में पुरूष महिला पात्र का अभिनय करता है । इसके लिए पुरुष अभिनेता की आवाज़ और अदा बिलकुल स्त्री जैसी होनी चाहिए । अब चीन में "डान चो" की भूमिका करने वाले पुरुष लगातार कम होते जा रहे हैं क्योंकि किसी अभिनेता के लिए ऐसा कौशल प्राप्त करना कठिन है। इसके लिए उसके पास जबरदस्त कला-बुनियाद होनी चाहिए । मेइ बाओच्यू एक ऐसे अभिनेता हैं और उन के पिता मेइ लानफ़ांग भी ऐसे कुशल अभिनेता थे। उनका कहना है कि अभिनय-मंच पर पुरुष "डान चो" को अन्य अभिनेताओं से ज्यादा श्रम करना पड़ता है , लेकिन उन का कला-जीवन महिला "डान चो" से लम्बा होता है । हाल ही में मेइ बाओच्यू ने एक युवा को पुरुष "डान चो" की शिक्षा देने के लिए अपने शिष्य के रूप में स्वीकारा । अब वे उसे प्रशिक्षण देने में जुटे हैं । आशा है यह छात्र इस प्रसिद्ध चीनी कला गुरु से शिक्षा प्राप्त कर कर पेइचिंग ओपेरा की "मेइ शैली"को भविष्य में भी जारी रखेगा ।