आज के कार्यक्रम में हम कोआथ, बिहार के राकेश रौशन, शेख जफर हसन और हरद्वार प्रसाद केशरी का पत्र लेते हैं। इन श्रोताओं ने चीन के अंतिम राजवंश के बारे में जानकारी मांगी है।
दोस्तो , चीन के इतिहास का अंतिम सामंती राजवंश छिंग राजवंश था। इस की स्थापना मान जाति के आभिजात्य वर्ग ने की। चीन के इतिहास में य्वान राजवंश के अतिरिक्त किसी अल्पसंख्यक जाति द्वारा कायम यह दूसरा राजवंश रहा।
छिंग राजवंश के चरम पर चीन की प्रादेशिक भूमि का कुल क्षेत्रफल 1 करोड़, 20 लाख वर्गकिलोमीटर को पार कर गया था। उस वक्त चीन की सीमा का पश्चिमी छोर बाल्हास झील और पामीर पठार को छूता था, उत्तर-पूर्वी छोर ओखोत्सक समुद्र और सखालीन द्वीप तक जा पहुंचा था, दक्षिण-पूर्व में थाइवान और इस के अतिरिक्त द्वीप थे, दक्षिणी छोर में दक्षिणी चीन सागर का द्वीपसमूह था और दक्षिण- पश्चिमी भाग में तिब्बत व लद्दाख थे।
वर्ष 1616 में मान जाति के एक अभिजात्य नुरहच ने हाउजीन नाम से एक राजवंश स्थापित किया। बीस वर्ष बाद 1636 में नुरहच के उत्तराधिकारी ह्वांगथाइजी ने उसे छिंग नाम दे डाला। वर्ष 1644 में किसान विद्रोहियों के नेता ली जी छंग ने मिंग राजवंश का तख्ता उलट दिया और मिंग साम्राज्य के अंतिम सम्राट ने आत्महत्या कर ली।छिंग राजवंश के राजसंरक्षक तोर्कुन ने सही मौका देख कर ली जी-छंग को पराजित किया और छिंग राजवंश के नये सम्राट फूलीन को पेइचिंग बुला भेजा। इस तरह पेइचिंग छिंग राजवंश की राजधानी बना।
छिंग राजसत्ता ने बाद में देश भर में चल रहे किसान विद्रोहों व मिंग राजवंश के बचे-खुचे प्रतिरोधियों को खत्म कर दिया और कदम ब कदम देश को एकीकृत किया।
छिंग राजसत्ता ने शांति व व्यवस्था बनाए रखने के लिए अनेक कारगर कदम उठाए, बंजर जमीन को खेतीयोग्य बनाने को प्रोत्साहन दिया और कर वसूली कम की। परिणामस्वरूप चीन का बड़ा सामाजिक और आर्थिक विकास हुआ। 18 वीं सदी के मध्य में चीन का अर्थतंत्र एक नया कीर्तिमान बना चुका था।
तत्कालीन चीन की केन्द्रीय राजसत्ता बेहद मजबूत थी। देश बहुत शक्तिशाली था और समाज व्यवस्था स्थिर थी।ऐसे में 18वीं सदी के अंत तक चीन की जनसंख्या 30 करोड़ पहुंच गई।
दक्षिण-पूर्वी चीन के समुद्रतटीय भाग में बच रहे मिंग राजसत्ता के प्रतिरोधियों ने चंग छंग-कूंग के नेतृत्व में छिंग राजसत्ता का मुकाबला किया। वर्ष 1661 में चंग छंग-कूं ने नौबेड़े के सहारे थाइवान को नीदरलैंड के उपनिवेशवादियों के हाथ से मुक्त कराने का अभियान चलाया। नीदरलैंड के उपनिवेशवादी हार खा कर थाइवान से निकले तो वर्ष 1683 में छिंग राजसत्ता ने थाइवान को वापस ले लिया।
16 वीं सदी के अंत में रूसी ज़ार ने भूमि की प्यास में पूर्व का विस्तार शुरू किया और रूसी सेना ने सुदूर-पूर्व में चीन की भूमि पर कब्जा कर लिया। हालांकि छिंग राजसत्ता ने बार-बार रूस से चीनी भूमि लौटाने का अनुरोध किया, पर रूस ने वहां कुमक भेज दी।इस पर छिंग सम्राट श्वानये ने आत्मरक्षा के लिए जवाबी प्रहार शुरू किया।
इस दौरान हुए घमासान युद्ध ने रूसी सेना को गंभीर क्षति पहुंचाई। परिणामस्वरूप चीन और रूस के बीच सीमा संधि संपन्न हुई।
छिंग सम्राट हूंली के शासनकाल के मध्य में सिंच्यांग के पृथक्तावादियों को पराजित किया गया जिस के बाद सिंच्यांग के अर्थतंत्र का भारी विकास हुआ।
पर छिंग राजवंश खुद चीन की परम्परागत सामंती शासन व्यवस्था की लीक से बाहर नहीं निकला। उसने अर्थतंत्र में कृषि को प्रधानता दी, सांस्कृतिक क्षेत्र में सामंती विचारधारा का विस्तार किया औऱ विदेशों के लिए अपने द्वार बंद रखे।यही नहीं वह घमंडी भी था। इसलिए चीन के आर्थिक व सामाजिक विकास की गति धीमी रही।
छिंग राजवंश के मध्य काल में सामाजिक अंतरविरोध तेज होने शुरू हो गये थे और राजसत्ता के विरोध में एक-एक कर कई विद्रोह उठने लेग। बाईल्येन मत का राजसत्ता विद्रोह 9 साल तक जारी रहा। इस के बाद छिंग राजवंश की समृद्धि क्षीण होने लगी। वर्ष 1840 में चीन और ब्रिटेन के बीच अफीम युद्ध छिड़ा। इस में चीन की हार हुई। इस के बाद अनेक साम्राज्यवादी देशों ने चीन पर आक्रमण किया। चीन सरकार को इन देशों के दबाव में इन के साथ असमान समझौते करने पर विवश होना पड़ा। इन समझौतों के तहत चीन को अपनी भूमि खोनी पड़ी। छिंग राजसत्ता ने इन देशों को भारी मुआवजा दिया और उन के लिए व्यापार के द्वार खोले। छिंग राजवंश अर्द्ध सामंतवादी व अर्द्ध उपनिवेशवादी समाज में बदल गया।
देश को बचाने के लिए राजसत्ता के भीतर सुधार के अनेक प्रयास किए गए, मगर वे सब नाकाम रहे। सम्राट का तख्ता पलटने के लिए फिर क्रांति और विद्रोह उभरने लगे औऱ वर्ष 1911 में डाक्टर सुन यातसेन के नेतृत्व में हुई क्रांति ने छिंग राजवंश की सत्ता को तबाह कर दिया। इस तरह चीन में 2 हजार साल पुरानी सामंती सम्राट व्यवस्था खत्म हुई और चीन के इतिहास में एक नया अध्याय आरम्भ हुआ।
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