रे बा एक ऐसी कला है, था छन की कई पीढ़ियों ने अपने वॉद्धों के मुख से सीखी है। यह मौखिक कला लम्बे अरसे से रे बा के पुराने कली रुपों में बरकरार रही है। लोग लम्बे समय के प्रशिक्षण व अभ्यास के बाद ही इस की गायन, नृत्य शैली पकड़ पाते हैं। था छन का हर कोई व्यक्ति रे बा का दीवाना है। गांव में जब रे बा का आयोजन होता है, तो वे सभी इस में भाग लेना चाहते हैं। अनेक नृतकों में कुछ लोगों को ही लाटरी के जरिए चुना जाता है। स्थानीय बच्चे बचपन से ही रे बा सीखने लगते हैं, औऱ बुढ़ापे तक नाचते हैं। था छन के संस्कृति केंद्र की ई छ्योंग ली ने कहा, यहां की जनता के लिए रे बा न एक नृत्य न होकर पूजा का एक तरीका है। रे बा आराम का काम नहीं, पर उन के लिए सुख लाता है। उन्हें विश्वास है कि रे बा से वे बुद्ध की पूजा करते हैं औऱ खउद को शैतान से बचा सकते हैं।
रे बा कबीलाई पूजा की रस्म से शुरु हो कर लगभग दो हजार वर्षों के बाद एक मंच कला में परिवर्तित हो गया है। स्थानीय पर्यटन के विकास के साथ रे बा में और परिवर्तन आए हैं। पहले कड़ा नियम था कि लोग रे बा दिन में नहीं नाच सकते और यह नृत्य केवल तिब्बती नववर्ष या अन्य धार्मिक त्यौहार के दौरान ही किया जा सकता है और लोग एक शाम से दूसरी सुबह तक ही नाच सकते हैं। पहले लोग बुद्ध की पूजा और सुखमय जीवन के लिए नाचते थे पर अब दिन में भी नाचते हैं और वह भी केवल दो तीन घंटे। वेई शी काऊंटी के प्रचार विभाग के कर्मचारी ली शी जुंग ने बताया, आम जीवन में सुधार आने के साथ अब मेहमान के आने के समय और राष्ट्रीय दिवस या नववर्ष जैसे परम्परागत त्यौराहर के दौरान भी लोग रे बा नृत्य करते हैं।
वर्ष 1998 से चीनी पंचाग के तीसरे माह की 28 तारीख को था छन रे बा कला उत्सव का आयोजन हो रहा है। इस दिन, स्थानीय लोग रंग बिरंगी वेशभूषाओं में एकत्र होकर रे बा नाचते हैं। था छन के प्रधान ह चिन ह्वा ने कहा, हर वर्ष इस रे बा त्यौहार में रे बा नृत्य को छोड़कर था छन के विभिन्न गांवों में प्रचलित ली सू, ना शी आदि जातियों के पमर्परगात नृत्य और क्वो ज्वांग व शअवेन जी आदि भी शामिल रहते हैं। इस दौरान, लोग घुड़दौड़ और बास्केटबाल आदि गतिविधियों का आयोजन भी करते हैं।
हमें विश्वास है कि था छन कस्बा अपने सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों, रंग बिरंगी सांस्कृतिक रीति रिवाजों से पर्यटकों को आकर्षित करता रहेगा। और उस की जनता का जीवन दिन प्रति दिन समृद्ध हो सकेगा।
|