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(GMT+08:00) 2004-09-23 14:55:56    
आगामी सालों में नयी वैज्ञानिक उपलब्धियां

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यह सर्वविदित है कि तेजाबी बारिश औद्योगिक प्रदूषण का परिणाम है , जो वातावरण में बिगाड़ लाने के लिये जिम्मदार है । पर नवीनतम रिपोर्ट है कि मौसम पर ग्रीनहाउस के प्रभाव को रोकने में तेजाबी बारिश की भी भूमिका है । ब्रिटिश विशेषज्ञों की एक अनुसंधान रिपोर्ट कहती है कि तेजाबी बारिश दलदल भूमि में ऐसे कीटाणुओं के जीने से मददगार है , जो मुख्य तौर पर वहां के खनिज गैस खाते हैं । firedamp के बढ़ने से ग्रीन हाउस प्रतिक्रिया को दबा सकते हैं । विशेषज्ञों ने वर्ष उन्नीस सौ साठ से वर्ष दो हजार अस्सी तक के तेजाबी बारिश गिरने की स्थितियों का अनुसंधान कर यह विष्काश किया है कि तेजाबी बारिश पृथ्वी के ग्रीन हाउस प्रतिक्रिया को रोकने का एक महत्वपूर्ण तत्व है । गहरे समुद्र का सर्वेक्षण करना मानव की कल्पना ही है । पर गहरे समुद्र तक डूब कर तैरने वाले पनडुब्बी का उत्पादन बहुत कठिन माना जाता है । आम पनडुब्बी सिर्फ समुद्र के सैकड़ों मीटर की गहरी नीचे तक जा सकती है । पर समुद्रों की बहुत सी जगहों में गहराई कई हजार मीटर और यहां तक दस हजार मीटर तक है । इस गहराई में समुद्र के सर्वेक्षण के लिए अमेरिका की ऊत्सहोले समुद्र अनुसंधानशाला हाल ही में एक नयी तरह के समुद्र सर्वेक्षक के उत्पादन में सफल रहा । यह सर्वेक्षक समुद्र में सात हजार मीटर नीचे तक जा सकता है और उस की गति , कार्यक्षमता तथा सूचना संग्रह क्षमता पुरानी शैली के सभी सर्वेक्षकों से श्रेष्ठ है । चीनी विज्ञान व तकनीक मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार आगामी दस सालों में चीन मुख्य तौर पर सूचना संचार , नयी शैली वाली वेब व्यवस्था , नैनो तकनीक तथा नये किस्मों के अनुसंधान व विकास पर जोर देगा । सूचना तकनीक के क्षेत्र में चीन ने इधर उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त की हैं । इस समय चीन में मोबाइल फोन के उपभोक्ताओं की संख्या तीस करोड़ है , जो विश्व में सब से अधिक है । जैव तकनीक और एक ऐसा क्षेत्र है , जहां चीन भारी प्रगति कर सकता है । मिसाल है कि चीन अब कुछ रोगों के टीका के उत्पादन में दुनिया की अग्रिम पंक्ति में खड़ा है , आगामी दस सालों में चीन के और एक लम्बी छलांग लगाने की संभावना है । यहां एक दिलचस्प खबर यह है कि अमेरिका , रूस , यूरोप , चीन और भारत सब की अंतरिक्ष की यात्रा की महान योजनाएं हैं । कुछ देश चांद ही नहीं , मंगल तक अपने अंतरिक्ष यात्री मंगल तक भेजने की कल्पना कर रहे हैं । लेकिन पृथ्वी से मंगल तक जाने के लिए पांच करोड़ मील का रास्ता नापना पड़ता है । इस रास्ते को पूरा करने में एक अंतरिक्षयान को लगभग तीन साल उड़ना होगा । इस अंतरिक्षयान को कम से कम छै अंतरिक्षयात्रियों की जरूरत होगी । इन छै व्यक्तियों के लिए उस पर कम से कम तीस टन खाद्य पदार्थ लादने पड़ेंगे । यह सब सामान पहुंचाने के लिये कितना बड़ा वाहन चाहिये , इस की कल्पना करना बहुत कठिन है । इसलिये कुछ वैज्ञानिकों ने ऐसा विचार दिया है कि अंतरिक्ष यात्रा में नींद की दवा का प्रयोग किया जाए । अगर अंतरिक्षयात्री सपने देखते हुए मंगल की ओर जाने का लम्बा रास्ता नापें , तो उन की यात्रा उतनी कठिन नहीं होगी। लेकिन यूरोप के एक अंतरिक्षयात्री ने यह कहा है कि मंगल जाने का रास्ता मैं सपने में नहीं , जागते हुए पूरा करना चाहूंगा , क्योंकि यह रास्ता अद्भुत व असाधारण ही है । अच्छी खबरों के साथ हमें पूरी खबरों के लिए भी तैयार रहना पड़ता है । कुछ खबर यह है कि अमेरिका के रक्षा मंत्रालय पैंटागन की एक रिपोर्ट के अनुसार आगामी बीस सालों में पृथ्वी के मौसम में बहुत बिगाड़ आएगा । वर्ष दो हजार बीस तक यूरोप के अनेक शहर मौसम गरमाने से समुद्र की सतह के नीचे डूब जाएंगे । ब्रिटेन दूसरा साइबेरिया बनेगा , जहां साल भर सर्दी व सूखा रहेगा । चीन भी दसियों साल तक बाढ़ व सूखे से ग्रस्त रहेगा । अमेरिका की इस रिपोर्ट ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है । चीन के कुछ चोटी के विशेषज्ञों ने भी इस पर विचार विमर्श करने के लिये एक अधिवेशन बुलाया । चीनी मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की इस रिपोर्ट के अनुमान के एक दिन वास्तव में सच होने का खतरा मौजूद है , पर इसे बचाने या रोकने की भी बड़ी संभावनाएं हैं । आम लोगों को शायद यह मालूम न हो कि फ्रिज़ और एअरकंडीशनर में प्रयोग होने वाले फ्रेओन वातावरण को बरबाद कर रहा है । क्योंकि इस द्रव के वायुमंडल में घुसने से ओजोन परत नष्ट हो रही है , और ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ाने का स्रोत भी है । इसलिये दुनिया के अनेक देश फ्रेओन की जगह चीज़ों को ठंठा रखने के लिये किसी नये द्रव का अनुसंधान कर रहे हैं । चीन की नानचिंग तेल रासायनिक कंपनी हाल ही में आर-छै सौ नामक एक ऐसे द्रव का आविष्कार करने में सफल रही है , जिस से फ्रेओन की कमजोरी को दूर की जा सकती है , इस द्रव के प्रयोग से वातावारण प्रदूषित नहीं हो जाएगा । मच्छर जगह-जगह मानव को परेशान करते हैं । मानव ने मच्छर को खदेड़ने के भिन्न भिन्न उपाय अपनाये हैं , जैसे आगबत्ती , इलेक्ट्रोनिक यंत्र तथा विभिन्न किस्म वाले इत्र । अमेरिका के कुछ विशेषज्ञों ने अनुसंधान के बाद यह पता लगाया कि मच्छर भी अपने शिकार चुनते हैं , कुछ लोगों को मच्छर कभी नहीं काटते । कहा जाता है कि ऐसे लोगों के शरीर से कुछ विशेष बू आता है , जो मच्छर को पसंद नहीं। अमेरिकी विशेषज्ञों ने यह पता लगाया है कि मानव के त्वचा से हजार से अधिक किस्मों के रासायनिक पदार्थ निकलते हैं। इस में कुछ पदार्थ मच्छर को भगाया जा सकता है । यह खबर मच्छर-मार दवा का उत्पादन करने में मददगार होगी । लेकिन वाणिज्यिक लाभ की वजह से इस का ब्यूरा नहीं दिया गया है । अमेरिकी आविष्कारों ने सिर्फ यह बता दिया है कि शराब या सिगरेट पीने , लहसुन या विटामिन खाने आदि से मच्छर से बचने के सब उपाय बेकार सिद्ध हो गये हैं । बिल्ली और कुत्ता दोनों मानव के पालतू पशु हैं , लेकिन माना यही जाता है कि बिल्ली कुत्ते की तुलना में कम मैत्रीपूर्ण होती है । बिल्ली और कुत्ते में से कौन मानव के जीवन में पहले प्रविष्ट हुआ था , इस सवाल पर हमेशा से बहस चली आ रही है । विशेषज्ञों ने अब इस बात पर सहमति प्राप्त की है कि कुत्ता और बिल्ली दोनों प्राचीन काल से ही जंगलीत से पालतू बन गये थे । उन के पूर्वज आज भी अफ्रीका के जंगलों में रहते हैं । इन दोनों पशुओं में कुत्ता 15 हजार साल पहले मानव का पालतू बना था , पर बिल्ली पालतू बनने का इतिहास सिर्फ 9 हजार साल पुराना है । अब तक लोगों का विचार रहा है कि पक्षी आम तौर पर अपने मादा या नर के प्रति वफादार हैं । पक्षी जिंदगी भर केवल एक ही नर या मादा के साथ यौन संबंध रखते हैं और एक के मर जाने पर दूसरा जिंदगी भर अपने लिए नयी खुशियों की तलाश नहीं करता । लेकिन अब विशेषज्ञों ने अनुसंधान से यह निष्कर्ष निकाला है कि पक्षियों के बारे में लोगों का यह विचार बिल्कुल सही नहीं है । पक्षी विशेषज्ञों के सर्वेक्षण के अनुसार हंस और सारस जैसे वफादार माने जाने वाले पक्षियों में भी मर-मादा के लिए वफा न निभाने की बात पता चली है । विशेषज्ञ बताते हैं कि पक्षी भी अपनी संतानों को श्रेष्ठ बनाने के लिये नर मादा ढ़ढ़ते हैं । नर पक्षी मादा के साथ संबंध स्थापित करने का स्वाभाव दिखाता है , जबकि मादा नर की तलाश में अपनी सुरक्षा और अपने बच्चों को खिलाने पिलाने पर ज्यादा ध्यान देती है । पक्षियों की प्राकृतिकता एक नर या मादा को पूरा नहीं कर सकता । इसलिये उन में प्यार की चोरी भी स्वाभाविक है । पक्षी विशेषज्ञों का विचार है कि एक मादा या नर के प्रति समर्पित रहने , या एक विवाह प्रथा का पालन करने से पक्षियों के लिए अच्छा नहीं है । इस का मानव नैतिकता के मुताबिक मूल्यांकन करना अर्थहीन होता है ।