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(GMT+08:00) 2004-09-20 08:58:33    
 श्रोताओं की कविताएं

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कलेर बिहार के मोहम्मद आसिफ खान की एक कविता , शीर्षक है दिल बहलाए ।

प्रेम बदरीया छाई है हर सू ,

फैली हुई है प्रेम की खुशबू ।

ऐसे समय में दिन भर कू ,

प्रेम के गीत सुनाएं ,

आओ दिल बहलाएं ।

प्रेम नगर में खोना अच्छा ,

प्रेम की नींद सोना अच्छा ,

ठंढी हवाएं आने लगी है ,

हम तुम भी खो जाएं ।

आओ दिल बहलाएं ।

गम का कोई जिक्र न छोड़ो ,

गम को हटाओ , गम को छोड़ो ।

रोना कब तक , नाले कब तक ,

हंस कर सब को हसाएं ।

आओ , दिल बहलाएं ।

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आरा बिहार के ब्रजेश कुमार पांडेय की कविता , शीर्षक है मेरा मन ।

मैं रोज सी .आर .आई सुनता हूं ,

चीन के बारे में गुनता हूं ।

मधु सी मधुर आवाज में ,

हृदय नहाने लगता है ।

प्रस्तुति शैली सुन्दर मनहर ,

मन सुनते नहीं भरता है ।

जन से जन को जोड़ कर ,

भारत चीन को जोड़ता है ।

नित नवीन कार्यक्रम प्रकाश से ,

हर भ्रांति को तोड़ता है ।

भारत चीन में प्रेम बढ़े ,

यह उद्देश्य है उत्तम ।

नहीं तोड़ पाएगा कोई ,

दोनों में है इतना दम ।

मेरी अभिलाषा है यह ,

सी .आर .आई को सुनने हर जन ।

जिए हजारों साल सी .आर .आई ,

कहता है यह मेरा मन ।

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बेत्तिया बिहार के मैहती हसन द्वारा भेजी गई एक अखबार की कटिंग , जिस में लोगों को परेशानी दूर करने का उपाय बताया गया है , हम समझते है कि ये उपाये शायद श्रोताओं के लिए भी मददगार सिद्ध हो सकता है । नुसखा एक है बेकार की उधेड़ बुन में न पड़े ।

कुछ लोग फैसला लेने में जरा भी नहीं हिचकिचाते हैं , तो कुछ लोग किसी तरह का फैसला लेने में बहुत परेशान हो उठते हैं और इसी उधेड़ बुन में अपना दिमाग खाली कर डालते हैं । परफेक्शानिस्ट और अनिश्चित लोग इसी कैटेगरी में आते हैं । ऐसे लोग कुछ भी फैसला करें , वे अपने फैसलों से संतुष्ट नहीं होते । एगर आप को मुश्किल से मुश्किल फैसला भी लेना हो , तो परेशान न हों , बल्कि सुकून से सोचें और ज्यादा से ज्यादा 15 मिनट में फैसला सुना डालें । अगर मामला ज्यादा गंभीर हो , तो दूसरों से सलाह मशविरा करने के लिए भले ही ज्यादा समय ले लें , पर अपना दिमाग को किसी भी सूरत में न खाली करें ।

दोस्तो , परेशानी को दूर करने के लिए जो नस्खा दो दिया गया है वह दिल का बोझ हल्का करे । यह भी आप के सामने है।

हो सकता है, आप बरसों पुरानी किसी भावनात्मक घटना को अब भी अपने दिल का बोझ बनाए घूम रहे हों । पर अब वक्त आ गया है कि अपने दिल का बोझ हल्का कर लें । लोग अपने दिल का बोझ हल्का करने से डरते हैं कि इस से उन्हें तकलीफ होगी । पर रोज रोज की तकलीफ उठाने से तो बेहतर है कि एक बार तकलीफ उठा कर हमेशा के लिए समस्या से फुर्सत पा ली जाए । क्योंकि किसी तकलीफ देने वाली बात को दिल में रखने पर बहुत ज्यादा एनर्जी बरबाद होती है । इसलिए बीती बातें भूल जाइए और खुश रहिए ।

दोस्तो , परेशानी को दूर करने के लिये ऊपर के नुस्खा आप को कैसे लगा . हां , उन नुस्खाओं का एक ही महत्व है कि परेशानी से दूर रहने के लिए हम बेकार सोच विचार से बच जाए । तो आइये , अब आप आगे सुनिए कोआथ बिहार के राजेश चौधरी के खत से एक कथा । शीर्षक है व्यर्थ का अभिमान ।

बस में सफर के दौरान बातचीत के सिलसिले में एक यात्री ने अहंकार से भर कर दूसरे से कहा , हमारे गांव में मुझे कौन नहीं जानता । मैं अपने गांव का सब से अमीर और ताकतवर व्यक्ति हूं ।

हूं , सुनने वाला यात्री बोला । पहले यात्री ने आगे कहा -- जानते हो , मेरे पास सौ बीघा जमीन है । इतनी जमीन वहां किसी के पास नहीं है ।

हो सकता है , सहयात्री ने उस की बात मान ली ।

इसलिए मैं ने कहा कि मैं इपने गांव का सब से अमीर आदमी हूं । वह बोला , रही बात ताकत की । मेरे पांच लड़के हैं , जो मेरी ताकत हैं । उस गांव में पांच लड़के किसी के नहीं है ।

मतलब कि आप के पास जमीन भी अधिक है और पुत्र भी । सहयात्री ने कहा ।

बिल्कुल -- पहला यात्री बोला ।

जहां तक आप की अमीरी की बात है , ठीक है । कल आप की जमीन पांच बेटों में बंट कर छोटी हो जाएगी । आप के बेटे आप जैसा अमीर न रह कर गरीब हो जाएगे।

यह सुन कर वह आदमी घबराया । कुछ नहीं बोला । यहयात्री ने उस से आगे कहा --- , आप के एक बेटे के हिस्से में बीस बीघे जमीन पड़ेगी । कोई आप के गांव में ऐसा भी हो सकता है , जिस के पास सिर्फ पचीस -तीस बीघे जमीन हो और बेटा एक ही हो .

ऐसे कई हैं , वह बोला ।

फिर तो आप के बेटे एक दिन उन की तूलना में गरीब हो जायेंगे।

हूं , इस से अधिक वह कुछ नहीं बोला ।

सहयात्री ने आगे कहा , रही बात ताकतवर की । आप तो अच्छी तरह जानते हैं कि मुठ्ठी भर अंग्रेजों ने हमारे देश को गुलाम बना कर करीब दो सौ वर्षों तक रखा ।

बिल्कुल , भला कैसे । आपसी फुट की वजह से , मतलब आदमियों की संख्या अधिक होने से कोई ताकतवर नहीं हो जाता , अगर उस में फुट हो ।

हां ।

और आपसी फूट गरीबी और अभाव की वजह से ही उत्पन्न होती है । आप के पांच लड़के कल संपत्ति का बंटवारा कर गरीब ही नहीं होंगे । छोटी छोटी बात पर वे परस्पर लड़ाई--झगड़े भी कर बैठेंगे । सहयात्री ने आगे कहा -- लड़ाई झगड़े से बुद्धि नष्ट होती है . ताकत घटती है , फूट उत्पन्न होती है । अतएव आदमियों की संख्या अधिक होना ताकत की पहचान नहीं है ।

ठीक कहते हैं , उस ने सहयात्री की बात मान ली ।

आज धरती वैसे भी अधिक आबादी से पीड़ित है । खास कर हमारा देश । हम से कम आबादी वाले देश हम से अधिक साधन सम्पन्न है और ताकतवर भी है । सहयात्री ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा -- ऐसे में हमें चाहिए कि हम अपनी संतान को गरीबी से बचाए । उसे अपने से अधिक साधन संपन्न होने का अवसर दें । और यह तभी संभव है । जब हमारी संतान अधिक कम हो ।

कुछ समय पहले उसे जो अपने अमीर और ताकतवर होने का व्यर्थ अभिमान था , अब नहीं रहा । सहयात्री की एक एक बात उसे सही जान पड़ी ।

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