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(GMT+08:00) 2004-09-14 18:37:56    
था छन का तिब्बती रे बा नृत्य

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चीन एक बहुजातीय देश है। चीन की 55 अल्पसंख्यक जातियों में से एक तिब्बती जाति की जनसंख्या लगभग 45 लाख 90 हजार है, जो मुख्य रूप से विश्व की छत कहलाने वाले छिंगहाई-तिब्बत पठार पर बसी है। तिब्बती लोग चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश, छइंग हाई प्रांत के हाई पेई, ह्वांग नान, हाई नान, क्वो रो और य्वू शू तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चरों, हाई शी मंगोल जाति औऱ तिब्बती जाति प्रिफेक्चर, सी छ्वान प्रांत के आ बा और गेन ज़ी तिब्बती प्रिफेक्चरों और मू ली तिब्बती काउंटी, य्वन नान प्रांत के दी छींग तिब्बती प्रिफेक्चर, गेन सू प्रांत के गेन नान तिब्बती प्रिफेक्चर और थ्येन जू तिब्बती प्रिफेक्चर आदि जगहों में रहते हैं। तिब्बती जाति का इतिहास और संस्कृति बहुत पुरानी है और उनके जातीय रीति-रिवाज़ भी रंग-बिरंगे हैं। हाल ही में हमारे संवाददाताओं ने चीन के इन क्षेत्रों की यात्रा की और वहां से हमें जो रिपोर्टें भेजी उन्हें हम एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।

चीन की विभिन्न अल्पसंख्यक जातियों के अपने-अपने विशिष्ट परम्परागत जातीय नृत्य-गान हैं। आज हम आप को दे रहे हैं चीन की तिब्बती जाति के कलात्मक नृत्य रे बा का परिचय।

रात में गांव के बड़े चौक पर बीचोंबीत आग जलाई जाती है और लोग इसके चारों ओर घेरा बना लेते है। इस तरह तैयार होता है रे बा नृत्य स्थल। रे बा नृत्य दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ता है।

रे बा नृत्यकला बहुत पुरानी है। वह बौद्ध धर्म के तिब्बत में आने के हजार वर्ष पहले थू पो राजवंश तक में मौजूद थी। रे बा ने नृत्य, संगीत और संस्कृति को एक साथ जोड़ा और कला के विकास में एक जीवंत आदर्श बनाया।

तिब्बती रे बा नृत्य आवारा, व्यापारी, और शास्त्रीय तीन भागों में विभाजित माना जाता है। दक्षिण-पश्चिमी चीन के य्वन नान प्रांत की वेई शी काउंटी के लीसू जाति क्षेत्र के था छन नामक स्थान में प्रचलित रे बा शास्त्रीय श्रेणी का है। अपनी पुरानी व विशेष कला के कारण यह तिब्बती लोगों का सर्वप्रिय रे बा नृत्य है।

य्वन नान के दी छिंग प्रिफेक्चर की प्रचार मंत्री सुश्री ली कहती हैं,था छन का यह नृत्य परम्परागत नृत्य ही है, जिसने बोल, गान और नृत्य को एक साथ जोड़ा है और साथ ही अपना पुराना रस बरकरार रखा है।

था छन में तिब्बती लोगों के अलावा, ला शी, ली सू , हान औऱ ह्वेई जातियों के लोग रहते हैं। ये सभी जातियां वहां मेल से रहती हैं और सुखमय जीवन बिता रही हैं। आप उनमें से किसी से भी जहां-कहीं रे बा की चर्चा करेंगे यही पायेंगे कि उन सब की इसमें गहरी दिलचस्पी है। हर एक को रे बा नृत्य करना पसंद है और हर परिवार के पास इस नृत्य के समय पहनी जाने वाली विशेष वेशभूषा भी है। हर व्यक्ति इस कला पर गौरव महसूस करता है। कहा जाता है कि था छन के लोग पहले बुद्ध की पूजा और समृद्धि के लिए रे बा नाचते थे इसलिए, था छन का रे बा तिब्बती बौद्ध धर्म का गहरा रस लिये हुए है। रे बा नृत्य की शुरुआत में चौक शांत था। फिर दूर से एक पुरुष गायक की आवाज़ आयी और धीरे-धीरे ऊंची होती चली गयी। इसके बाद ढोल बजने की आवाज़ आने लगी। धीरे-धीरे यह आवाज़ भी तेज़ होने लगी। अचानक ढोल की आवाज़ बंद हुई और महिला व पुरुष नर्तक चौक में नाचने लगे। महिलाओं के हाथों में लकड़ी के बड़े ढोल थे, जबकि हाथों में छोटे ढोल लिये पुरुष नर्तक सुरागाय के बाल हिलाते नाच रहे थे। नाच कभी धीमा चलता और कभी तेज़ हो उठता।

रे बा के लिए कम से कम 12 नर्तकों की जरूरत होती है। इनमें आधी महिलाएं होती हैं और आधे पुरुष। यों कभी-कभी नर्तकों की संख्या 20 तक भी जा पहुंचती है।

रे बा नर्तक रंग-बिरंगी वेशभूषा पहनते हैं। पुरुष नर्तक श्री जा शी फी ज्वे ने बताया,पुरुष नर्तक की पीठ पर सात रंगों वाला हादा होता है, जो आसमान में इंद्रधनुष का अर्थ देता है। महिलाएं सिर पर बुद्ध की पांच आकृतियों वाला आभूषण पहनती हैं। तिब्बती लोगों की सूर्य व चांदमें में विशेष आस्था है, इसलिए, महिला नर्तक हाथों में जो ढोल लिये होती हैं उन पर सूर्य, चांद, तारे व समुद्र आदि चित्रित होते हैं।

श्री जा शी फी ज्वे के अनुसार, रे बा के पुरुष नर्तक परम्परागत तिब्बती पोशाक पहनते हैं। उन के पैरों में चमड़े का जूता होता है। दायें हाथ में ढोल होता है, और बायें में सुरागाय के बाल। महिला नर्तक रेशमी कपड़े पहनती हैं। वे दायें हाथ में ढोल की बजाने वाली लकड़ी लिये होती हैं, और बायें हाथ में सूर्य व चांद नामक रंगीन ढोल।

रे बा में ढोल बड़ी महत्वपूर्ण सामग्री है। इस के पीछे एक सुंदर कहानी भी है। था छन के संस्कृति केंद्र की ई छयोंग ली ने कहा, कहते हैं, पुराने समय में जब चीन के तिब्बत में पोताला महल का निर्माण किया जा रहा था दिन में किये मजदूरों के काम को रात में अनेक शैतान आकर बर्बाद कर देते थे। इससे महल का निर्माण पूरा नहीं हो पा रहा था। मीलारेबा नामक एक भिक्षु ने इस समस्या के हल का एक उपाय सोचा। उन्हों ने कुछ ढोल बनाये और बहुत से युवकों व युवतियों को उनके साथ नृत्य करना सिखाया। रात आयी तो युवती- युवक नाचने लगे। शैतान नृत्य से आकृष्ट हुए और मजदूर भवन निर्माण करते रहे। अंत में लोगों ने शैतानों को पकड़ कर नष्ट कर दिया और उनकी खाल से ढोल बनाये।