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(GMT+08:00) 2004-09-03 14:39:31    
जातियों के बीच दृढ़ व घनिष्ठ सम्बन्ध

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विशाल थाङ साम्राज्य की सीमाओं के अन्तर्गत रहने वाली विभिन्न जातियों के आपसी संबंध अत्यन्त घनिष्ठ थे।

तुर्क जाति के लोग आलथाए पर्वतशृंखला के इलाके में बहुत पहले से रहते आ रहे थे। छठी शताब्दी के मध्यकाल तक उन्होंने अपनी शक्ति बहुत बढ़ा ली थी तथा पूर्व में हिङकान पर्वतशृंखला तक तथा पश्चिम में कैस्पियन सागर तक फैले इलाके पर नियंत्रण कायम कर लिया था। स्वेइ राजवंशकाल में वे पूर्वी और पश्चिमी इन दो समुदायों में विभाजित हो गए थे। थाङ राजवंश के प्रारम्भिक काल में, पूर्वी तुर्क अभिजातवर्गीय समुदाय के लोग अक्सर दक्षिण की ओर आकर सीमावर्ती क्षेत्रों में उपद्रव करने लगते थे। उक्त दोनों तुर्क समुदायों को दबाकर रखने के लिए सम्राट थाएचुङ को उन के इलाके में बार-बार अपनी फौजें भेजनी पड़ती थीं। बाद में, थाङ सरकार ने छ्यूची (वर्तमान शिनच्याङ का खूछा) और थिङचओ (वर्तमाम शिनच्याङ का चिमसार के उत्तर में स्थित) में क्रमशः आनशी और पेइथिङ गैरिजन कमानों की स्थापना की और उन्हें थ्येनशान पर्वतशृंखला के उत्तर व दक्षिण के विशाल इलाके का प्रशासन सौंप दिया। तब से इन सीमावर्ती क्षेत्रों और देश के भीतरी इलाकों के बीच आर्थिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान उत्तरोत्तर बढ़ता गया।

मोहे जाति सूशन जाति की एक प्रशाखा और वर्तमान मानच जाति की पूर्वज थी। इस जाति के लोग हेइलुङ, सुङह्वा और ऊसूली नदियों की घाटियों में तथा साखालिन द्वीप में रहा करते थे। इस जाति की दर्जनों उपजातियां थीं, जिन में हेइश्वेइ और सूमो सबसे शक्तिशाली थीं। थाङ सरकार ने हेइश्वेइ उपजाति, जो हेइलुङ नदीघाटी के निम्नवर्ती क्षेत्र में प्राचीन काल से रहती आ रही थी, के मुखिया को नवस्थापित हेइश्वेइ गैरिजन कमान के शासनाधिकारी के पद पर नियुक्त कर दिया तथा हेइलुङ नदीघाटी के समूचे इलाके में एक अपेक्षाकृत सर्वांगीण प्रशासन व्यवस्था की शुरुआत हुई तथा इस क्षेत्र और देश के भीतरी इलाके के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध भी कायम हुआ। सातवीं शताबदी के अन्तिम काल में, ऊसूली नदीघाटी में रहने वाली सूमो उपजाति के मुखिया ने अपने निकटवर्ती कबीलों को एकताबद्ध कर एक नया शासन कायम किया, तथा थाङ सरकार ने उसे हूहान प्रान्त (वर्तमान चीलिन प्रान्त के तुनह्वा के आसपास का क्षेत्र) की गेरिजन कमान का प्रधान नियुक्त कर पोहाए प्रिफेक्चर के राजा की उपाधि प्रदान की। सूमो उपजाति के प्रतिभाशील विद्यार्थी विद्याध्ययन के लिए छाङआन आते रहते थे और वहां से लौटते समय हान भाषा की अनेक पुस्तकें अपने साथ ले जाते थे। वे अपने इलाकों से चीन के भीतरी इलकों में सेबल का फर व "रनशन" जड़ी जैसी वस्तुएं भी लाए।

चीन के युननान प्रान्त में बहुत-सी अल्पसंख्यक जातियां निवास करती हैं। थाङ राजवंशकाल में अड़हाए झील के आसपास के इलाकों में रहने वाली जातियों को सामूहिक रूप से "छै चाओ" का नाम दिया गया था, जिस में छै अलग-थलग जाति-समुह शामिल थे। वास्तव में ये जाति-समुह आज की ई और पाए जातियों के पूर्वज थे। इन छै समूहों में नानचाओ (जिसे मङशचाओ भी कहा जाता था) समूह सबसे शक्तिशाली था, इसने थाङ सरकार के प्रति अपनी निष्ठा का वचन दिया। बाद में जब नानचाओ जाति के मुखिया फील्वोके ने अन्य पांच समूहों को अपने काबू में कर लिया, तो थाङ सम्राट श्वेनचुङ ने उसे"युननान के राजा" की उपाधि से सम्मानित किया। नानचाओ शासन की स्थापना से युननान प्रदेश के विकास में बहुत मदद मिली और वहां रहने वाली विभिन्न जातियों के परस्पर सम्पर्क में वृद्धि हुई।

थूफ़ान जाति के लोग वर्तमान तिब्बती जाति के पूर्वज थे। सातवीं शताब्दी के शुरू में सुङत्सान कानपो नामक शक्तिशाली मुखिया ने छिङहाए-तिब्बती पठार पर बसने वाले तमाम कबीलों को एक किया था। उसने थाङ राजवंश की एक राजकुमारी से विवाह की इच्छा प्रकट की और थाङ सम्राट थाएचुङ ने उसका यह अनुरोध स्वीकार करते हुए राजकुमारी वनछङ का विवाह उससे कर दिया। जब राजकुमारी वनछङ अपने विवाह के बाद तिब्बत गई, तो अनेक प्रकार की सब्जियों के बीज, दस्तकारी की वस्तुएं तथा चिकित्साविज्ञान व तकनालाजी से संबंधित पुस्तकें भी वहां ले गई। तथा से शराब तेयार करने, कागज बनाने, धातु गलाने और कताई-बुनाई करने वाले हान कारीगरों के तिब्बत जाने का सिलसिला शुरु हुआ, और तिब्बत से स्वर्णपात्र, सुलेमानी पत्थर की वस्तुएं, कस्तूरी, घोड़े तथा अन्य वस्तुएं थाङ सम्राट चुड़चुड़ के शासनकाल में चिनछङ नामक एक अन्य थाङ राजकुमारी का विवाह थूफ़ान जाति के मुखिया चीतेचुगतान से कर दिया गया। राजकुमारी वनछङ के तिब्बत पहुंचने के समय से हान और तिब्बती जातियों के बीच आर्थिक व सांस्कृतिक संबंध घनिष्ठ से घनिष्ठतर होते गए।