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(GMT+08:00) 2004-08-25 13:48:11    
ताई जाति का संक्षिप्त परिचय

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चीन की ताई जाति देश की एक खास विशेषता वाली जाति है , जो मुख्यतः दक्षिण पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत के सी श्वांग पान ना ताई जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर ,ते हुङ ताई व चंग जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर तथा अन्य दो ताई स्वायत्त काउंटियों में रहती है ।ताई जाति का लम्बा पुराना इतिहास रहा है , आज से दो हजार वर्ष पूर्व यानी देश के हान राज्य काल में ताई जाति त्यानय्वी कहलाती थी , चीन के अंतिम सामंती राज्य काल यानी छिंग राज्य काल में वह पै-ई कहा जाता था । चीन लोक गणराज्य की स्थापना के बाद इस जाति का नाम औपचारिक रूप से ताई रखा गया , इस समय ताई जाति की जन संख्या दस लाख से अधिक है , वे म्येमार , लाओस तथा वियतनाम से सटे चीन के युन्नान प्रांत के सीमावर्ती क्षेत्र में रहते है ।

 

ताई जाति के लोग बौध धर्म के हीन यान मानते हैं , उन के जीवन में बौध धर्म का बड़ा महत्व होता है । ताई जाति के आबादी क्षेत्रों में बहुत स्थानों पर विशेष वास्तु शैली में निर्मित पगोडा देखने को मिलता है ।

ताई जाति की अपनी भाषा और लिपि है , जो हान तिब्बत भाषा श्रेणी की एक शाखा है , कालांतर में ताई जाति के विभिन्न आबादी क्षेत्रों में कुल चार किस्मों की ताई लिपि प्रचलित थी , चारों लिपियां शुरू में संस्कृत से परिवर्तित कर बनाई गई थी, ताई जाति के लोगों ने ऐसी भाषा में अपना लम्बा इतिहास और संस्कृति कलमबद्ध किए है ।

ताई जाति के लोगों में खाने पीने की अपनी अलग परम्परा है , उन का भोजन विविध रूपों में मिलता है और बहुधा खाटा , तेज और सुगंधित होते हैं । ताई लोग धान की खेती के लिए मशहूर है , दिन के तीन जून का खाना आम तौर पर चावल होता है , चावल चिकना और दाना बड़ा बड़ा होता है । ताई जाति की तरकारी में बैल , मुर्गे , बत्तख , मछली और सुअर के गोश्त शामिल है , तरकारी में खाटा स्वाद ज्यादा है और मिर्च डालना पसंद होता है । मदिरा ताई जाति के पुरूषों की मनपसंद चीज है , खास कर शादी विवाह , त्यौहार और समारोह के मौके पर ताई पुरूष अवश्य अपने साथ मदिरा लेते हैं , नाचने गाने के दौरान मदिरा भी पीते हैं । ताई जाति के लोगों में सुपारी खाने की प्रथा है। चाय भी ताई जाति के लोगों का मनपसंद पेय होता है ,खास कर वहां का फु -अ नामक चाय देश भर में मशहूर है , ताई लोग मिट्टी से बनी छोटी भट्टी में चाय बनाते हैं और जब चाहे पी लेते हैं या मेहमनों को पिला देते हैं ।

ताई जाति के लोग रंगबिरंगे सुन्दर पराधान पहनते है , पुरूष के शरीर पर आमतः सफेद रंग के चुस्त वस्त्र पहनता है , काला रंग के पतलून लगता है और सिर पर पगड़ी जैसा सफेद रंग का पट्टा बंधता है , ताई जाति की स्त्रियों के पराधान बहुत सुन्दर और रंगबिरंगे होते है , गर्म मौसम वाले प्रदेश में रहने के कारण ताई जाति की स्त्रियों का कपड़ा पतला और चुस्त होता है , उन के शरीर पर ताजा रंगों के चोली सरीखा कपड़ा और नीचे लम्बा तंग विशेष स्कर्ट पहनता है , जिसे थुंग छ्यन कहलाता है । जब वे टोली टोली में बाहर घूमती चलती है , तो देखने में जान पड़ता है कि खूबसूरत पक्षियां उड़ती फिरती हो । वेश भूषा की अलग पहचान होने के कारण ताई जाति के वस्त्रों का सांस्कृतिक महत्व माना जाता है ।

ताई जाति में एक विवाह की प्रथा है , पारिवारिक जीवन का बड़ा महत्व होता है , पति पत्नी तथा संतान में बड़ा मेलमिलाप होता है और परिवार में वृद्ध वृद्धाओं का खासा समानादर होता है और पारिवारिक जीवन में ताई जाति का नैतिक अवधारण अभिव्यक्त हुआ है ।

ताई जाति की परम्परा के अनुसार युवाओं में प्रेम और विवाह की अनोखी प्रथा चलती है । ताई जाति में प्रेम का विवाह होता है । युवक युवती में विभिन्न मौकों और तरीकों के संपर्क से जब प्रेम की भावना पैदा हुई , तो वे सगाई तथा विवाह का प्रस्ताव पेश करने तथा दहेज देने की औपचारिकता जरूर पूरा कर देते हैं ।

सगाई के लिए पहले वर बधु के जन्म पत्री मिलाये जाते हैं , दोनों पक्षों के जन्म के वर्ष . महीने , तिथि तथा वक्त प्रदान किये जाते हैं और ज्योतिषी या पंडित से यह तय किया जाता है कि यह विवाह ठीक है अथवा नहीं । यदि जन्म पत्री नहीं मिलता है , तो विवाह का संबंध तोड़ा जा सकता है । हां , वर बधु के अमिट प्रेम को देखते हुए बहुधा माता पिता उन का प्रेम विवाह मान जाते हैं और फिर कुछ धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन कर कमियों की पूर्ति की जाती है ।

ताई जाति की परम्परा के अनुसार शादी ब्याह का रस्म वर बधु दोनों के घरों में आयोजित होता है । यदि वर बधु के परिवार में जमाई बनता है , तो विवाह का रस्म बधु के घर में होता है , इस मौके पर वर अपने रिश्तेदारों के साथ बधु के घर जाता है , रास्ते में बंदुक दागा जाता है , जिस का अर्थ है अशकुन से बच जाना । बधु के घर के दरवाजे के सामने वर को कई अनेक बाधाओं को लांघ जाना पड़ता है , तभी वह अपनी बधु को घर वापस ले सकता है और वर के घर में पुनः औपचारिक विवाह रस्म आयोजित होता है ।

ताई जाति के कुछ आबादी क्षेत्रों में दुल्हन छीनने की प्रथा प्रचलित है ,यह एक अनोखी विवाह परम्परा होती है । प्रथा के अनुसार जब किसी लड़के और लड़की में प्रेम का पक्का संबंध हो गया , तो दोनों में दुल्हन छीनने की पूर्व योजना तय की जाती है , जिस में दुल्हन छीनने का स्थल , समय और गुप्त संकेत निश्चित हुए हैं । योजना के अनुसार दुल्हा अपने कुछ युवा साथियों को ले कर कोई शस्त्र और सिक्के के साथ निश्चित समय पर निश्चित स्थल जाते है , जबकि लड़की किसी बहाने से भी वहां पहुंच जाती है , लड़की लड़कों के पास पहुंची , तो गुप्त संकेत दिया जाता है और दुल्हे के साथ आए साथी बाहर निकल कर दुल्ही को छीन कर ले गए , इस मौके पर लड़की हाहाकार व बचाओ बचाओ की आवाज देती रही , दुल्हन के परिवारजन आवाज सुनने के बाद लड़के का पीछा करने लगे , दुल्हा पक्ष के लोगों ने भाग जाते हुए रास्ते पर सिक्के फेंक दिए , जब दुल्ही पक्ष के लोग सिक्के बटोरने में लगे ,तो दुल्हा पक्ष लड़की को उठा कर घर ले जाता है और वहां लड़की को दुल्हन के रूप में सजा संवार कर पेश किया जाता है और पड़ोसी के लोग बधाई देने आ पहुंचते है । इस के बाद लड़का पक्ष लड़की के घर जा कर लड़की का हाथ मांगता है और लड़की पक्ष भी उस की मांग को स्वीकार लेता है । यह अनोखी प्रथा आधुनिक युग में कम प्रचलित हो गई है , पर कुछ जगहों में यही देखने को मिलता है ।

ताई जाति में पुरूष प्रधान छोटा परिवार की प्रथा है , जिस में पतिपत्नी और उन की संतान है , आम तौर पर इस में केवल दो पीढियां और तीन चार सदस्य हैं । विवाह के बाद नवदंपति अपने मां बाप से अलग हो कर अपना ही घर बसाते हैं ।इस प्रकार के परिवार में पति और पत्तनी की चीजें अलग अलग विभाजित होती हैं और वे खुद अपनी चीजें संभालते हैं ।