आज के इस कार्यक्रम में हम कोआथ, बिहार के राकेश रौशन, शेख जफर हसन, हरद्वार प्रसाद केशरी और आजमगढ़, उत्तरप्रदेश के फय्याज अन्सारी के प्रत्र शामिल कर रहे हैं।
पहले कोआथ, बिहार के राकेश रौशन, शेख जफर हसन और हरद्वार प्रसाद केशरी का पत्र देखें।
उन्होंने पूछा है कि थांग राजवंश की स्थापना कब हुई और उसकी प्रमुख उपलब्धियां क्या थीं।
दोस्तो, थांग राजवंश काल चीन के इतिहास का सब से शानदार काल था। थांग राजवंश का अर्थतंत्र समृद्ध था और उसकी शानदार संस्कृति के कारण चीनी सामंतवाद में उभार आया। थांग राजवंश की सभ्यता का जापान और कोरिया जैसे देशों और क्षेत्रों पर भी प्रभाव पड़ा। कहा जा सकता है कि थांग राजवंश तत्कालीन विश्व का सर्वाधिक शक्तिशाली व प्रगतिशील देश था।
चीन के इतिहास में दो राजवंश -थांग और हान सब से ताकतवर माने जाते हैं। थांग राजवंश का इतिहास 290 साल पुराना है। इस राजवंश में कुल 22 सम्राट हुए।
थांग राजवंश के सम्राट ली शी-मीन के शासन की शुरुआत यानी वर्ष 619 से बाद के एक सम्राट ली लूंग-जी के शासन काल के पूर्वार्द्ध तक समाज का बड़ा विकास हुआ। इस दौरान अर्थतंत्र, राजनीति, सैन्य बल, कूटनीति और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में अभूतपूर्व समृद्धि हुई। तब के विश्व में चीन एक बहुत शक्तिशाली देश था।

सम्राट ली लूंग-जी के शासन काल के उत्तरार्द्ध में आन लू-शान और शी सी-मिंग के सैन्य विद्रोहों के कारण राजवंश कमजोर पड़ता गया और आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य क्षेत्रों में सम्राट अधिकार खो बैठे।अंत में स्थानीय सामंतों ने राजवंश से पृथक एक स्वतंत्र सत्ता स्थापित की।
थांग राजवंश के पूर्ववर्ती स्वी राजवंश का तख्ता उलटने के लिए किसानों ने विद्रोह करना शुरू किया तो स्वी राजवंशी एक स्थानीय सामंत ली य्वान ने बल प्रयोग से राजधानी झांगआन पर कब्जा कर लिया। वर्ष 618 में ली य्वान ने स्वी राजवंश के स्थान पर थांग राजवंश की स्थापना की और झांगआन को अपनी राजधानी बनाया। ली य्वान थांग राजवंश के संस्थापक या प्रथम सम्राट थे। उन्हों ने अपने पुत्र ली शी-मीन के साथ मिलकर स्तानीय युद्ध सामंतों और किसानों के विद्रोहों को पराजित कर देश को एकीकृत किया।
वर्ष 626 में चीनी पंचांग के छठे माह के चौथे दिन सम्राट ली य्वान के दूसरे पुत्र ली शी-मीन ने अपने विरुद्ध विद्रोह कर रहे अपने दो भाइयों को मार डाला और पिता को राजपद से हटने पर मजबूर कर दिया।
इसी वर्ष आठवें माह में ली शी-मीन राजसत्ता के अधिकतर मंत्रियों और सेनापतियों के समर्थन से राज्यारूढ़ हुए। ली शी-मीन चीन के एक बहुत मशहूर सम्राट माने जाते हैं।
वर्ष 627 में सम्राट ली शी-मीन ने अपने रक्षामंत्री और मशहूर सेनापति ली चिंग को तुर्क लोगों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए भेजा। इस अभियान में उनकी भारी जीत हुई, इस तरह चीन का पश्चिमी क्षेत्र शांत हो पाया। इस बीच ली शी-मीन ने देश को एकीकृत और राजतंत्र की केन्द्रीय व्यवस्था को मजबूत बनाए रखने के लिए अनेक कदम उठाए।
ली शी-मीन के शासनकाल में राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्रों में सुधार चलाये गये। इस से थांग राजवंश के दौरान चीन का अभूतपूर्व विकास हुआ। ली शी-मीन के शासनकाल को बाद के लोगों ने रामराज्य माना।
वर्ष 649 के चौथे माह में ली शी-मीन का निधन हुआ और उनके पुत्र ली जी ने राजपद संभाला। वर्ष 655 में ली जी ने उ जे-थ्येन के साथ विवाह कर उन्हें महारानी की उपाधि दी। इसके तुरंत बाद उ जे-थ्येन ने शासन में हाथ डालना शुरू किया। वर्ष 683 में ली जी का रोग के कारण निधन हो गया, तो उन के तीसरे पुत्र को ली श्येन को राजदंड हासिल हुआ। पर महारानी उ जे-थ्येन ने तुरंत ली श्येन को राजगद्दी से उतार कर अपने चौथे पुत्र ली दान को सम्राट बना दिया।
वर्ष 690 में उ जे-थ्येन ने थांग राजवंश को चओ राजवंश के रूप में बदल कर राजदंड अपने हाथ में ले लिया। चीन के इतिहास में वे एकमात्र साम्राज्ञी हुईं।
उ जे-थ्येन ने चीन के राजनीतिक और आर्थिक विकास को और आगे बढ़ाया। कृषि उत्पादन में तेजी को प्रेरित करने के लिए उन्होंने खुद खेतीबारी पर एक पुस्तक तैयार की। थांग राजवंश की भौतिक संपत्ति जुटाने में उन का विशेष योगदान रहा। पर जब उन्होंने चाटुकारों पर भरोसा करना शुरू किया तो राजसत्ता के अनेक मंत्री बड़े नाराज हुए और उन्होंने विप्लव कर उन्हें सत्ताच्युत कर दिया। इस तरह चीन की एकमात्र साम्राज्ञी का अंत हो गया।
नये थांग सम्राट ली श्येन बहुत कमजोर और अक्षम थे। इसलिए राज्य की बागडोर महारानी के हाथ में आ गई। यह हालत भांप कर पूर्व सम्राट ली दान के पुत्र ली लूंग-जी ने राजसत्ता पर अधिकार जमा बैठे। ली लूंग-जी भी थांग राजवंश के सक्षम सम्राट माने जाते हैं।
ली लूंग-जी के शासनकाल में देश का अर्थतंत्र काफी समृद्ध था और सामंती समाज उभार पर। उस वक्त चीन विश्व का सब से शक्तिशाली देश था।
सम्राट ली लूंग-जी ने भी मूर्खता की। राजनीति में भ्रष्ट अधिकारियों, और चाटुकारों पर भरोसा ऱखने के चलते उन्हें आन लू-शान और शी सी-मिंग के विर्दोह का सामना करना पड़ा। इस के बाद थांग राजवंश में विकार आने लगे। कृषि उत्पादन को भारी क्षति पहुंची और युद्ध सामंतों ने स्थानीय सत्ता को साम्राज्य से पृथक करने के प्रयास शुरू कर दिये।
वर्ष 876 में वांग श्यान-जी और ह्वांग झाउ ने अलग-अलग तौर पर किसानों के विद्रोह की शुरुआत की। 8 साल तक चलने के बाद ये विद्रोह नाकाम रहे, पर इन्हों ने थांग साम्राज्य की नींव हिला दी थी।
थांग राजवंश के समय राजनीति, अर्थतंत्र, संस्कृति जैसे क्षेत्रों और विदेशों के साथ संबंधों में चीन ने उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की।
अर्थतंत्र के विकास के इस दौरान व्यापार में भी तेजी आई। व्यापारियों की धन-संपत्ति की सुरक्षा व धन भेजने की व्यवस्था भी इस दौरान विकसित हुई। धर्म, संस्कृति, साहित्य, इतिहास, विज्ञान व तकनीक के क्षेत्रों में प्रगति होने के साथ थांग राजवंश में ह्वेन सांग जैसे भिक्षु, ली बेई और दू फ़ू जैसे कवि, ल्यू जी-ची जैसे इतिहासकार, ईशिंग जैसे खगोलशास्त्री और सुन सी-म्याओ सरीखे चिकित्साविज्ञानी हुए।
यहां आपको बौद्धमत के आचार्य ह्वेन सांग की संक्षिपत जानकारी देते चलें। ह्वेन सांग 13 साल की उम्र में ही भिक्षु बन गये और पांच साल बाद राजधानी झांगआन पहुंचे। उन्होंने अपने झांगआन प्रवास के दौरान वहां उपलब्ध बौद्ध सूत्रों का अध्ययन किया और बौद्ध मत के गहन अध्ययन के लिए भारत की यात्रा की। उन्होंने चीन औऱ भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भारी योगदान किया।
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