लीजिए, अब हम अजामगढ़, उत्तर प्रदेश के मोहम्मद सादिक, महफूज अहमद जियाउररहमान,रियाज अहमद, जमील अहमद और उनके अन्य 15 साथियो और हुगली पश्चिम बंगाल रवी शंकर बसु व धनबाद के अनिल कुमार के पत्र हाजिर हैं। हमारे सामने इन पत्रों में पूछा गया है कि चीन में वनों का क्षेत्रफल कितना है, वन-भूमि देश की कुल भूमि की लगभग कितना प्रतिशत होंगी।
लगता है कि हमारे इन दोस्तों को चीन की प्रकृति के बारे में विशेष जिज्ञासा है, अच्छा, तो हम उसे बुझाने का पूरा प्रयास करते हैं।
चीनी राजकीय वानिकी प्रशासन के निदेशक श्री चओ शंग-श्येन ने हाल ही में चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा के एक सत्र में जानकारी दी कि वर्ष 2000 के अंत तक. चीन का वन-क्षेत्र 1 अरब 58 करोड़ हैक्टर था, और काष्ठ भंडार रहा 12 अरब 49 करोड़ घन मीटर, देशभर की वन भूमि अब 16.55 प्रतिशत तक जा पहुंची है और कृत्रिम वन का क्षेत्रफल 4 करोड़ 70 लाख हैक्टर है, जो विश्व में पहले स्थान पर है।
श्री चओ शंग-श्येन के अनुसार, इस समय विश्व की वन भूमि दुनिया की कुल जमीन का 27 प्रतिशत है, बेहतर पारिस्थितिकी के लिए इस का विस्तार 30 तक प्रतिशत होना जरूरी है। चीन ने वन भूमि के विस्तार के लिए एक विशेष योजना बनाई है। इस के तहत, वर्ष 2010 तक देश की कुल भूमि में वनक्षेत्र का अनुपात 19.4 प्रतिशत हो जाएगा, जो वर्ष 2030 में 24 प्रतिशत तक जा पहुंचेगा, और वर्ष 2050 में 26 प्रतिशत के अंक को छू रहा होगा।
अब लेते है आजमगढ़, उत्तर प्रदेश के कयाम मेहती, जावेद हैदर मजीदी और शहीद हसन अंसारी का पत्र। उनका सवाल है प्राचीन काल में तिब्बत के दुर्गम रास्ते पर आवागमन के साधन क्या थे।
प्राचीन समय में चीन के तिब्बत में यातायात बहुत दुर्गम था। तिब्बत पठार पर स्थित है और उसकी भौगोलिक परिस्थिति बेहद जटिल है। तब वहां राज मार्ग की व्यवस्था नहीं ही थी। अर्थतंत्र अविकसित था। इस कारण परिवहन व यातायात में आम तौर पर घोड़े, याक, गधे व खच्चर का प्रयोग किया जाता था। एक जगह से दूसरी जगह के लिए डाक भी घोड़े पहुंचाने थे। गरीब लोगों को पैदल चलना पड़ता था।
तब सछ्वान प्रांत के याआन या छिंगहै प्रांत की राजधानी शीनिंग जैसे स्थान तिब्बत से टेढ़े-मेढ़े रास्ते या पगडंडी से जुड़े थे। नदी पार जाने के लिए तार या गाय की खाल से बने बेड़े पर भरोसा रखना होता था। ल्हासा जाने में तीन-चार महीने लग जाने थे। वर्ष 1951 में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति हुई, तो तिब्बत तक आवश्यक पदार्थों व साज-सामान की ढ़ुलाई में केन्द्र सरकार ने 40 हजार से भी ज्यादा ऊंटों की मदद ली। पर एक किलोमीटर का रास्ता तय करने में औसत 12 ऊंट जान दे देते थे।
वर्ष 1952 में दसवें पंचन लामा तिब्बत लौटे। उनके साज-सामान की ढ़ुलाई के लिए केन्द्र सरकार ने 4500 घोड़े, 3000 ऊंट, 13500 याक और 2500 खच्चर जाने दिये और 2000 किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद इन में से 3000 पशु मर गए।
सारे तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद के 52 वर्षों में इस क्षेत्र के परिवहन व यातायात का कायापलट हो गया है। तिब्बती अर्थतंत्र को विकसित करने के लिए केन्द्र सरकार ने सछ्वान व छिंगहै प्रांतों से तिब्बत तक जाने वाले राज मार्गों के निर्माण का निर्णय लिया। तीन सालों में इन दो राज मार्गों का निर्माण पूरा भी हो गया। अब चीन के भीतरी इलाके से ल्हासा तक पहुंचने वाले चार राजमार्ग तैयार हैं, और तिब्बत स्वायत प्रदेश में सड़कों का जाल ने हर गांव को एक दूसरे से जोड़ दिया है।
श्री वांगला, शेथुंगमन जिले के एक कस्बे के मुखिया रह चुके हैं। उनका कहना है कि चालीस वर्ष पहले वे जब अक्सर ग्राम जाते, तो यह रास्ता उन्होंने पैदल तय करना पड़ता था, यों कभी कभी वे घुड़सवारी भी करते थे। तब नगर में साइकिलें बहुत कम होती थीं। आज का तिब्बत स्वायत प्रदेश एकदम बदल गया है, साइकिल की क्या बात है, अनेक तिब्बती लोगों के पास मोटर गाड़ियां तक हैं।
व र्तमान में तिब्बत स्वायत प्रदेश के राज मार्गों की कुल लम्बाई है 27 हजार किलोमीटर। वर्ष 2001 से 2005 तक की दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान केन्द्र सरकार ने स्वायत प्रदेश में राजमार्ग के निर्माण की 51 मदों में कुल 12 अरब य्वान का खर्च करने का फैसला लिया है।
यही नहीं वायु सेवाओं ने भी तिब्बत स्वायत प्रदेश को भीतरी इलाकों से जोड़ा है। इधर छिंगहै प्रांत से ल्हासा पहुंचने वाली रेल मार्ग का निर्माण जोरों पर है। चंद वर्षों में तिब्बती रेल गाड़ी की सवारी का भी मजा ले सकेंगे।
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