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(GMT+08:00) 2004-08-10 19:39:37    
निरंतर विकसित चीन का अर्थतंत्र

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इस वर्ष की पहली अक्तूबर चीन लोक गणराज्य की स्थापना की 55वीं वर्षगांठ है। पिछले 55 वर्षों में चीन के अर्थतंत्र के तेज विकास ने दुनिया की नज़र खींची है। चीनी अर्थतंत्र की तेज़ वृद्धि ने देश के अन्य क्षेत्रों की प्रगति की भी नींव डाली है।

55 वर्ष पहले, नये चीन का निर्माण अत्यन्त कठिन स्थिति में हुआ। चीन लोक गणराज्य की स्थापना के समय साम्राज्यवादियों के सौ वर्षों के अतिक्रमण व लूट औऱ लम्बे अरसे तक जातीय स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र की प्राप्ति के लिए चले संघर्ष से खासा टूटा हुआ था। तब के चीन का औद्योगिक आधार बहुत कमजोर था, कृषि उत्पादन बहुत कम था और देश में मालों का भारी अभाव था। चीनी जनता ने अपने देश का निर्माण ऐसी कठिन स्थिति में शुरू किया।

पिछले 55 वर्षों की अपनी विकास प्रक्रिया में पहले 30 वर्ष चीन लोक गणराज्य मोटे तौर पर सोवियत संघ के विकास ढांचे के अनुसार चला और उसने योजनाबद्ध राष्ट्रीय अर्थतंत्र पर कार्यान्वयन किया। इस दौरान, चीन का भारी विकास हुआ । जनजीवन स्तर भी काफी हद तक उन्नत हुआ लेकिन, योजनाबद्ध अर्थतंत्र के ढांचे की कुछ गलतियों से अनेक समस्याएं भी उत्पन्न हुईं। 1970 के दशक के अंत में, चीन को आर्थिक विकास में भारी बाधा का सामना करना पड़ा। इस के बाद चीनी नेताओं ने अर्थव्यवस्था में रूपांतरण शुरू किया यानी उसे उच्चस्तरीय योजनाबद्ध अर्थतंत्र से समाजवादी बाजार अर्थतंत्र में बदला जाने लगा। इस बीच अंतरराष्ट्रीय तनावपूर्ण परिस्थिति में शैथिल्य आने के साथ चीन ने विदेशों के लिए चौतरफा खुलेपन की नीति अपनानी शुरू की।

1970 के दशक के अंत में शुरू हुए आर्थिक रूपांतरण व खुलेपन से चीन के अर्थतंत्र को अपूर्व जीवनी शक्ति मिली और उसका युगांतर विकास हुआ। चीनी राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, 1978 से 2003 तक के पचीस वर्षों के दौरान, चीन की आर्थिक वृद्धि दर 9 प्रतिशत से ज्यादा रही।

अनेक वर्षों के तेज़ विकास ने चीन सरकार को चीनी जनता के जीवन में सुधार लाने का आधार दिया। पिछले लगभग 20 वर्षों में चीन सरकार की मदद से 20 करोड़ लोगों को गरीबी से छुटकारा मिला। आज चीन की जनसंख्या 1 अरब, 30 करोड़ तक जा पहुंची है। पिछले वर्ष प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद पहली बार 1000 अमरीकी डॉलर से अधिक रहा। 

चीन के आर्थिक विकास की अंतरराष्ट्रीय अर्थजगत के मशहूर विशेषज्ञों ने प्रशंसा की है। अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले अमरीकी प्रोफेसर श्री लॉरेन्स क्लेइन चीन के आर्थिक विकास की चर्चा में कहते हैं, जब आप चीन को देखते हैं और उसके लोगों के जीवन में हुए परिवर्तन को देखते हैं, तो चीनी अर्थतंत्र में वृद्धि पर संदेह नहीं कर पाते हैं।

लगातार विकास प्रक्रिया जारी रखने वाले चीन के अर्थतंत्र का अब विश्व अर्थतंत्र के साथ और घनिष्ठता से मेल होने लगा है। चीन की खुलेपन की नीति साल दर साल गहराती गई है। वर्ष 2001 में चीन विश्व व्यापार संगठन में शामिल हुआ। अब वह एशियान के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना पर वार्ता कर रहा है। साथ ही अमरीका, यूरोपीय संघ आदि आर्थिक समुदायों के साथ द्विपक्षीय व बहुपक्षीय सहयोग पर भी जोर देता है। इधर के वर्षों में चीन में कस्टम करों का स्तर कम होता गया है। औसत कर वसूली की दर वर्ष 2001 के 15.3 प्रतिशत की तुलना में अब 10.4 प्रतिशत है।

वर्ष 2003 में चीन के कुल विदेश व्यापार का मूल्य 8 खरब अमरीकी डॉलर था और विश्व में इस क्षेत्र में वह चौथे स्थान पर रहा तथा केवल अमरीका, जर्मनी, जापान के बाद आय। इस वर्ष जून माह तक, चीन ने कुल 5 खरब अमरीकी डॉलर की विदेशी पूंजी आकृष्ट की। वर्ष 2003 वह विदेशी पूंजी आकृष्ट करने वाला सब से बड़ा देश रहा। इधर चीन का आयात औऱ विदेशों में चीन का पूंजी निवेश भी बढ़ रहा है। अब चीन विश्व का तीसरा बड़ा आयातक और विदेशों में पूंजी लगाने वाले पांचवां देश बन गया है।

चीनी नेता अनेक बार कह चुके हैं कि चीन विश्व के लिए अपने बाजार को और खोलेगा। कुछ समय पहले, चीनी उप प्रधानमंत्री सुश्री वू ई ने एक अंतरराष्टीय आर्थिक सम्मेलन में यह वचन भी दिया, खुलेपन का विस्तार चीन सरकार द्वारा लम्बे अरसे से अपनायी गयी बुनियादी नीति है। चीन खुलेपन को सर्वतुमुखी रूप से विस्तृत करेगा, कर वसूली को कदम ब कदम रद्द करेगा और विदेशी व्यापारियों के पूंजी निवेश के दायरे को भी बढ़ायेगा।

रिपोर्टों के अनुसार, चीन दूर संचार, बैंकिंग, बीमा और खुदार व्यापार आदि क्षेत्रों में बाजार के अनुमोदन की शर्तों में और शैथिल्य लाएगा।

हाल के वर्षों में आर्थिक पैमाने के निरंतर विस्तृत होने के साथ चीन में अर्थतंत्र में भी परिवर्तन आये हैं। इस बीच चीन में पर्यावरण को प्रदूषित करने या संसाधनों की फिजूखर्ची करने वाले उद्योगों व व्यवसायों के विकास को सीमित किया गया है औऱ अनवरत विकास की रणनीति का कार्यान्वयन किया जा रहा है। चीनी राष्ट्रीय सांख्यकी ब्यूरो के उप प्रधान श्री छ्यो श्याओ ह्वा कहते हैं, अब परम्परागत श्रमिक व्यवसाय चीनी अर्थतंत्र के तेज विकास का स्तंभ नहीं रह गया है, बल्कि पूंजी व तकनीक पर आधारित व्यवसाय चीन के आर्थिक विकास में अधिकाधिक अहम भूमिका अदा करने लगे हैं।

चीन और विश्व के अर्थतंत्र के संबंधों की चर्चा में अनेक अर्थजगत के सूत्रों का विभिन्न मंचों पर यही कहना रहा है कि चीन का आर्थिक विकास विश्व के अर्थतंत्र की समृद्धि व विकास के लिए लाभदायक है। चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के विश्व अर्थतंत्र व राजनीतिक अनुसंधान संस्थान के डॉक्टर ह फेई ही इस कथन से सहमत हैं। वे कहते हैं,चीन के विकास ने विश्व के आर्थिक विकास में भूमिका अदा की है। एक ओर, चीन का पुनरुत्थान विकसित देशों के व्यवसायों के ढांचे का बंदोबस्त तेज करने में मददगार बना है और चीन ने उनके लिए पूंजी निवेश का एक अच्छा स्थल बना है तो दूसरी ओर, चीन का पुनरुत्थान पड़ोसी विकासमान देशों को विकास के और मौके दे रहा है।