अच्छा, सब से पहले उठाए हुगली, पश्चिमी बंगाल के रवीशंकर बसु का पत्र। उन्होंने पूछा है कि भारतीय समय और चीनी समय में कितना अंतर है।
वर्ष 1884 में अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में अंतरराष्ट्रीय मध्याह्नरेखा सम्मेलन हुआ। सम्मेलन ने ब्रिटेन की ग्रीविच वेधशाला की मध्याह्नरेखा को मानक समय पैमाने पर शून्य मानते हुए इस वेधशाला के देशान्तर समय को मानक समय का दर्ज दिया। विश्व के लिए समय व्यवस्था 24 स्थानीय समय क्षेत्रों में विभाजित की गई। ग्रीविच वेधशाला लंदन में है, और भारत उसके पूर्वी ओर पांचवे समय क्षेत्र में है, और भारतीय समय ग्रीविच मानक टाइम या जी एम टी से साढ़े पांच घंटे आगे है।
चीन का भूभाग बहुत विशाल है, और वह पूर्व के पांचवे से नौवें के बीच पांच समय क्षेत्रों में आता है। राजधानी पेइचिंग आठवें समय क्षेत्र में स्थित है। चीन लोक गणराज्य की स्थापना के बाद पेइचिंग समय को चीन का मानक समय करार दिया गया। पेइचिंग समय जी एम टी से आठ घंटे आगे है।
तो अब आपको जानकारी मिल गई होगी कि चीन और भारत के समय के बीच ढाई घंटे का अन्तर है।
श्रोता दोस्तो, आइए अब एक और विषय की ओर मुड़े। धनबाद के अनिल कुमार हमें पंखों की दुनिया में ले जाना चाह रहे हैं, वे पूछते हैं कि क्या पंखे का आविष्कार चीन में हुआ था?हम कहेंगे आप ने ठीक कहा और अब हम आपको दे रहे हैं पंखे के बारे में विस्तृत जानकारी।
चीन के प्राचीन ग्रंथों में दिए प्रभागों के अनुसार, चीन में पंखे का इतिहास तीन से चार हजार साल पुराना है। इन ग्रंथों में कहा गया है कि ईसा पूर्व लगभग 17वीं शताब्दी यानी चीन के शांग राजवंश काल में ही पंखा नजर आने लगा था। उस वक्त राजा या मंत्री बाहर जाने के लिए जिस गाड़ी पर सवार होते, इस पर उन्हें धूप या वर्षा से बचाने के लिए शंकु के आकार की छतरी टंगी होती थी, जो गाड़ी के चलने के साथ चक्कर काटती थी, और इस तरह सवारी को शीतलता प्रदान करती थी। शायद यह संसार का सर्व प्रथम पंखा था।
फिर दो हजार पूर्व के हान राजवंश में एक नया पंखा नजर आया। जो पक्षियों के परों से बना था, और इस के एक छोर पर एक लम्बी मूठ लगी थी। यह पंखा भी छतरी की तरह काम में लाया जाता था, जो मच्छर या मक्खी जैसे कीड़ों को भी भगा सकती थी। बाद में राजा के रक्षक दल में इस का प्रयोग शुरू हुआ।
इस वक्त तक चीन में ठंडक देने वाला सही पंखे नजर आने लगे थे। इन में वृत्ताकार और चतुर्भुजाकार पंखे काफी प्रचलित थे। उन में से अधिकांश बांस की पतली पट्टियों, पक्षियों के परों, हाथी दांतों, चंदन की लकड़ियों, कैटेलकी की पत्तियों और रेशम से बने होते। वर्ष 1982 में चीन के हूपेई प्रांत में प्राचीन चीन के युद्धरत काल के खंडहर से एक चतुर्भुजाकार पंखा खोद निकाला गया। यह बांस की पतली पट्टियों से बना था, इसकी मूठ पंखे के एक छोर पर थी। यह पंखा दो हजार 3 सौ साल पुराना माना गया है। यह चीन का सब से पुराना पंखा है। आश्चर्य की बात यह है कि इस के जैसा पंखा आज भारत आदि देशों में भी मिलता है ।
ऐसा वृत्ताकार पंखा आम तौर पर रेशम से बना होता था, और इस पर रंगीन चित्र अंकित होते थे या रंगीन रेशमी धागों से कढ़े होते थे। इन का प्रगोय हवा पाने के अलावा नृत्य-नात्य में भी किया जाता था।
चीन में टूटवां या मुड़वा पंखा भी काफी लोकप्रिय है, इसका चीन के चित्रकला , लिपिशास्त्र और चीनी संस्कृति से घनिष्ट संबंध है, पर आम लोग यह नहीं जानते कि इस की उत्पत्ति जापान में हुई। 11 वीं सदी में यह चीन के सुंग राजवंशकाल में कोरिया से होता हुआ चीन पहुंचा। 300 वर्ष बाद हुए मिंग राजवंश में यह पंखा चीन में बहुत प्रचलित रहा।
ऐसे पंखे पर कविताएं या चित्र खींच कर चित्रकार या लिपिशास्त्री अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन का एक नयामाध्यम पाया। उन के नाम पंखे दुर्लभ हो गए, और आज लोगों को देय मूल्यवान भरे अंकित बन गए।
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