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(GMT+08:00) 2004-08-02 16:18:16    
चीन ने विश्व विरासतों के संरक्षण कार्य को मजबूत किया

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संयुक्त राष्ट्र की शिक्षा,संस्कृति और विज्ञान से जुड़ी संस्था यूनेस्को का 28वां विश्व विरासत सम्मेलन जून की 28 तारीख से जुलाई की सात तारीख तक पूर्वी चीन के प्राचीन शहर सूचाओ में सफलतापूर्वक आयोजित हुआ । चीन में प्रथम बार विश्व विरासत संबंधी इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। आम विचार है कि इस सम्मेलन का चीन में आयोजन विश्व का चीन के विरासत संरक्षण कार्य का उच्च मूल्यांकन ही है ।

वर्ष 1972 में यूनेस्को ने विश्व विरासत संधि पारित की। चीन वर्ष 1985 में इस संधि में शामिल हुआ। आज चीन की 29 सांस्कृतिक व प्राकृतिक विरासतें विश्व विरासत सूची में शामिल हैं। यह संख्या विश्व में तीसरे स्थान पर है। चीन की इन विश्व विरासतों में थाई शान , ह्वांग शान , अमई शान पर्वतों के अलावा ल शान की महाबुद्ध मूर्ति तथा वू यी शान सांस्कृतिक विरासतों के साथ प्राकृतिक विरासतों की सूची में भी शामिल किये गये हैं। इन के अलावा, चीन के और 100 से स्थलों को विश्व विरासत सूची में शामिल कराने की कोशिश चल रही है। यह संख्या भी विश्व में सब से ऊपर है।

अब चीन सरकार प्राचीन धरोहरों के जीर्णोद्धार के लिए हर वर्ष दस करोड़ रन मिन बी प्रदान कर रही है।

प्राचीन शाही प्रासाद के अलावा, चीन अपनी अन्य विश्व विरासतों के संरक्षण के लिए भी आधुनिक विज्ञान व तकनीक का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग कर रहा है। दक्षिण-पश्चिमी चीन के सी छ्वुआन प्रांत में स्थित ल शान पर्वत की महाबुद्ध मूर्ति विश्व की सब से बड़ी बुद्धमूर्ति मानी जाती है इस की ऊंचाई कोई 71 मीटर है। सैकड़ों वर्षों से हवा-वर्षा सहने के कारण इसे खासी क्षति पहुंची है। इस के कई बार के जीर्णोद्धार के भी नतीजे अच्छे नहीं निकले। गत शताब्दी के 90 वाले दशक में विशेषज्ञों ने पराध्वनि किरणों के जरिए इसका सूक्ष्म विश्लेषण करने और अन्य वैज्ञानिक व तकनीकी तरीकों से इस मूर्ति की जांच की और इस के जीर्णोद्धार के लिए पर्याप्त सूचना जुटाई।

विश्व विरासतों के संरक्षण के लिए चीन सरकार तरह-तरह के कदम उठा रही है। वर्ष 2003 के अंत में देश के संस्कृति मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और निर्माण मंत्रालय आदि विभागों ने एक संयुक्त नियमावली जारी कर स्थानीय सरकारों से मांग की कि वे विश्व विरासतों के विकास एवं प्रबंध में उन की रक्षा को सर्वोपरि स्थान पर रखें। चीन के संबंधित अधिकारियों ने भी चीनी विधि निर्माण संस्था से अपेक्षा की है कि वह विश्व विरासत के पूर्ण संरक्षण का कानून बनायेगी। सूत्रों के अनुसार, चीन इधर अपनी विश्वस्तरीय सांस्कृतिक विरासतों की सूची बना रहा है और साथ ही संबंधित कानूनों का पालन भी कर रहा है ताकि इस वर्ष के भीतर वह विश्व की अभौतिक सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण की संधि में शामिल हो सके।

हाल ही में हुए विश्व विरासत कमेटी के 28 वें सम्मेलन में एक नयी विश्व विरासत परियोजना पर तो विचार-विमर्श हुआ ही विश्व की विरासतों के संरक्षण की एक विश्व रणनीति पर भी विचार-विनिमय किया गया। सम्मेलन में विश्व भर के विशेषज्ञों ने चीन द्वारा विश्व की विरासतों के संरक्षण के क्षेत्र में किए गए योगदान का उच्च मूल्यांकन किया। यूनेस्को के महानिदेशक श्री मत्सूरा ने माना कि इस का श्रेय चीन सरकार द्वारा सांस्कृतिक व प्राकृतिक विरासतों को महत्व दिये जाने को जाता है। उन्होंने कहा कि

चीन सरकार इन विरासतों को महत्व ही नहीं देती, उन की रक्षा भी कर रही है। यों भविष्य में विश्व की विरासतों के संरक्षण में देश की स्थानीय सरकारों व आम नागरिकों के सहयोग को भी मजबूत बनाने की जरूरत होगी और इसके लिए एक कारगर प्रबंध व्यवस्था की स्थापना की जानी चाहिए।

श्री मत्सूरा ने कहा कि चीन सरकार विरासतों के संरक्षण के अपने कार्य में कई चुनौतियों व समस्याओं का भी सामना कर रही है। मसलन चीन की कुछ जगहों में विश्व की ऐसी दुर्लभ विरासतों की रक्षा की पर्याप्त अवधारणा ही नहीं है और कुछ क्षेत्रों में कुछ विरासतों का व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए सीमा से अधिक विकास किया जा रहा है। चीन सरकार के संबंधित विभाग को इन समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।

श्री मात्सूरा ने बल देकर कहा कि विश्व की विरासतों के संरक्षण पर जोर देना अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का एक फौरी कार्य है। विश्वास है कि भविष्य में चीन विश्व की विरासतों के संरक्षण कार्य को और मजबूत कर सकेगा और विश्व विरासतों की रक्षा में और बड़ी भूमिका निभा सकेगा।