आंगन में सुर्यमुखी के चार पौधे उगे थे , उन में से एक पौधा छोटा था , जो सब से देर में भूमि में से अंकरित हुआ निकला था । लेकिन वह अपने अन्य तीन पौधा भाइयों से तेज बढ़ता जा रहा था ।
मैं अवश्य बड़े भाइयों से ऊंचा बढूंगा । सब से छोटा सुर्यमुखी ने कहा , मैं जरूर बढ़ने पर जोर लगाऊंगा , संभव है कि मैं सड़क के किनारे पर खड़े पोप्लर से भी ऊंचा निकलूंगा ।
अपने इस प्रकार के विचार में डूबा था कि अहसा उसे लगा कि नीचे की जमीन में कोई उस का पांव मजबूती से पकड़ रहा है , असल में यह उस की जड़ का काम था , सुर्यमुखी जब लम्बा विकसित हो रहा था , तब उस की जड़ मिट्टी के अन्दर गहरी से गहरी घूसती जा रही थी । जड़ की मजबूती पर उस का तन सीधा खड़ा हो सकता था और मिट्टी से जल तथा उर्वरत्व ले सकता है । सुर्यमुखी के दूसरे तीन पौधे भी इसी तरह बढ़ गए थे ।
यह कैसी मुर्खता हो कि अपनी बहुत सारी शक्ति को जड़ बढ़ाने में लगाता है , मैं ऐसा मुर्ख नहीं हूं , मैं अपनी तमाम शक्ति को शरीर ऊंचा बढ़ाने में लगाऊंगा . मैं आंगन का सब से विशाल पौधा बन जाने की कोशिश करूंगा । छोटे सुर्यमुखी ने मन ही मन सोचा । ऐसा ही किया भी उस ने । कुछ दिनों बाद छोटे सुर्यमुखी का कद सब से ऊंचा बढ़ निकला ।
नमस्ते , उस ने अपना ऊंचा लेकिन पतला शरीर सीधा करके मॉनिंग गलोरी को पुकारा और सिर हिला हिला कर सौजन्य दिखाया ।
मॉनिंग गलोरी की दोनों आंखें फटी सी फुटी रह गई , उस ने कभी नहीं देखा था कि सुर्यमुखी इतला लम्बा पतला पतला सा उगा है । इस सुर्यमुखी का गोलाकार सिर पतले व कमजोर गर्दन पर हिल रहा था , देखने में ऐसा लगता था कि वह अभी टूटेगा ,तो अभी टूटेगा ।
अचानक तेज हवा चली , हवा के झोंके से पोप्लर के कुछ सूखे पत्ते अलग हो कर नीचे गिर पड़े , मॉनिंग गलोरी के दो पीले पत्ते भी झड़े , ओह , वहां सुर्यमुखी के चार पौधों में से अब केवल तीन ही रह गए , वह लम्बा किन्तु पतला वाला पौधा अब जमीन पर गिर कर पसर हो गया ।
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