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(GMT+08:00) 2004-07-26 14:06:49    
चीन और पड़ोसी देश—दूसरा भाग

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आज के इस कार्यक्रम में हम आजमगढ़, उत्तर प्रदेश के मोहम्मद सादिक, महफूज अहमद जियाउररहमान, रियाज अहमद, जमील अहमद और उनके 15 साथियों और हुगली,पश्चिमी बंगाल के रवी शंकर बसु, धनबाद के अनिल कुमार, मऊ, उत्तर प्रदेश के राजेन्द्र यादव भारती, उषा देवी भारती, दीपाजंली, और भागलपुर बिहार की नाजनी हसन,तथा तमन्ना हसन के प्रत्र शामिल कर रहे हैं।

आइए अब लें चीन-भारत संबंधों की विस्तृत जानकारी।

भारत चीन के सिंच्यांग वेइगुर स्वायत प्रदेश व तिब्बत स्वायत प्रदेश से जुड़ा है। दोनों देशों के संबंधों का इतिहास 2000 वर्ष पुराना है, और दोशों के बीच बहुत मजबूत दोस्ती है। 1 अप्रैल, 1950 को, दोनों के बीच राजनयिक संबंध कायम हुए। पर वर्ष 1962 में दुर्भाग्यवश दोनों में सीमा विवाद पर मुठभेड़ हुई, जिसने दोनों के संबंधों पर खासा प्रभाव डाला। वर्ष 1976 में, दोनों ने एक दूसरे के यहां फिर से राजदूत भेजने का फैसला लिया, जिस से द्विपक्षीय संबंधों में नये अध्याय का आरम्भ हुआ। वर्ष 1979 में तत्कालीन विदेश मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार चीन की यात्रा की। इस के जवाब में चीनी विदेश मंत्री श्री ह्वांगह्वा ने वर्ष 1981 में भारत का दौरा किया।

वर्ष 1984 में दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता संपन्न हुआ। दिसंबर 1988 में तब के भारतीय प्रधान मंत्री श्री राजीव गांधी ने चीन की सफल यात्रा की। इस से द्विपक्षीय संबंध नई मंजिल में दाखिल हुए। दोनों पक्षों ने मंजूरी दी कि आपसी सीमा विवाद का अंतिम समाधान होने तक वे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखने के उभय प्रयास करेंगे, और परस्परागत संबंधों में सुधार लाने के भी।

दिसंबर, 1991 में, चीनी प्रधान मंत्री ली फंग ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों में चतुर्मुखी सुधार आया। इस के बाद दोनों दोशों के बीच उच्च स्तरीय आवा-जाही का दौर शुरू हुआ। चीन के मुम्बई स्थित वाणिज्य दूतावास और भारत के शंघाई स्थित वाणिज्य दूतावास ने फिर से काम करना शुरू किया।

सितंबर, 1993 में, भारतीय प्रधान मंत्री नरसिंहा राव चीन आए। उनकी यात्रा से भी द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती मिली।

नवंबर, 1996 में चीनी राष्ट्राध्यक्ष श्री ज्यांग जे-मीन ने भारत की सफल यात्रा की। यह दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद किसी चीनी राज्याध्यक्ष की पहली भारत यात्रा थी। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के नेताओं के बीच लाभकारक वार्ताएं हुईं।

मई 1998 में भारत ने चीन से खतरे के बहाने नाभिकीय प्रीक्षण किया। उसके चीन पर आरोप लगाये से द्विपक्षीय संबंधों को भारी नुकसान पहुंचा। इस के बाद भारत सरकार ने विभिन्न तरीकों से चीन से संपर्क साथ कर द्विपक्षीय संबंधों में सुधार लाने का प्रयास किया। जून, 1999 में, भारतीय विदेश मंत्री श्री जसवंत सिंह ने चीन की यात्रा की। जो द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की प्रतीक मानी गई।

मई, 2000 में, भारतीय राष्ट्रपति के आर नारायणन ने भारत-चीन राजनयिक संबंधों की 50 वीं वर्षगांठ के सुअवसर पर चीन की यात्रा की। और वर्ष 2001 के जनवरी माह में चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा की स्थाई समिति के अध्यक्ष श्री ली फंग ने भारत की यात्रा की। वर्ष 2002 के जनवरी माह में चीनी प्रधान मंत्री श्री जू रून-जी ने भारत की यात्रा की।

गत वर्ष के अप्रैल माह में भारतीय रक्षा मंत्री श्री जॉर्ज फर्नांडीज सार्स की परवाह न कर भारतीय प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा की तैयारी के लिए चीन आए। 22 से 27 जून के बीच अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की सफल यात्रा की। इस दौरान दोनों पक्षों ने 《चीन लोक गणराज्य व भारत गणराज्य के संबंधों के सिद्धांत व सर्वांगीण सहयोग के घोषणा-पत्र》पर हस्ताक्षर किये। श्री वाजपेयी जी की चीन यात्रा से चीन-भारत संबंधों में एक नये अध्याय का आरम्भ हुआ है।

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