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(GMT+08:00) 2004-07-21 16:04:44    
वेवूर जाति का संक्षिप्त परिचय

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वेवूर जाति चीन की एक बहुत पुरानी अल्प संख्यक जाति है , जो देश के उत्तर पश्चिम भाग में रहती है । वेवूर भाषा में वेवूर का अर्थ एकता है । ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में वेवूर जाति के पूर्वज घूमंतू पशुपालन जीवन बिताते थे । सातवीं शताब्दी में उन्हों ने ह्वी-ह राज्य की स्थापना की । नौवीं शताब्दी में वे आज के सिनच्यांग क्षेत्र में स्थानांतरित हुए और वहां उन के विभिन्न जातियों के साथ विलय से वेवूर जाति का जन्म हो गया । वेवूर जाति के लोग मुख्यतः खेतीबाड़ी करते हैं , उस की कपास उत्पादन क्षमता और अंगूर की बागबानी देश में बहुत नामी है । नए चीन की स्थापना के बाद पहली अक्तूबर 1955 को वहां सिनच्यांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश स्थापित हुआ । वर्तमान में वेवूर जाति के अधिकांश लोग सिनच्यांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश के विभिन्न स्थानों में रहते हैं , कुछ लोग दक्षिण चीन के हु नान प्रांत की कुछ काउंटियों में रहते हैं । इस समय वेवूर जाति की कुल जन संख्या 72 लाख से अधिक है ।

वेवूर जाति नाचने गाने के प्रेमी जाति है , उस के सभी लोगों को चाहे बड़े हो अथवा छोटे , नाचना गाना आता है । त्यौहारों , शादी ब्याह के अवसरों तथा विभिन्न प्रकार के समारोहों पर वे नाचते गाते दिखते हैं । उन के नृत्य गान में बड़ा उत्साह और उमंग भरा हुआ है और नाचों की भंगिमाएं खूबसुरत और आकर्षक है । आम तौर पर शुरूआत किसी एक व्यक्ति के गाने से होती है और गाने का साथ देते हुए तबला बजाया जाता है , फिर उस के स्वर में स्वर मिलाते हुए उपस्थित सभी लोग गाने नाचने लगते हैं । वेवूर संगीत गीत अत्यन्त मधुर और उल्लासपूर्ण है , ताल तेज होता है और लय लहरदार होता है। वे जोड़ी जोड़ी में नाचना पसंद करते हैं , तेजस्वी ताल लय पर घूमते हैं , चक्कर लगाते है और हाथ पांव नाचते हैं । चीन में वेवूर नृत्य गान का खासा बड़ा महत्व होता है और वह हर जगह लोकप्रिय होता है । अन्य जातियों के लोग भी अकसर वेवूर के गीत संगीत गुनगुन देते हुए सुनाई देते हैं ।

वेवूर का शास्त्रीय संगीत मुकाम उल्लेखनीय है , बारह मुकाम की श्रेणी वेवूर जाति के प्रमुख प्राचीन संगीत का नाम है , जो वेवूर जाति की प्राचीन संस्कृति का एक अनमोल धरोहर है । असल में वेवूर जाति की शानदार संस्कृति और सभ्यता संपन्न हुई है । 11 वीं शताब्दी में प्रकाश में आये महा काव्य मंगल व बुद्धि और तुर्क शब्दकोश देश में प्रसिद्ध हो गए थे । लोक साहित्य के रूप में आफनती की कथाएं वेवूप लोगों में तो असामान्य लोकप्रिय ही है , साथ ही देश के अन्य स्थानों में भी बहुत पसंद की जाती है । आफनती की कथाओं में निरंकुश जमीनदारों के खिलाफ बुद्धिमान किसान आफनती के संर्घष का जीता जागता वर्णन किया गया है , इस से वेवूर मेहनती लोगों का साहस और प्रतीभा व्यक्त हुआ है। वेवूर के लोक गीत काफी मशहूर है , वे विविध विषयों में गाये जाते हैं । लोग त्यौहार के अवसर , श्रम से अवकाश समय तथा खुशी के दिन पर तबला के ताल पर सामुहिक तौर पर गाते हैं ।

वेवूर जाति इस्लाम धर्म मानती है । उस के रिति रिवाज और प्रथाएं इस्लाम धर्म पर आधारित हैं । उस के खाने , पीने व पहनने के तौर तरीके सभी मुस्लिम ढंग के होते है । मसलन् , वेवूर जाति के पुरूष सिर पर छोटी छोटी टोपी पहनते है , पर वह टोपी दूसरे देशों के मुसलमानों की टोपी शैली में समान नहीं है , वह चतुर्कोणी है और कासीदार भी है , वेवूर के पुरूष शरीर पर लम्बा कपड़ा पहनते है , जिस पर बटन नहीं है और कमर में लम्बा पटी बांधते हैं और पांव में नरम तलों वाली जूता पहनते हैं । महिलाएं आम तौर पर ऊपर से नीचे तक शूट , लम्बी स्कर्ट और लम्बा मोजा व चमड़े की जूता पहनना पसंद करती हैं उन के सिर पर रंगीन टोपी या शाल बंधता नजर आता है । महिलाओं में बालों के बंधने की यह विशेषता देखी जाती है कि त्यौहार के दौरान छोटी उम्र वाली लड़कियों के सिर पर दस से अधिक चोटियां बंधी रहती है , लेकिन शादीशुदा महिलाओं की दो चोटियां बंधती है , हां , आधुनिक फैशन से प्रभावित हो कर अब उन के बालों के ढंग में काफी परिवर्तन आया है ।

वेवूर में अन्य मुस्लिमों की भांति सुअर , गधे तथा मांसभक्षी जानवरों के मांस खाना वर्जित है , वे आटा की रोटी ,चावल , प्याज ,ताल ,लांन , बकरी के गोश्त शोरबा , पलाव और जरा आदि पसंद करते हैं और दुध चाय पीना पसंद करते हैं ।

वेवूर जाति के लोग ईद और कुर्बान यानी ईद उल जुहा मनाते हैं , एक महीने का रमजान होने से पहले वे विभिन्न किस्मों के पकवान बनाकर त्यौहार के खाना तैयार करते हैं , वे दिन में यानी सूर्योद्य से सूर्यास्त तक भोजन नहीं करते हैं । त्यौहार के दिन वे नए कपड़े पहनते हैं , नयी टोपी पहनते हैं और एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं । त्यौहार के दौरान विभिन्न मस्जिदों में ढोल और शहनाई बजता है और पुरूष वर्ग वहां जा कर रमाज पढ़ते हैं ।

श्रोता दोस्तो , वेवूर जाति की वास्तु कला भी अपनी अलग पहचान लिए काफी मशहूर है । उन के मकान चौड़ा है , मकान के अग्नि भाग में लम्बा बरामदा , कमरों और छतों पर फुलों के चित्र अलंकृत हैं । पुराने मकान बहुधा लकड़ी के बने हैं , खिड़की छोटी है , मकान की छत पर भी एक झरोखा है , लेकिन रोशदार नहीं है , कमरों में मिट्टी से बने पलंग है ,उस से खाना बनाने तथा कमरों को गर्म करने के दोनों काम आता है । आधुनिक काल में जीवन सुधार होने के साथ साथ वेवूर लोगों की रिहाइशी स्थिति काफी सुधर गई , बड़ी संख्या में लोग आधुनिक इमारतों में रहने लगे , जो साधारण मकान स्वनिर्मित होता है , वह भी बहुत खुला और रोशदार बनाया गया है । कमरे हल्के रंगों से रंजित है , दीवारों पर वेवूर जाति की विशेष दरी लटकी है और कमरों में आधुनिक रंगढ़ंग की फर्निचर हैं ।

वेवूर जाति के गांव प्राकृतिक स्थिति के मुताबित बनते हैं ।गांव वासी आम तौर पर कृषि का उत्पादन करते हैं , वे बागबानी , फलों के उत्पादन , वन्य तथा गाय पालने में पारंगत हैं । शहरों में वे मुख्यतः व्यापार और कारगिरी करते हैं , कारगिरी में चमड़े का काम , लोहार का काम व खाद्यपदार्थ प्रोसेंसिंग प्रमुख है ।