एक छोटी नदी के किनारे पर एक ऊंचा देवदार पेड़ खड़ा था , पेड़ शंकुओं से भरा पूरा लदा हुआ था । एक दिन एक छोटा गिरहली पेड़ पर शंकु तोड़ रहा था , लापरवाही के कारण एक बड़ा सा शंकु हाथ से छूट कर नीचे नदी में गिर पड़ा । मौके पर एक मुर्गा और बत्तख देवदार पेड़ के नीचे खेल रहे थे , गिरहली ने बड़े विनय से मुर्गे से मांगा , मुर्गा दादा , कृपया आप मेरे लिए पानी में से उस शंकु को निकालें । मुर्गे ने मुख उठा कर गिरहली से कहा , गिरहली बेटा , बहुत आफसोस है कि मुझे तैरना नहीं आता है । इसलिए मैं नदी में नहीं उतर सकता हूं । पर बत्तख चाचा तुम्हारे लिए वह शंकु निकाल देंगे । गिरहली ने फिर बत्तख से प्रार्थना की कि बत्तख चाचा , आप नदी में जा कर शंकु निकाल दें , तो बड़ी मेहरबानी होगी । बत्तख ने कहा , अच्छा , मैं निकालूंगा , कहते ही वह ठप से पानी में कूद गया और देखते ही देखते मुंह में शंकु पकड़े हुए तट पर आ गया ।
गिरहली फर्राट से पेड़ से नीचे आया और बोला , आप का बहुत बहुत आभारी हूं , बत्तख चाचा । गिरहली ने अपने हाथ में शंकु थामे पहले बत्तख , फिर मुर्ग की ओर निहारा और आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा , बत्तख चाचा , क्या कारण है कि आप नदी में तैर सकते हैं , पर मुर्गा दादा को तैरना नहीं आता . बत्तख ने मुस्कराते हुए कहा , तुम देखो , क्या मैं और मुर्गा शक्ल सूरत में एक जैसे हैं . गिरहली ने नहीं की मुद्रा में सिर हिलायाः नहीं है ।
कहां समान नहीं है .
मुर्गा दादा की टांगें लम्बी हैं और पेट के ठीक बीचोंबीच है , आप की टांगें लम्बी नहीं है और वह भी पेट के नीचे थोड़े पीछे के भाग पर है
फिर कहां असमान है .
आप के पर मुर्गा दादा के परों से ज्यादा चिकनी लगती है , जैसे उस पर तेल लगाया गया हो । ऐसी चिकनाई है कि पानी उसे नहीं भीगा दे सकता है ।
बत्तख ने मंजूरी की मुद्रा में सिर हिलाया , ठीक ही कहा है , लेकिन तुम जरा फिर गौर से देखो , हम दोनों में और क्या क्या असमानता है ।
गिरहली ने देर तक ध्यान से देखने पर भी नई असमानता नहीं निकाल पाया ।
बत्तख ने उसे याद दिलाया , तुम देखो , मेरे पंखों पर न केवल तेल की परतें लगी हैं , बल्कि वे घने और मोटा भी हैं और बड़ा हल्का भी है । जब मैं पानी में तैरता हूं , मानो एक छोटा नाव पानी की सतह पर चल रहा हो । यहां तक कह कर बत्तख ने कुछ कदम चलते हुए कहा , अब मेरे पांव को देखो , मेरे पांव की ऊंगलियां एक दूसरे से जुड़ी हुई है , बीच में जो झिल्ली उगी है , उस का नाम पादजाल है ।
वह झिल्ली पादजाल कहलाती है .
हां , उस का नाम पादजाल है , देखो , वह एक छोटा पंखा जैसा है और इस का बड़ा काम आता है । नदी में मैं दोनों पांवों से पानी खेता हूं , जैसा डांडों से नाव खेता है । इसी तरह मैं पानी में तैर सकता हूं ।
गिरहली ने खुशी से कहा , बत्तख चाचा , मेरी समझ में आया है कि आप क्यों पानी में तैर सकते हैं । मेरी दुहराई सुनिए , आप के परों पर तेल-परतें लगी हैं , इसलिए पानी से नहीं भीग सकता है , आप के पंख घने और हल्के हैं , जिस से आप पानी में नाव की तरह तैर सकते हैं , आप के पांवों में पंखा जैसा पादजाल है , वह पानी में नाव की भांति चल सकता है । बत्तख चाचा , मैं ने सही दोहराया है ना . बत्तख ने संतुष्ट हो कर कहा , बिलकुल ठीक है , तुम सचमुच एक होशियार गिरहली है ।
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