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(GMT+08:00) 2004-06-16 16:30:26    
म्यो जाति का सुखद गांव ( क्रम 1 )

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चीन की 55 अल्पसंख्यक जातियों में से एक म्यो जाति के लोग नाचगान के शौकिन है , मध्य-दक्षिण चीन के हुनान प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित थु व म्यो जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर के ते हान गांव में जो म्यो जाति के लोग रहते हैं , वे अपनी विशेष शौली के नाचगान और रिति रिवाज से मशहूर है । म्यो भाषा में ते हान का अर्थ सुन्दर पहाड़ी घाटी है । इस से व्यक्त हुआ है कि ते हान गांव पहाड़ी घाटी में बसा हुआ है , हम पहाड़ों पर बल खाते गुजरने वाले रास्ते से ते हान गांव पहुंचे , तो गांव के दोनों ओर सीधी खड़ी पहाड़ी चट्टानें आकाश में ऊर्ध्वी बढ़ी नजर आयी , पहाड़ों पर वन्यों की हरियाली छायी है , पहाड़ी घाटी में छोटी छोटी नदियां कलकल बहती हैं ।

गांव के लकड़ी के छोटे पुल पर हमारे स्वागत में मेहमाननवाज म्यो गांव वासी ढोल और लु-सङ नामक म्यो जाति के परम्परागत वाद्य बजाते हुए एकत्र हुए हैं और सुन्दर जातीय पोशाक पहनी दस म्यो युवतियां हाथ में चावल का मदिरा भरा प्याला उठाए लोक गीत गाते हुए आगे आई ।

हमें बताया गया है कि ते हान गांव में सिर्फ सौ से थोड़े ज्यादा परिवार हैं , वे सभी म्यो जातीय भाषी हैं , अपना परम्परागत वस्त्र पहनते हैं और उन में अब भी म्यो जाति की परम्पराएं बरकरार रही है । उदाहरण के लिए जब को मेहमान गांव आया , तो गांव वासी बैल के सींग में अपने हाथों से बनाया गया चावल का मदिरा भर कर दोनों हाथों से मेहमान को पेश कर देते हैं । गांव के भीतर प्रवेश पर मेहमान को म्यो युवतियों द्वारा पेश मदिरा पूरी तरह पी लेना चाहिए , इस के बाद उन के साथ लोक गीत भी गाना चाहिए । गाने में तारीफ मिलने वाले मेहमान को युवतियों की ओर से छोटा मोचा तोफा भी उपलब्ध होता है।

म्यो जाति की प्रथा के अनुसार मेहमानों को मदिरा पेश किये जाने के बाद मेजबान चार पांच चापस्तिकों के एक गांठ से मेहमान के माथे पर सिंदूरी रंग का एक तिलक लगाया , यह शुभ मंगल का प्रतीक है । हमारे साथ आई सुश्री वांग च्वान ने बताया कि गांव वासी के घर में आप लोगों का अन्य कुछ विशेष रिवाजों से भी स्वागत सत्कार किया जाएगा । वह कहती है कि

सर्वप्रथम आप लोगों को कमरे की दहलीज के आगे रोका जाएगा यानी कई एक युवतियां दरवाजे के आगे रंगीन रस्सी से प्रवेश के रास्ते को रोक देती हैं , घर प्रवेश के लिए मेहमान को पहले मदिरा पीना होगा , फिर तीन गीत गाना चाहिए , इस के बाद आग की चूल्हे से तीन चक्कर लगाना होगा अर्थात अशुभ से बचेगा , इसी के बाद घर अन्दर आ सकते हैं ।

इस प्रकार के मजेदार जातीय रिति रिवाज का स्वयं अनुभव पाने के बाद हम मेजबान के घर में प्रवेश कर गए । घर के मेज पर बहुत से स्वादिष्ट खाना परोसा जा चुका है , मेहमान के सत्कार में म्यो गांव वासी जरूर मुर्गे बत्तक का वध कर भोजन बनाते हैं , मुर्गे बत्तक के हृद्य पिंड मेहमान को पेश किया जाता है , म्यो जाति की मान्यता में मेहमान का सहृद्य स्वागत किया जाता है । मेहमान तो मुर्गे बत्तक के हृद्य पिंड का कई भागों में बंटवारा कर देते है और वापस गांव के बुजर्गों को पेश करते हैं , इस का मतलब है कि वे निस्वार्थ है । फिर सभी उपस्थित लोग मिल कर खाना खाते हैं ।

म्यो जाति का भोजन भी चर्चा के काबिला है । उस के तरीकारियों में खटा स्वाद का विशेष महत्व होता है । मछली का खटा शोरबा काफी जग प्रसिद्ध है । हमें बताया गया है कि मछली का शोरबा बनाने का तरीका बहुत जटिल है । चावल और आटा का शोरबा भंडा में डाल कर पांच छै दिन तक हल्की आग से गर्म किया जाएगा , जब शोरबा का स्वाद खटा हो गया , उस के साथ मछली पकायी जाएगी , जिस में मसाले के रूप में नमक , लहसुन , टमाटर , हल्दी आदि डाला जाएगा और तेज आंच पर बीस मिनट तक उबाला जाएगा , तब जो मछली का शोरबा तैयार बना है , वह ताजगी के साथ बड़ा जातक होता है ।

( क्रमशः)