चीन का शेनचाओ नम्बर चार और पांच अंतरिक्षयान अंतरिक्षों का अभियान क्रमशः सफल हुआ है । उन में नम्बर चार ने पृथ्वी के 108 चक्कर काटने में सफल किया और नम्बर पांच ने चीन का प्रथम समानव अंतरिक्षयान का मिशन निभाया । इस ने जाहिर किया है कि चीन , अपने समानव अंतरिक्षयान को प्रक्षेपित करने में समर्थ होने के विश्व में कुछेक देशों में से एक बना है । चीन की समानव अंतरिक्ष उड़ान योजना वर्ष 1992 में शुरू हुआ । वर्ष 1999 से अब तक चीन ने क्रमशः शेनचाओ नम्बर 1 से शुरू कर कुल 4 प्रयोगात्मक अंतरिक्षयानों को प्रक्षेपित किया । इन सभी अंतरिक्षयानों को वास्तविक अंतरिक्षयात्री के उस में सवार होने की स्थिति के अनुसार तैयार किया गया , और चीन के समानव अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण के लिये पूरी तैयारियां की गयी है ।
चीन के थाइवान क्षेत्र के अनेक छात्र अब मुख्यभूमि के विश्वविद्यालयों में एम ऐ की डिग्री के लिये पढ़ने आ रहे हैं । गत वर्ष के अंत में मुख्य भूमि के विभिन्न विश्वविद्यालयों में एम ऐ की डिग्री के लिये पढ़ने वाले थाइवानी छात्रों की संख्या 640 थी । इन छात्रों ने मुख्य तौर पर विधान , वित्त , शिक्षा , वाणिज्य और बीमा आदि विषय चुने । आंकड़े बताते हैं कि मुख्यभूमि के विभिन्न स्तरीय स्कूलों में पढ़ने वाले थाइवानी छात्रों की संख्या इस समय 20 हजार के करीब है । और वे आम तौर पर शांगघाई , पेइचिंग और क्वांगतुंग आदि बड़े शहरों में केंद्रित हैं ।
पूर्वी चीन के शांघाई शहर के उपनगरी क्षेत्र में हाल ही में , प्राचीन युवान राजवंश में निर्मित एक बाढ़द्वार के अवशेष का पता लगाया गया । शांघाई संग्रहालय के प्रधान श्री चेन के अनुसार यह बाढ़द्वार पत्थर से निर्मित है । इस अवशेष स्थल से , जिस का क्षेत्रफल 1300 वर्ग मीटर है , मिले कुछ पत्थर स्तंभों की ऊंचाई 3 मीटर से लम्बी बतायी गयी है । पुरातत्व विदों के मुताबिक शांघाई बाढ़द्वार का निर्माण सन 1300 में यवान राजवंश के जल-संरक्षण मामला अफसर श्री रें रेंफा के नेतृत्व में किया गया होगा ।
पूर्वी चीन के शांघाई शहर के सभी प्राइमरी व मिडिल स्कूलों को जोड़ने वाले एल ऐ एन यानी स्थानीय क्षेत्रवर्क (local area network )का निर्माण हाल ही में पूरा हुआ है । शांघाई शिक्षा प्रबंध विभाग के अनुसार शहर के सभी 1000 से अधिक स्कूलों को एक दूसरे से जोड़ने वाले इस लैन के निर्माण में लगभग 2 अरब य्वान की पूंजी लगायी गयी है ।
चीन के हांगचओ शहर के 47 वर्षीय श्री सूं श्वेई हूंग एशिया में सब से लम्बी अवधि तक जीने वाले ऐसे व्यक्ति बन गये हैं , जिन का दिल और गुर्दा दोनों असली न होकर प्रत्यारोपित (transplant ) है । श्री सूंग लम्बे समय तक दिल और गुर्दे के रोगों से ग्रस्त रहे । वर्ष 2001 के अप्रैल माह में उन का च-च्यांग प्रांत के जन अस्पताल में दिल और गुर्दे के संयुक्त प्रत्यारोपण के लिये ओपरेशन किया गया । तब से अब तक दूसरे लोगों के शरीर से लिये अंगों के सहारे जीवन बिताते श्री सूंग को 20 से अधिक माह हो चुके हैं । यह एक उपलब्धि ही है क्योंकि एशिया के दूसरे देशों में उन के जैसे प्रत्यारोपित अंगों वाले लोगों वालों का जीवन अवधि 100 दिनों से भी कम रही है ।
चीन सरकार के चिकित्सा विभाग के एक आदेश के मुताबिक , भविष्य में देश के सभी चिकित्सकों के लिये ग्रामीण क्षेत्रों की कम से कम तक एक साल सेवा करनी अनिवार्य होगी , अत्याथा वे शहरी अस्पतालों में डाक्टर का पद नहीं पा सकेंगे । चीन सरकार हमेशा से डाक्टरों को किसानों की सेवा करने के लिये प्रोत्साहित करती रही है , पर इस संबंध में ऐसा नियम उस ने प्रथम बार ही पारित किया है ।
भारत सरकार ने इस वर्ष कुछ समय पूर्व घोषित किया कि वर्ष 2007 तक भारत का विज्ञान व तकनीक में पूंजीविवेश , देश के घरेलू उत्पादन का 2 प्रतिशत , यानी मौजूदा का दुगुना हो जाएगा । सभा में भारत को एक विकसित देश बनाने के लिये विज्ञान व तकनीक की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि वैज्ञानकि विकास में ज्यादा पूंजी लगाने के अलावा देश की विज्ञान विकास संस्थाओं का सुधार भी अनिवार्य है । सरकार ने विदेश में रह रहे भारतीय वैज्ञानिकों से स्वदेश लौटकर देश के विकास के लिये योगदान करने की अपील की । भारत की यह भी योजना है कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ वैज्ञानिक सहयोग बढ़ाएगा , और इसे भारत की विदेश नीति का एक हिस्सा बनाएगा ।
यूरोप के एक भ्रामक पंध ने हाल में दावा किया कि वह वर्ष 2002 के दिसंबर के अंत में क्लोनिंग तकनीक से विश्व का प्रथम शिशु जन्म देने में सफल रहा क्लोनिंग तकनीक अभी भी अपरिपक्व है , इसलिये इस तकनीक के जरिये जन्मे बच्चे भयानक रोगों के शिकार हो सकते हैं । और उन के अनुसार फिर मानव क्लोनिंग नैतिक समस्याएं भी पैदा करेगा । लेकिन इस के विपरीत कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि क्लोनिंग तकनीक से जन्मा बच्चा एक दिन परखनली शिशु या टेस्ट ट्यूब बच्चा (test tube baby )की ही तरह सामान्य मान लिया जाएगा । इस समय विश्व में पांच लाख परखनली शिशु जी रहे हैं , जो दूसरों के लिये कतई अहानिकर हैं । अमेरिका के खगोल विज्ञानिकों के एक नवीनतम अनुसंधान के अनुसार सौर मंडल के बाहर की एक चौथी नक्षत्र व्यवस्थाओं में पृथ्वी जैसे कई ग्रह हैं। इन अमेरिकी वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर इन ग्रहों पर पृथ्वी जैसा वायुमंडल और पानी हुआ , तो वहां जीवों की मौजूदगी होने की भी संभावना है । उन का विचार है कि जीवों के अस्तित्व के लिये पृथ्वी की सी स्थिति होना आवश्यक है । अगर दूसरे ग्रहों पर जीवन हुआ , तो उन की प्राकृतिक विशेषता जरूर पृथ्वी की ही तरह होनी चाहिये ।
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