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(GMT+08:00) 2004-06-09 16:10:03    
म्यो जाति की प्रेम व विवाह प्रथा

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म्यो जाति में प्रेम विवाह और एक विवाह की प्रथा है , म्यो के युवक और युवती लोक -व्यवहार में स्वतंत्र और खुले स्वभाव के होते हैं , युवक युवती आपसी संपर्क बनाने में स्वच्छंद है , वे गाने नाचने के शौकिन हैं , इसलिए अवकाश समय , छुट्टी के दिन और त्यौहार के मौके पर वे एक दूसरे से मिलते हैं , जोड़ी जोड़ी में गाते है और प्यार की भावना इजहार करते हैं । म्यो जाति में गायन प्रतियोगिता का विशेष आयोजन होता है , जब किसी जगह गायन प्रतियोगिता हो रही है , तो युवा लोग बड़े उत्साह के साथ उस में हिस्सा लेते हैं और अपने मनपसंद लड़के या लड़की को मुहब्बत से भरा गीत गाते हैं , वे एक दूसरे को प्रेम का प्रमाण उपहार भेंट करते हैं , इस तरह दोनों में सगाई संपन्न होती है । सगाई के बाद अगर किसी का प्रेम दूसरे वाले पर गया पाने के बाद प्रेम का उपहार वापस लौटाया जा सकता है और सगाई का अंत किया जा सकता है । म्यो जाति का विवाह खुद लड़के लड़की पर निर्भर होता है , ना कि मां पाप पर और इस जाति में दहेज की ज्यादा मांग भी नहीं है ।

म्यो जाति में विवाह की बड़ी अनोखी प्रथा चलती है । सगाई पका होने के बाद वर आम तौर पर वसंत त्यौहार के दिन वधु के घर जा कर स्थानीय पकवान , गोश्त , मदिरा और मिठाई भेंट करता है । शादी ब्याह से एक महीना लड़की रोने अलापने की रस्म शुरू करती है , गांव की अविवाहित लड़कियां रोने में उस का साथ देती है , वास्तव में वे रोने के रूप में विवाह का गाना गाती है । शादी ब्याह से एक दिन पहले वर का बरात वधु के घर जाता है , बरात आम तौर पर सात अथवा ग्यारह लोगों से गठित है । घर पहुंचने पर पटाखे छोड़े जाते हैं । इस समय वधु घर का दरवाजा बन्द किया जाता है , उसे खुलवाने के लिए बरात में से बड़ी आयु वाला भाई मिठी बातों के साथ लाल रंग के कपड़े में बांधा उपहार देता है , तभी बरात को वधु के घर के अन्दर प्रवेश की इजाजत दी जाती है । बरात को दावत देने के दौरान वधु पक्ष की लड़कियां शराब और खाना परोसने के बहाने बरात के सदस्यों के मुख पर काला रंग लगाने की कोशिश करती है , उन पर दाल बरसाती है , तब तक यह सिलसिला जारी रहता है , जब तक वधु पक्ष के वृद्ध व्यक्ति सामने आकर रोक देता । शादी ब्याह की रात नव विवाहित वर वधु जोड़ी में गाना गाते है और दूसरे दिन सुबह वधु बरात के साथ वर के घर के लिए रवाना होती है , वधु को बिदा देने के लिए उस के बड़े भाई उसे अपनी पीठ पर सवार करवाता है और एक दूरी तक छोड़ कर लौटता है । विवाह के तीन दिन तक दावत दिया जाता है और वर घर के दरवाजे के सामने वधु को आग लांगने की परम्परा भी होती है । म्यो जाति की मान्यता के अनुसार पति पत्नी दोनों घर -गृहस्थी निभाते हैं ।

म्यो जाति में पर्व त्यौहार खुब मनाया जाता है , उन के मुख्य त्यौहारों में साल के तीसरे महीने की तूसरी तारीख को प्रेम का दिवस और छठे महीने की छै तारीख को गायन त्यौहार होता है , बहन दिवस है , ढोल पूजा पर्व है , बैल होड़ दिवस है , लु शङ नामक वाद्य कला त्यौहार है , लकड़ी का ड्रैगन आकार वाला नाव दौड़ और मछली पकड़ दिवस आदि होते हैं ।

म्यो जाति के रिति रिवाज के अनुसार चीनी कलेंडर के तहत हर तीसरे महीने की तीसरी तारीख को प्रेम दिवस मनाया जाता है । इस समय म्यो आबादी क्षेत्रों में वसंत का मौसम आया , दिन बहुत सुहावना है , म्यो गांवों में हर जगह हरियाली छायी रहती है और किसान बुवाई में लग जाते हैं । त्यौहार के दिन म्यो युवक युवती जातीय विशेषता वाले वेश-भूषा में गांव के बाहर आते हैं , हरी जंगल के अन्दर , फुलों के बीच या खेतों के किनारों पर वे गायन की होड़ में मस्त रहते हैं , इस खुशी में अगर किसी को कोई पसंद आया , तो वे प्रेम इजहार करता या करती है , प्रेम का उपहार भेंट करते हैं । वसंती बहार के साथ म्यो जाति के युवा लोगों में प्रेम का बहार भी जन्म करता है और त्यौहार भी बहुत यथार्थ बन जाता है ।