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(GMT+08:00) 2004-05-31 12:18:18    
गो श्याओ सोंग की कहानी  

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चीन के सांस्कृतिक क्षेत्र में गो श्याओ सोंग का नाम बहुत जाना माना है । एक दशक पूर्व उनके द्वारा रचा गया विश्वविद्यालय परिसर का गीत आज तक चीनी युवाओं की जुबान पर है । उनके प्रशंसक इधर उन की नयी संगीत रचनाओं की प्रतीक्षा कर रहे थे कि वे अपना मुख्य काम संगीत छोड़कर फिल्मों की शूटिंग और उपन्यास लेखन की ओर चल निकले । इस तरह पेशा बदलने पर उनका कहना है कि वे लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देते और अपना जीवन स्वयं तय करते हैं ।

राजधानी पेइचिंग स्थित छिंग ह्वा विश्वविद्यालय का छात्र होना चीन के किसी भी युवा के लिए गौरव की बात है । गो श्याओ सोंग ने तीन साल इस विश्वविद्यालय के इलेकट्रोनिक्स विभाग में बिताने के बाद 1991 में जब इससे विदा ली तब उनकी उम्र 22 साल थी। उन्होंने बताया कि वे राडार के बारे में और आगे अध्ययन नहीं करना चाहते थे और कलात्मक रचना करना चाहते थे । छिंग ह्वा विश्वविद्यालय से विदा लेने के बाद उन्होंने पेइचिंग फिल्म संस्थान के फिल्म निर्देशन विभाग में एक साल तक पढ़ाई की और फिर विज्ञापन के क्षेत्र में आ गये।

इस बीच एक आश्चर्यजनक घटना हुई । एक डिस्क कंपनी ने छिंग ह्वा विश्वविद्यालय के दिनों में उनके द्वारा रचा गया विश्वविद्यालय परिसर का गीत प्रकाशित किया जो थोड़े समय के भीतर ही समूचे देश में लोकप्रिय हो गया । इस तरह 1994 में गो श्याओ सोंग ने इस गीत के साथ औपचारिक रूप से चीन के संगीत क्षेत्र में प्रवेश पाया ।

अभी आप ने सुना गो श्याओ सोंग द्वारा रचा गया गीत " एक ही छात्रावास में रहने वाले "

गीत कहता है, एक ही छात्रावास में रहने वाले मेरे भाई, तुम ने तब मुझसे जो बहुत से सवाल पूछे थे उनके जवाब मुझे अब याद नहीं। क्या याद हैं तुम्हें ?एक ही छात्रावास में रहने वाले मेरे भाई, मेरे साथ सिगरेट में साझा कर उठाते थे आनंद । छात्र जीवन होता है कितना अच्छा , विश्वविद्यालय परिसर में बीता समय मुझे अकसर याद आता है । हम अब कब एक साथ परिसर वापस जाएंगे , मेरे दोस्त ?कब छात्रावास का सुखी जीवन बिताएंगे फिर एक बार , मेरे भाई?

यह गीत बहुत सरल शब्दों में छात्रों के बीच मौजूद गहरी दोस्ती को अभिव्यक्ति देता है । इसमें अध्ययनरत और स्नातक हो चुके दोनों किस्मों के छात्रों के दिल की बात कही गई है । इस लिए यह आम लोगों विशेष कर युवाओं में लोकप्रिय हुआ ।

गो श्याओ सोंग खुद को अचानक मिली इस सफलता से आश्चर्यचकित हुए पर साथ ही बहुत आनंदित भी । विश्वविद्यालय की पढ़ाई बीच में छोड़ देने का फ़ैसला करने के बाद उन्हें अपने परिवार और दोस्तों से बहुत दबाव भी सहना पड़ा। उन के प्रोफेसर माता-पिता की आशा अपने बेटे को वैज्ञानिक बनते देखने की थी , न कि एक संगीतकर्मी । खैर, 1995 में गो श्याओ सोंग द्वारा रचे गए गीतों "जीवन से प्रेम" तथा "कली" को उस वर्ष भिन्न श्रेणियों में स्वर्ण डिस्क पुरस्कार मिले । इसी वर्ष उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर पेइचिंग मैथ्येन संगीत कंपनी की स्थापना की जो अब चीन की मुख्यभूमि की सब से श्रेष्ठ संगीत कंपनियों में से एक है । विश्वविद्यालय से विदा लेने के अपने फैसले का गो श्याओ सोंग को कोई खेद न था, न है । उन्होंने कहा

मुझे लगता है कि विश्वविद्यालय का जीवन लोगों को कई बहुत महत्वपूर्ण चीजें प्रदान करता है । इनमें से एक है सोचने का तरीका और दूसरा है एक दबावमुक्त वातावरण । अगर आप विश्वविदायलय में नहीं पढ़ रहे हैं , तो साधारण जीवन की रोज़गार जैसी समस्या का सामना कर रहे होंगे । विश्वविद्यालय लोगों को एक बहुत सुन्दर समय देता है। विश्वविद्यालय में मुझे भी यह सब हासिल हुआ। इस लिए मुझे विश्वविद्यालय का समय बहुत सुन्दर लगता है ।

खैर जब युवा चीनी गो श्याओ सोंग से और बेहतर संगीत रचनाओं की प्रतीक्षा कर रहे थे , तो उन्होंने संगीत रचना ही बंद कर दिया और विभिन्न देशों की यात्रा करने की ठान ली । बीस से ज्यादा देशों की यात्रा करने के बाद उन्होंने अपने यात्रा अनुभवों को कागज पर उतारना शुरू किया । स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने की एक नयी शुरूआत की । 1999 में गो श्याओ सोंग की स्वनिर्मित फिल्म "फूल खिलते समय" लोगों के सामने आयी और 2000 में उन का "दीवार पर चेहरा" नामक उपन्यास प्रकाशित हुआ। उन के उपन्यास की शैली समकालीन चीनी उपन्यासों की शैली से बिलकुल अलग थी इसलिए अधिकतर चीनी युवाओं के बीच उसे खूब लोकप्रियता मिली । 2001 में गो श्याओ सोंग विश्व की सब से बड़ी चीनी भाषी वेबसाइट "सीना"के निमंत्रण पर उस के सांस्कृतिक रणनीति सलाहकार बने । 2003 में उन्होंने फिर फिल्म बनाना शुरू किया । "उड़ता दिल" नामक उनकी फिल्म इसी वर्ष दर्शकों के सामने आयी । गो श्याओ सोंग को अपना जीवन बहुरंगी लगता है । उन का कहना है कि

तीस वर्ष की उम्र तक पहुंचने से पूर्व मैं फिल्म बना चुका था, एक उपन्यास लिख चुका था , संगीत रचनाएं प्रकाशित कर चुका था, अपनी संगीत सभा आयोजित कर चुका था और बहुत से देशों की यात्रा भी कर आया था । ये सब अनुभव मेरे लिए बहुत मूल्यवान हैं । कहा जा सकता है कि तीस वर्ष की आयु में ही मेरे अपने सपनों की खोज का दौर गुजर गया ।

गो श्याओ सोंग ने बताया कि पोप म्यूजिक के शौक के चलते ही उन्होंने बड़ी झिझक से अपने विश्वविद्यालय जीवन से विदा ली और फिल्म कला के प्रति जिज्ञासा के कारण फिल्म बनानी शुरू की यों बचपन में अपने परिवार के प्रभाव में वे भविष्य में अधायपक बनना चाहते थे । उन्होंने कहा कि लोगों को अपना खुद का जीवन बिताना चाहिए और परम्परा की बाधाओं को दूर करना चाहिए । उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि लोगों को काम करने की प्रेरणा जीवन के प्रति असंतोष से नहीं मिलती जैसा कि आजकल हो रहा है कि कोई घर को लेकर असंतुष्ट है तो कोई कार को लेकर । दरअसल काम करने की प्रेरणा जीवन की अन्य मूल्यवान चीज़ों में मौजूद है । जब आप कोई मूल्यवान काम करते हैं, तो आपकी दिलचस्पी जग जाती है । अगर आप सिर्फ़ और बड़ा मकान खरीदने के लिए काम करते रहे तो समाज के लिए कुछ ज्यादा योगदान नहीं कर पायेंगे । हर कोई यदि अपनी रुचि का काम कर सके तो समाज की भारी प्रगति होगी