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वर्ष 1987 में चीन की लम्बी दीवार, पेइचिंग स्थित प्राचीन प्रासाद , ल्हासा के पोताला महल औऱ शीआन की सैनिकों की मृदामूर्तियों की समाधि जैसे छै स्थल प्रथम बार विश्व धरोहर सूची में शामिल किये गये ।
लम्बी दीवार आम तौर पर पहाड़ों के ऊपर खड़ी की गयी और इसके नीचे खतरनाक खड़ी चट्टानें हैं । पहाड़ और दीवार का एक-दूसरे से मिलाप कराया गया। प्राचीन समय में ऐसी दीवार की चढ़ाई में होने वाली मुश्किल एक कठिन सामरिक स्थिति उत्पन्न करती थी।
लम्बी दीवार का आम तौर पर बड़ी ईंटों और विशाल पत्थरों से निर्माण किया गया। उस के भीतर मिट्टी व छोटे पत्थर भरे गये। लम्बी दीवार की ऊंचाई लगभग दस मीटर औऱ चौड़ाई करीब चार पांच मीटर है।उस पर चार घोड़े कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो सकते हैं । दीवार की इस चौड़ाई ने तब के सैनिकों को युद्ध के समय खाद्यान्नों व हथियारों के परिवहन की सुविधा प्रदान की। दीवारों के भीतर पथरीली सीढ़ीदार गुफ़ाएं हैं । इसने उस पर ऊपर-नीचे आना-जाना आसान बनाया। उसकी एक चौकी में अगर खाद्यान्न व हथियार रखे जा सकते थे तो वह सैनिकों का विश्राम स्थल भी बन सकती थी। दुश्मनों के आने की खबर चौकी में आग जलाकर, धुआं उठाकर दी जाती थी।
वर्तमान में लम्बी दीवार की सामरिक भूमिका तो नहीं रही, लेकिन उस की विशेष सुन्दरता लोगों को अवश्य आश्चर्यचकित करती है।
लम्बी दीवार सुन्दर,विशाल और महान है । दूर से पहाड़ों पर नज़र आती उसकी झलक से लगता है जैसे एक विशाल ड्रैगन पहाड़ों पर उड़ रहा हो । नज़दीक से दीवार औऱ उस पर खड़ी चौकियों का विशेष कलात्मक सौंदर्य नजर आता है।
चीन की लंबी दीवार का उच्च ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व तो है ही, बड़ा पर्यटन मूल्य भी है । चीन में एक कहावत है कि लम्बी दीवार पर पहुंचने वाला ही नायक होता है। इसलिए देशी-विदेशी पर्यटक लम्बी दीवार की चढ़ाई पर गौरव महसूस करते हैं । चीन की यात्रा पर आए कई देशों के राज्याध्यक्ष भी इन पर्यटकों में शामिल हैं । लम्बी दीवार के कई भाग आज तक सुरक्षित हैं । पेइचिंग स्थित विश्वविख्यात पा दा लिंग, सी मा थाए और सु थ्येनयु इनमें शआमिल हैं। लम्बी दीवार के पूर्व में स्थित शान हाई क्वुआन और पश्चिम में स्थित च्या यु क्वुआन दर्रे भी सुरक्षित है और हर साल देश-विदेश के पर्यटकों को आकृष्ट करते हैं।
लम्बी दीवार चीन की पुरानी पीढ़ियों की बुद्धि व मेहनत की प्रतीक है। हज़ारों वर्षों से वह पहाड़ों पर खड़ी है औऱ अब चीनी जाति का प्रतीक मानी जाती है । वर्ष 1987 में उसे इसीलिए विश्व की धरोहरों की सूची में शामिल किया गया।
अगर आप कभी चीन की यात्रा पर आए, तो लम्बी दीवार देखना न भूलिएगा । इस पर चढ़ कर आप भी नायक बन सकेंगे ।
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