मनशियस (लगभग 372 – 289 ई. पू.) युद्धरत-राज्य काल में कनफ्यूशियसवादी विचारशाखा के प्रमुख प्रतिनिधि थे। उनका असली नाम मङ ख था और वे चओ (वर्तमान शानतुङ प्रान्त की चओश्येन काउन्टी) राज्य के रहने वाले थे। वे कनफ्यूशियस के पोते चि सि के शिष्य थे और अपने को कनफ्यूशियस के विचारों का उत्तराधिकारी मानते थे। वे "राजोचित तरीके"व"दयालुता की नीति"की वकालत करते थे तथा शासकों को जनता का दिल जीतकर अपने शासन को सुस्थिर बनाने की सलाह देते थे। वे काफ़ी समय तक शिक्षा-कार्य और विभिन्न राज्यों के भ्रमण में जुटे रहे। उनके शिष्यों ने उनके विचारों व कथनों को "मनशियस"नामक पुस्तक में लिपिबद्ध किया था।
श्युन चि (लगभग 313-238 ई.पू.) का असली नाम श्युन ख्वाङ या श्युन छिङ था और वे चाओ राज्य के निवासी थे। उनके विचार "श्युन चि"नामक पुस्तक में लिपिबद्ध किए गए थे। यद्यपि उन्हें कनफ्यूशियसवादी विचारशाखा का ही एक प्रतिनिधि माना जाता है, तथापि उन्होंने कनफ्यूशियस और मनशियस के विचारों की आलोचना करते हुए उनका विकास भी किया। साथ ही उन्होंने दूसरी विचारशाखाओं के विचारों को भी आलोचनात्मक रूप से ग्रहण किया। उनका मत था कि मनुष्य प्रकृति पर अवश्य विजय प्राप्त कर सकता है और "दैव द्वारा मनुष्य को अपने लाभ के लिए जो भी दिया जाता है उस का उसे उपयोग करना चाहिए।"उनका विचार था कि शिष्य को गुणों में अपने गुरु से उसी तरह श्रेष्ठतर होना चाहिए जिस प्रकार "आसमानी रंग नीले से निकलने के बावजूद नीले से कहीं अधिक निखरता है"। उन के दर्शन में भौतिकवाद के कुछ तत्व मौजूद थे।