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रोहतास बिहार के राकेश रौशन द्वारा भेजा एक छोटा आलेख , शीर्षक है समय ।
हम समय को नष्ट नहीं करते , बल्कि समय हमें नष्ट करता है । समय वह संपत्ति है , जो लोग प्रत्येक मनुष्य को ईश्व की ओर से मिली है , जो लोग इस धन को उचित रीति से बर्तते हैं , वही शारीरिक सुख तथा आत्मिक आनंद प्राप्त करते हैं । इसी समय संपत्ति के सदुपयोग से एक जंगली मनुष्य सभ्य और एक सभ्य देवता स्वरूप बन सकता है । इसी के द्वारा मूर्ख विद्वान , निर्धन धनवान तथा अज्ञा अनुभवी बन सकता है । संतोष हर्ष या सुख मनुष्य को कदापि प्राप्त नहीं होता , जब तक वह उचित रीति से समय का उपयोग नहीं करता ।
समय निसंदेह एक रत्न राशि है । जो कोई इसे अपरिमित अगणित रूप से अन्धाधुन्ध व्यय करता है , वह दिन दिन अकिंचन , रिक्तहस्त और दरिद्र होता है । वह आजीवन खिन्न , व्याकुल और भाग्य को कोसता रहता है । मृत्यु भी उसे जंजाल और दुख से छुड़ा नहीं सकती । प्रत्युत उस के लिए मृत्यु का आगमन मानो अपराधी के लिए गिरफ्तारी का वारंट हो ।
सच तो यह है कि समय नष्ट करना एक प्रकार की आत्महत्या है , अन्तर केवल इतना है कि आत्मघात सर्वदा के लिए जीवन जंजाल से छुड़ा देता है और समय के दुरूपयोग से एक निर्दिष्ट काल तक जीवन मृत की दशा बनी रहती है ।
श्रोताओं की कविताएं
सुलतानपुर उत्तर प्रदेश के अनिल कुमार द्विवेदी ने सी .आर .आर पर दो कविताएं लिखी हैं , जो यहां प्रस्तुत हैः
नवीन पत्रिका श्रोता वाटिका को समर्पित कविता
पहले थी चीन सचित्र ,अब आई है
श्रोता वाटिका , नई ऊर्जा लायी है ।
संपर्क बढ़ाती ,परिचय करवाती ,
कविता , लेख , फोटो है सजाती ।
संस्कृति से हमें कराती खबर ,
जानकारी होती धरती हो या अम्बर ।
मेले , संस्कृति , तिब्बत और पर्यटन ,
समस्त जानकारियां है इस में नूतन ।
पत्रिका छोटी , पृष्ट मात्र है चार ,
चन्द्रिमा जी पृष्ठ बढ़ाए निवेदन है जहार ।
अनिल कुमार द्विवेदी की दूसरी कविता आज का तिब्बत कार्यक्रम पर , जो इस प्रकार हैः
आज का तिब्बत है छू रहा ,
मार्ग प्रगति भरा ।
जल थल नभ तरक्की कर रहा ,
है विश्वास भरा ।
गलियां चौबारा है सुधर रहा ,
उन्नति सुगंध भरा ।
सड़क ,पर्यटन , पोताला सज रहा ,
भाई उत्साह भरा ।
पा विकास तिब्बती हंस रहा ,
फसल हरा भरा ।
शिक्षा , औषधि का विकास हो रहा ,
मार्ग प्रगति भरा ।
कोआथ बिहार के सीताराम केशरी ने जो एक लघू कथा भेजी , वह यहां प्रस्तुत है , शीर्षक है खड़ाऊं दिया उद्देश्य ।
खड़ाऊं पहन कर पंडित जी मंदिर की ओर चले , एक कदम बढने के साथ खड़ाऊं से भी खत-खत का स्वर निकल रहा था । पंडित जी को यह आवाज पसंद नहीं आई , वह एक स्थान पर खड़े हो कर खड़ाऊं से पूछने लगे , अच्छा , तुम ये तो बताओ कि पैरों के नीचे इतनी दबी रहने पर भी तुम्हारे स्वर में कोई अंतर क्यों नहीं आता है । खड़ाऊं ने पैरों के नीचे दबे दबे ही पंडित जी की जिझासा शांत करते हुए कहा , मैं तो जीने की इच्छुक हूं । पंडित जी , इस संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं , तब खड़ाऊं जो दूसरों के दबाव में आ कर अपना स्वर मंद कर लेते है
, उन्हें तो जीवित अवस्था में भी मैं मरा हुआ मानता हूं ।
बीकानेर राजस्तान के सुरेश कुमार खत्री की एक कविता , शीर्षक है छोटा सा प्यारा सा ।
छोटा सा प्यारा सा देश चीन
कर प्रगति निरंतर बना विश्व में महान ।
सुन्दर बाग झीलों नहरों का देश ,
लोगों के यहां तिकने प्यारे है भेष ।
मेहनत , उत्साह और मन में है लगन ,
रहते हर वक्त ये लोग अपने काम में मग्न ।
नए नए अविष्कार कर इन्हों ने अनूठा इतिहास रचा है ,
इस की उपलब्धियों का हर ओर छोर मचा है ।
अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हमारा भारत और चीन ,
सदा बने रहे प्रगाढ़ प्रेमी मित्र समान ।
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