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(GMT+08:00) 2004-05-05 17:24:08    
तुंग जाति का परम्परागत संरक्षण संग्रहालय

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      चीन की 55 अल्प संख्यक जातियों में तुंग जाति देश की एक प्राचीन जातियों में से एक है , जो चीन के क्वु चो , हुनान तथा क्वांग सी प्रांतों के सरहदी क्षेत्र में रहती है , उस की जन संख्या दस लाख से अधिक है , जो मुख्यतः कृषि , पशुपालन और वस्त्र बुनाई का व्यवसाय करते हैं । तुंग जाति के लोगों में अब तक अपनी पुरानी परम्पराएं और प्रथाएं बनी रही है , खास कर दक्षिण पश्चिम चीन के क्वु चो प्रांत के सीमांत क्षेत्र में बसे तुंग जाति के ग्रामीण लोग अपने स्थानों की पारिस्थितिकी और जीवन के विशेष तौर तरीका बनाए रखने में मशहूर है ।

      तांग आन गांव पहाड़ों के घनी वादी में एक पहाड़ी ढलान पर बसा हुआ है , जिस में सिर्फ सौ से थोड़े ज्यादा परिवार रहते हैं । गांव के बीचोंबीच तुंग जाति का प्रतीक निर्माण यानी ढोल मंडप खड़ा नजर आ रहा है । पत्थर से बने कई छोटे छोटे मार्ग गांव वासियों के दो मंजिला काष्ठ मकानों को आपस में जोड़ देते हैं , पहाड़ी चश्मा का पानी बारहों माह बहते हुए गांव से गुजरता है और गांव के बाहर पहाड़ी ढ़लानों पर सीढिनुमा धान के खेत लहलहाते हैं ।

      दुरगम पहाड़ी वादी में बस जाने के कारण तांग आन गांव सदियों से बाह्य दुनिया से अछूता रहा है और वहां की प्राकृतिक स्थिति पूर्वतः बरकरार रही है , जो पर्यावरण संरक्षण विशेषज्ञों की नजर में पहाड़ी घाटी में छिपी एक सुन्दर मोती तूल्य है ।

इस दुर्लभ पारिस्थितीक सौंदर्य को संरक्षित करने के लिए वर्ष 2000 के सितम्बर में चीन सरकार और नार्वे सरकार के बीच संपन्न समझौते के तहत तुंग आन गांव में तुंग पारिस्थितिकी संरक्षण संग्रहालय कायम हुआ । इस की चर्चा करते हुए संग्रहालय के प्रभारी श्री हु कुंग ह्वा ने हमें बतायाः

      तुंग जाति के बहुत से गांवों में प्राचीन परम्पराएं और प्राकृतिक सौंदर्य संरक्षित है , हम ने इसलिए तांग आन गांव को पारिस्थितिकी संरक्षण संग्रहालय की स्थापना के लिए चुना है , चुंकि वह पहाड़ी वादी के घनी जगह पर नदी के पास स्थित है और यहां का प्राकृतिक पर्यावरण बहुत अच्छा है ।

      श्री हु के अनुसार तांग आन गांव में तुंग जाति की विशेष पहचान की संस्कृति सुरक्षित है , गांव में ढोल मंडप , नाटक मंच , लकड़ी के दो मंजिला मकान , पत्थर की सड़क , जातीय शैली के वस्त्र आभूषण तथा जीवन में आदिम रिति रिवाज बने रहे हैं । नार्वे के विशेषज्ञों ने उसे मानवी प्रकृति का ठेठ धरोहर माना । सूत्रों के अनुसार किसी विशेष जाति व स्थान की अनुठी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए विश्व में जो तीन सौ संग्रहालय स्थापित किए गए है , एशिया में मात्र चीन और जापान में उन के कुछ उदाहरण हैं ।

      तांग आन गांव की बेजोड़ जातीय संस्कृति की रक्षा के लिए चीन और नार्वे दोनों पक्षों ने लाखों चीनी य्वान की राशि लगा कर गांव की सड़कों , ढोल मंडप , प्राचीन रिहाईशी मकानों तथा थुंग शैली के दो मंजिला काष्ठ भवनों का जीर्णोद्धार करवाया ।

   तांग आन का दौरा करते हुए हमें बड़ी ताजगी और शांति का अनुभव हुआ , गांव में शहर का जैसा शोरगुल नहीं है , हर जगह अमन और शांति व्याप्त है , मानो हम मानव से दूर अछूता स्वर्ग लोक में पधारे हों।