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(GMT+08:00) 2004-04-26 15:29:42    
यांगत्सी नदी के त्रिघाटी क्षेत्र में एतिहासित अवशेषों की रक्षा

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        आप जानते होंगे कि चीन के मध्य भाग से गुजरती बहती यांगत्सी नदी चीनी राष्ट्र के विकास के लिए मातृ नदी के रूप में मानी जाती है । नदी के घाटी क्षेत्र में बड़ी मात्रा में एतिहासित अवशेष सुरक्षित हैं । वर्ष 1994 में यांगत्सी नदी के त्रिघाटी पर विश्व की सब से बड़ी जल संरक्षण परियोजना का निर्माम शुरू होने के बाद वहां के एतिहासिक धरोहरों और प्राकृतिक सौंदर्यों की रक्षा का सवाल एक बहुचर्चित सवाल बन गया और उस की रक्षा का काम एक फोरी व अहम कार्य माना गया । इस काम में जुटे 37 वर्षीय विद्वान श्री ल्यू जङ ने पिछले दस सालों में नदी के किनारे खड़ी एक मशहूर चट्टान की रक्षा का भरसक प्रयास किया ।

        यांगत्सी नदी के तट पर खड़ी पाई ह चट्टान यानी श्वेत हंस चट्टान एक हजार छह सौ मीटर लम्बी और 15 मीटर चोड़ी प्राकृतिक चट्टान है । शक्ल में श्वेत हंस जान पड़ने के कारण उसे श्वेत हंस चट्टान का नाम मिला । इस पर विश्व का प्राचीनतम जल सर्वेक्षण स्टेशन का अवशेष है , चट्टान पर नाना प्रकार की लिपियों में पिछले 1300 वर्षों में नदी के जल परिवर्तन के शब्द खोदे गए है । चट्टान पर बड़ी बड़ी मछलियों का एक जोड़ भी खोदा गया । एतिहासिक उल्लेख के अनुसार जिस वर्ष में मछली का यह चित्र पानी के सतह से ऊपर दिखता था , उसी वर्ष घाटी के क्षेत्र में शानदार सफल काटी जाती थी । लेकिन त्रिघाटी परियोजना के निर्माण से यह चट्टान पानी के नीचे मग्न होगी , पुरातन विज्ञान की दृष्टि से महत्व वाली इस चट्टान की किस तरह रक्षा की जाए , वह वहां के पुरातन विद्वानों का एक प्रमख काम हो गया ।

        यांगत्सी नदी के किनारे पर रहने के कारण श्री ल्यू जङ को घाटी क्षेत्र में सुरक्षित एतिहासित अवशेषों से विशेष लगाव है । इसीलिए उन्हों ने उच्च शिक्षालय में पुरातनत्व विज्ञान का अध्ययन किया और स्नातक होने के बाद अपनी जन्म भूमि यानी यांगत्सी नदी पर बसे छुङ छिंग शहर के संस्कृति ब्यूरो में काम करने लौटे । पुरातन शिक्षा से स्नातक होने के नाते उन्हें श्वेत हंस चट्टान के एतिहासिक महत्व का साफ साफ पता है । आज से दस साल पहले , जब सरकार ने इस एतिहासिक धरोहर की रक्षा करने के लिए भारी धन राशि लगाने का निर्णय किया , तो ल्यू जङ की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । लेकिन श्वेत हंस चट्टान की रक्षा के लिए जो सुझाव पेश किए गए , उन के अनुसार या तो चट्टान को तोड़ कर उस की प्रति बनाई जाए , या उस में भारी भरकम धन राशि की आवश्यकता हो , इसलिए किसी का सुझाव मंजूर नहीं किया गया । इस के कारण चट्टान की रक्षा करने की कोशिश एक समय के लिए गतिरोध में भी पड़ गई । कुछ जिम्मेवार विभागों ने आर्थिक लाभ हानि पर ध्यान देते हुए उसे बचाने की कोशिश छोड़ने की भी सोची थी ।

        इस प्रकार की स्थिति पर श्री ल्यू जङ और उन के सहयोगी बहुत चिंचित हो उठे , वे बार बार संबंधित सरकारी विभागों से श्वेत हंस चट्टान बचाने की अपील करते रहे तथा ऊपर के विभागों को रिपोर्ट देते रहे । उस समय के अपने मनोभाव की याद करते हुए श्री ल्यू ने कहा,त्रिघाटी परियोजना के निर्माण आगे बढ़ने के साथ साथ हमारी चिंता भी बढ़ती जा रही थी , क्यों कि परियोजना में एक दिन की प्रगति बढ़ी , तो श्वेत हंस चट्टान की रक्षा के लिए एक दिन का समय गुजर कर कम हो गया ।

        इस समस्या को दूर करने के लिए उन दिनों , श्री ल्यू जङ खुद विशेषज्ञों से सलाह लेते रहे और बचाव सुझाव पर विचार करते रहे । उन्हों ने अपनी कोशिश में जरा भी कसूर नहीं छोड़ी । उन के साथियों के शब्दों में ल्यू जङ श्वेत हंस चट्टान की रक्षा की कोशिश में इतना जुट गए थे , मानो वे चट्टान के दीवाने बन गए हो । इन दस सालों में श्वेत हंस चट्टान की रक्षा के सवाल को ले कर ल्यू जङ अनेक बार पेइचंगि आए । पेइचिंग में भी उन का सभी समय श्वेत हंस चट्टान की रक्षा के उपाये की खोज में लगा । उन के साथी कहते हैं कि पेइचिंग में उन्हें केन्द्र के नेताओं से मुलाकात होने के मौके मिले हैं , पर विश्वविख्यात लम्बी दीवार जाने का अवसर नहीं मिला ।