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कोआथ बिहार के राजेश चौधरी से एक कथा । शीर्षक है व्यर्थ का अभिमान ।
बस में सफर के दौरान बातचीत के सिलसिले में एक यात्री ने अहंकार से भर कर दूसरे से कहा , हमारे गांव में मुझे कौन नहीं जानता । मैं अपने गांव का सब से अमीर और ताकतवर व्यक्ति हूं ।
हूं , सुनने वाला यात्री बोला । पहले यात्री ने आगे कहा -- जानते हो , मेरे पास सौ बीघा जमीन है । इतनी जमीन वहां किसी के पास नहीं है ।
हो सकता है , सहयात्री ने उस की बात मान ली ।
इसलिए मैं ने कहा कि मैं इपने गांव का सब से अमीर आदमी हूं । वह बोला , रही बात ताकत की । मेरे पांच लड़के हैं , जो मेरी ताकत हैं । उस गांव में पांच लड़के किसी के नहीं है ।
मतलब कि आप के पास जमीन भी अधिक है और पुत्र भी । सहयात्री ने कहा ।
बिल्कुल -- पहला यात्री बोला ।
जहां तक आप की अमीरी की बात है , ठीक है । कल आप की जमीन पांच बेटों में बंट कर छोटी हो जाएगी । आप के बेटे आप जैसा अमीर न रह कर गरीब हो जाएगे।
यह सुन कर वह आदमी घबराया । कुछ नहीं बोला । यहयात्री ने उस से आगे कहा --- , आप के एक बेटे के हिस्से में बीस बीघे जमीन पड़ेगी । कोई आप के गांव में ऐसा भी हो सकता है , जिस के पास सिर्फ पचीस -तीस बीघे जमीन हो और बेटा एक ही हो .
ऐसे कई हैं , वह बोला ।
फिर तो आप के बेटे एक दिन उन की तूलना में गरीब हो जायेंगे।
हूं , इस से अधिक वह कुछ नहीं बोला ।
सहयात्री ने आगे कहा , रही बात ताकतवर की । आप तो अच्छी तरह जानते हैं कि मुठ्ठी भर अंग्रेजों ने हमारे देश को गुलाम बना कर करीब दो सौ वर्षों तक रखा ।
बिल्कुल , भला कैसे । आपसी फुट की वजह से , मतलब आदमियों की संख्या अधिक होने से कोई ताकतवर नहीं हो जाता , अगर उस में फुट हो ।
हां ।
और आपसी फूट गरीबी और अभाव की वजह से ही उत्पन्न होती है । आप के पांच लड़के कल संपत्ति का बंटवारा कर गरीब ही नहीं होंगे । छोटी छोटी बात पर वे परस्पर लड़ाई--झगड़े भी कर बैठेंगे । सहयात्री ने आगे कहा -- लड़ाई झगड़े से बुद्धि नष्ट होती है . ताकत घटती है , फूट उत्पन्न होती है । अतएव आदमियों की संख्या अधिक होना ताकत की पहचान नहीं है ।
ठीक कहते हैं , उस ने सहयात्री की बात मान ली ।
आज धरती वैसे भी अधिक आबादी से पीड़ित है । खास कर हमारा देश । हम से कम आबादी वाले देश हम से अधिक साधन सम्पन्न है और ताकतवर भी है । सहयात्री ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा -- ऐसे में हमें चाहिए कि हम अपनी संतान को गरीबी से बचाए । उसे अपने से अधिक साधन संपन्न होने का अवसर दें । और यह तभी संभव है । जब हमारी संतान अधिक कम हो ।
कुछ समय पहले उसे जो अपने अमीर और ताकतवर होने का व्यर्थ अभिमान था , अब नहीं रहा । सहयात्री की एक एक बात उसे सही जान पड़ी ।
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