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(GMT+08:00) 2004-04-24 15:03:55    
तिब्बत की संस्कृति

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पहली बार तिब्बत का दौरा करने वाला कोई भी व्यक्ति , इस क्षेत्र के विशेष प्राकृतिक दृश्यों से प्रभावित होता है । तिब्बत के बिल्कुल नीले आकाश में सफेद बादल इधर उधर उड़ते घूमते हैं , और पवित्र बर्फीले पहाड़ दैवी रूप लिये दिखते हैं । अगर आप इस पठार पर रत्न की तरह जड़ी झीलों के एकदम साफ पानी के पास बैठें , तो आप जीवन की सभी तकलीफों को बिल्कुल भूल जा सकते हैं । लेकिन इन सब के अतिरिक्त तिब्बती जनता का जीवन तथा तिब्बती संस्कृति भी कम आकर्षक नहीं है ।

हर सुबह पौ फटने के समय तिब्बत के विशाल मैदान से मधुमक्खियों की भिनभिनाहट जैसी आवाज़ गुंज रहती है । यह आवाज़ कभी दूर है , कभी नजदीक आती लगती है । कभी कभी तांबे की घंटियों या जापचक्र की आवाज़ें भी हवा में मिल जाती हैं । अगर आप किसी रास्ते पर खड़ें , तो आप को तिब्बती धार्मिक अनुयायियों की पंक्ति भी दिखेंगी , बौद्ध सूत्रों को उच्चार करते हुए व हाथ में जापचक्र घुमाते मिलेंगे ।

ये सब बौद्ध अनुयायी हैं । तिबबत में अधिकांश लोग बौद्ध धर्म में विश्वास रखते हैं । बौद्ध धर्म सातवीं शताब्दी में नेपाल और भारत से तिब्बत में प्रविष्ट होने के बाद स्थानीय बोन धर्म के साथ मिलकर एक विशेष तिब्बती बौद्ध धर्म मे बदल गया । तिब्बत का सब से महत्वपूर्ण धर्म यही है ।

तिब्बत का दौरा करते समय आप के कानों में हमेशा ऐसी आवाजें पड़ती रहेंगी । आप इन आवाज़ों का मतलब न भी समझें , तो भी आप तिब्बत के बौद्ध अनुयायियों की भक्ति भावना से प्रभावित हो सकेंगे । 60 वर्षीय श्री च्यांग श्याओ पींग पेइचिंग के एक पत्रकार हैं । वे तिब्बत का 17 बार दौरा और वहां 6 वर्ष काम कर चुके हैं । उन की पत्नी भी तिब्बती हैं । अपनी अनुभव की चर्चा में वे बता रहे हैं, मैं तिब्बत का दसेक बार दौरा कर चुका हूं , और हर बार मेरी आंखों में एक नया तिब्बत आता रहा है , उस का सूर्य , उस की ऊर्जा , और उस के रंग हर बार अलग अलग होते हैं । तिब्बत मेरे लिये एक विश्वकोष है , जिसे मैं ज़िदगी भर नहीं पढ़ पाऊंगा । उस में मुझे सब से गहरी बात है , तिब्बती जनता का आकाश , पृथ्वी और प्रकृति के प्रति समादर । लगता है कि तिब्बती लोग पृथ्वी की संतान है , वे प्रकृति का हमेशा आभार मानते हैं ।

तिब्बत का दौरा करने वाले लोग कम हैं , पर अगर आप तिब्बत जाएं , आप को उस की विशेष संस्कृति की गहरी छाप लगेगी । हमारे संवाददाता ने तिब्बती जनता के वांगखोर त्योहार पर वहां उपस्थित होकर इस मेले का दर्शन किया ।

तिब्बती महाकाव्य राजा गेसार विश्व में सब से लम्बा महाकाव्य है । शब्दों की मात्रा से देखें तो वह रामायण और महाभारत से भी बड़ा है । कहा जाता है कि राजा गेसार भगवान के अवतार थे । वे अजेय और शक्तिशाली माने जाते हैं , पर आम लोगों के प्रति उन के दिल में दया है । कहा जाता है कि मानव दुनिया में अपना मिशन समाप्त करने के बाद राजा गेसार स्वर्ग वापस गये । इधर के वर्षों में चीन सरकार ने इस महाकाव्य के संरक्षण पर भारी शक्ति और पूंजी खर्च की है । वांग-त्वेई नामक तिब्बती कवि ल्हासा शहर के मशहूर पोताला महल के पास रहते हैं । वे कभी कभी कविताओं के साथ लेख भी लिखते हैं । अपने प्रिय महाकाव्य राजा गेसार के बारे में श्री वांग-त्वेई बताते हैं ,महाकाव्य राजा गेसार तिब्बती जनता का विश्वकोष है , इस महाकाव्य के अनेक अंश लोकगीत का रूप लेते हैं । महाकाव्य में प्राचीन काल में तिब्बतियों की धार्मिक रस्में , सैन्य , सामाजिक व शादी के रिवाज़ तथा रहन सहन की शैली का वर्णन किया जाता है । मुझे बचपन से ही इस महाकाव्य के कुछ अंश गाना पसंद रहे हैं । सुना है कि महाकाव्य राजा गेसार अन्य देशों में भी लोकप्रिय है , और इस का हिन्दी , अंग्रेज़ी , रूसी और फ्रांसीसी आदि भाषाओं में अनुवाद भी उपलब्ध है ।

तिब्बती लोग आम तौर पर अपने शोटोन त्योहार शोटन पर ऐसा ओपेरा करते देखते हैं । शोटोन का मतलब है दही । हर साल अगस्त या सितंबर में होने वाले शोटोन त्योहार पर स्थानीय लोगों को घासमैदान पर दही खाते हुए तिब्बती ओपेरा का मज़ा लेना पसंद है । तिब्बती सामाजिक विज्ञान अकादमी के जातीय प्रतिष्ठान के प्रधान श्री बा सान लम्बे अरसे से तिब्बती संस्कृति का अनुसंधान करते आये हैं , उन्हें भी तिब्बती ओपेरा देखना बहुत पसंद है । तिब्बती संस्कृति की चर्चा करते हुए उन्हों ने कहा , तिब्बती जाति का लम्बा इतिहास है । वह चीनी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है । धार्मिक संस्कृति के अतिरिक्त तिब्बत कीलोक संस्कृति भी समृद्ध है । तिब्बती नृत्यों व लोकगीतों की अपनी विशेषता है । तिब्बती संस्कृति और दूसरी जातियों की संस्कृतियों के बीच आवाजाही भी व्यापक है , जिसे लोग तिब्बती भित्तिचित्रों में देख सकते हैं ।