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(GMT+08:00) 2004-04-21 15:18:43    
यांगत्सी नदी के त्रिघाटी पर चीनियों का एक सदी पुराना सपना

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यांगत्सी नदी के त्रिघाटी क्षेत्र में नदी संकरी होने तथा जल प्रवाह तेज होने के कारण नदी में जहाज चलाना एक अत्यन्त कठोर श्रम है । जहाजों को तेज लहरों में आगे ले जाने के लिए नाविकों को दोनों तटों पर मोटी रस्सी से उसे खींचना पड़ता है । इस काम में ताल मेल बिठाने तथा अपने हौसले को बढ़ाने के लिए नाविक एक ही ताल पर यह गीत गाते हैं । सदियों से नाविकों में यह परम्परा जारी रहने के परिणाणस्वरूप नाविकों का यह गाना वहां की एक विशेष संस्कृति सा बन गया । त्रिघाटी क्षेत्र में विश्व के सब से बड़ी जल संरक्षण परियोजना के निर्माण के बाद नाविकों के लिए यह कठोर परिश्रम सदा के लिए खत्म तो हो गया है , पर उन में श्रम करते समय गीत गाने की परम्परा लुप्त नहीं होगी ।

70 वर्षीय बुजुर्ग नाविक श्री चङ चा छिंग का घर यांगत्सी नदी के किनारे पर बसा है , वह बालावस्था में नदी के पानी में खेलते पले बढ़े हैं , उसे नाविकों का श्रम गीत बहुत पसंद है और अब भी वह कभी कभार यह गीत गुनगुनते है । इन सालों में त्रिघाटी के जलाशय में पानी संचित होने के बाद नदी में जल का स्तर बहुत ऊंचा चढ़ गया और श्री तङ का छोटा कस्बा जलमग्न भी हो गया ।

सरकारी प्रबंध पर श्री तङ चा छिंग का नया घर नदी के तट से दूर स्थान पर पुनः बसा गया , किन्तु नदी के प्राकृतिक सौंदर्य और नाविकों के बीते जीवन की याद से उसे इतना लगाव है कि वह त्रिघाटी के महान परिवर्तन देखने रोज नदी पर आते हैं । बीते जीवन की याद करते हुए उन्हों ने संवाददाता से कहा,सभी चीजें परिवर्तनशील रहती है , मेरी अपनी पसंद के अनुसार मैं दूसरी जगह जाने की जी नहीं चाहता हूं । फिर तो मेरा पुराना मकान भी बहुत अच्छा था , लेकिन जीवन बेहतर दिशा में बढ़ रहा है . हमें उस का अनुसरण करना चाहिए ।

त्रिघाटी बांध के निर्माण के कारण घाटी क्षेत्र में आबाद दस लाख लोगों का पुनर्वास होना है । उन्हें अपनी जन्म भूमि से बिदा लेना पड़ा है।

पुरानी पीढी में अपनी पुरानी भूमि से लगाव ज्यादा प्रबल है , लेकिन नई पीढी में नया सपना संजोए हुआ है । तीस वर्ष के चे क्वे नगर निवासी श्री लिन फङ में नदी के किनारे पर बसे अपने प्राचीन नगर की याद प्रबल रही है और यांगत्सी नदी में जीवित जीवश्म कहलाने वाली स्थानी मछली को वह कभी नहीं भूल सकता । फिर भी अब वह चे क्वे के नए नगर में रहने के आदि हो गया है । वह कहते है, हम 1998 में नए शहर में आ बसे है , हम पुराने नगर की बहुत याद करते हैं । लेकिन अब हम नए घर के परिदृश्य से परिचित हो चुके हैं , यह नई जगह बेहतर है , भौगोलिक स्थिति श्रेष्ठ है , जिस से आर्थिक विकास की ज्यादा संभावना है । हम इस सुन्दर नए स्थान को भी पसंद करते हैं ।

सदियों के कालांतर में यांगत्सी नदी के घाटी क्षेत्र में अनेक बार परिवर्तन आए थे , इन परिवर्तन के साथ यहां बसे लोगों का जीवन भी बदलता गया ।

अब आप जो गीत सुन रहे हैं , उस का नाम यांगत्सी का सपना । हां , पीली नदी की भांति यांगत्सी नदी भी चीनी राष्ट्र की माता नदी है , देश की सब से बड़ी नदी होने के कारण चीन की जन संख्या का आधा भाग इस से लाभ उठाता है । लेकिन नदी में बाढ भी हुआ करती है , जिस से ग्रस्त हो कर नदी के दोनों किनारों पर बसे लोग बेघरबार हो सकते थे । आज से सौ साल पहले चीनी जनवादी क्रांति के अग्रदूत डाक्टर सुन या संक ने यांगत्सी नदी के त्रिघाटी क्षेत्र में बाढ़ पर काबू पाने के लिए विशाल बांध बनाने का सपना देखा , किन्तु तत्कालीन चीन बहुत कमजोर और निर्धन था , उन का सपना महज सपना रह गया ।

सन् 1949 में चीन लोक गणराज्य की स्थापना हुई , डाक्टर सुन या संक के सपना को मूर्त रूप देने का प्रयास शुरू हो गया । देश के नेता माओ त्से तुंग , तङ श्यो पिंग और च्यांग चे मिन आदि ने त्रिघाटी जल संरक्षण के निर्माण का समर्थन किया , दिवंगत माओ त्से तुंग ने अपने जीवन काल में एक रोमांटिक कविता लिख कर सदी के सपने को मूर्त रूप देने का संकल्प भी किया । माओ त्से तुंग की कविता की ये सुयुक्ति है -- उफनती जल धारा में मस्तूल चलते जा रहे , पड़ गए हैं अतल जल में सर्प -कच्छप शांत । बन रही है योजना अब महान , गर्त्त गहरे बन चले जन मार्ग । उधर पश्चिम में खड़ी होगी अडिग प्राचीर , रोक देगी जो उधर ऊशान के बादल , भयानक मेह । और संकरी घाटियां बन जाएंगी विस्तार समतल झील का ।

पर त्रिघाटी बांध का निर्माण कोई साधारण काम नहीं है , वह विश्व का सब से बड़ा जल संरक्षण निर्माण होगा , इस के लिए भारी धन राशि और आर्थिक व तकनीकी शक्ति की जरूरत है , साथ ही नदी के घाटी क्षेत्र में बड़ी मात्रा में सुरक्षित एतिहासित धरोहरों और प्राकृतिक सौंदर्य की रक्षा की समस्या भी सामने है । इसलिए त्रिघाटी योजना के लाभ हानी पर वर्षों तक बहस चली । अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि त्रिघाटी बांध के निर्माम से भारी दीर्घकालीन लाभ होगा , उस से जो हानि होगी , उसे टाला जा सकता है ।

वर्ष 1992 में चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा के पूर्णाधिवेशन में त्रिघाटी जल संरक्षण परियोजना के निर्माण के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय किया गया , इसी समय से चीनी जनता के इस दीर्घकालिक सपने को मूर्त रूप देने का महान काम आरंभ हुआ । इस महान निर्माण में कुल एक खरब अस्सी अरब य्वान की धन राशि लगेगी और 16 सालों के बाद पूरा निर्माण संपन्न किया जाएगा ।

1992 से अब तक दस साल गुजरा है , यांगत्सी नदी के उपरी भाग में देश के हुपै प्रांत के ई -छांग शहर के पास स्थित त्रिघाटी क्षेत्र में एक विशाल बांध खड़ी हुई नजर आ गई , विश्व के सब से बड़े और निर्माण की दृष्टि से सब से कठिन व जटिल यह आलीशान बांध नदी की जल राशि को अपने गोद में समाए रखती है और उस के फाटकों से उफनती जल धारा नीचे की ओर उमड़ती बहती चली जा रही है । इस साल बांध के जलाशय में पानी संचित किया गया , जहाजरानी शुरू हुई और पन बिजली घर का उत्पादन भी आरंभ हो गया है । पूरी परियोजना में आर्थिक लाभ उपलब्ध होने का दौर शुरू हुआ है ।

दस सालों के निर्माण से जाहिर हुआ है कि त्रिघाटी क्षेत्र की पारिस्थितिकी के संरक्षण , स्थानीय निवासियों के पुनर्वास तथा वहां के एतिहासिक अवशेषों की रक्षा जैसे सभी समस्याओं का अच्छी तरह समाधान किया गया है या किया जा रहा है । त्रिघाटी भी नए प्राकृतिक सौंदर्य के रूप में लोगों के सामने उभरी है ।

त्रिघाटी जल संसाधन विकास कापरेशन के उप महा निदेशक श्री छाओ क्वांग च्येन ने परियोजना के निर्माण में अहम काम किया और परियोजना की सफलता के आनंद का भी अनुभव पाया , वे बड़े गर्व के साथ कहते है,त्रिघाटी परियोजना विश्व का सब से बड़ा कंकरीट निर्माण है , उस में दो करोड़ अस्सी लाख घन मीटर के सीमेंट व कंकटरी डाले गए । बांध का ढांचा जटिल , निर्माण का काम कठिन और मापदंड का स्तर ऊंचा है । वर्षों के कठोर परिश्रम के फलस्वरूप इस साल बांध में पानी के समावेश , नदी में जहाजरानी तथा ताप घर में पहले जेनरेटिंग सेट का बिजली उत्पादन का शुभारंभ हो गया है ।

त्रिघाटी का परिदृश्य नए रूप ले रही है , आर्थिक प्रगति निरंतर होती जा रही है , चीनी राष्ट्र का सदी पुराना सपना साकार हो गया है , इस के साथ नाविकों का यह चिर सुपरिचित गीत भी गूंजता रहेगा , क्यों कि इस में चीनी श्रमिकों का सपना है , सुनहरी अभिलाषा है , और मेहनत की अतूल्य भावना है ।