• हिन्दी सेवा• चाइना रेडियो इंटरनेशनल
China Radio International
चीन की खबरें
विश्व समाचार
  आर्थिक समाचार
  संस्कृति
  विज्ञान व तकनीक
  खेल
  समाज

कारोबार-व्यापार

खेल और खिलाडी

चीन की अल्पसंख्यक जाति

विज्ञान, शिक्षा व स्वास्थ्य

सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2004-04-19 09:56:51    
परम्परागत चीनी तिब्बती ओपेरा

cri

चीनी तिब्बती ओपेरा का इतिहास बहुत पुराना है । आठवीं शताब्दी में जन्म लेने वाला यह ऑपेरा चीन के तिब्बती जाति बहुल तिब्बत स्वायत्त प्रदेश व छिंग हाई प्रांत में प्रचलित स्थानीय कला-रूप है।

तिब्बती ओपेरा अनेक नाट्य संप्रदायों में बंटा है , पर सफ़ेद और नीले मुखौटों वालो उस के नाट्य रूप सर्वप्रमुख माने जाते हैं । सफ़ेद मुखौटे वाला तिब्बती ओपेरा सब से पुराना है । इस ओपेरा की प्रस्तुति कलाकार सफ़ेद मुखौटे पहनकर देते हैं । 15वीं शताब्दी में थांग तुंग जे बू नामक एक भिक्षु ने सफ़ेद मुखौटे वाले ओपेरा के आधार पर नीले मुखौटे वाले ओपेरा का विकास किया। इस के बाद कलाकारों ने सादे सफेद रंग से कहीं ज्यादा चटख गहरे नीले रंग के मुखौटे पहनकर प्रस्तुति देनी शुरू कीं। आगे चलकर तिब्बती ओपेरा की गायन व प्रस्तुति शैली में और सुधार हुआ और तिब्बती ओपेरा के विकास में अपने महत्वपूर्ण योगदान के कारण थांगतुंग जेबू तिब्बती ऑपेरा के संस्थापक भी माने गए ।

भिक्षु थांग तुंग जे बू के बारे में प्रचलित दंतकथाओं की चर्चा करते हुए चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के तिब्बती ओपेरा मंडल के प्रभारी श्री जाशी तोची कहते हैं

थांगतुंग जेबू का पहला उद्देश्य एक पुल का निर्माण था । इस के लिए पैसों की आवश्यकता थी । इस लिए चंदा उगाहने के लिए उन्होंने सात लड़कियों का एक दल गठित किया और तिब्बती ओपेरा का प्रदर्शन करने लगे ।

एक किंवदंती के अनुसार, थांगतुंग जेबू तिब्बती लोगों को नदी पार कराने की सुविधा देने के लिए पुल का निर्माण कर रहे थे और उन के अनुयायियों में से सात सुन्दर लड़कियां तिब्बती ऑपेरा का प्रदर्शन धर्म प्रचार के अलावा विशेष तौर पर इसके लिए चंदा जुटाने के लिए करती थीं। यही कारण है कि तिब्बती ओपेरा के अधिकतर कथानक बौद्ध धर्म से आते हैं लेकिन गुजरे सैकड़ों वर्षों में तिब्बती ओपेरा के विषयों में भी वृद्धि हुई और धार्मिक विषयों के अलावा उन में ऐतिहासिक व लोक कथाएं भी शामिल हो गईं। इससे तिब्बती ओपेरा स्थानीय लोगों का पसंदीदा ओपेरा बन गया।

पर दोस्तो, परम्परागत तिब्बती ओपेरा में आठ विषय अब भी सब से ज्यादा मशहूर हैं । ऐसा एक परम्परागत ओपेरा बहुत लम्बा होने के कारण दो तीन दिनों तक चलता है । यों सब से लम्बे ओपेरा 《नोसान आचार्य》की प्रस्तुति सात दिन का समय लेती है । तिब्बती ओपेरा की प्रस्तुति आम तौर पर एक विशाल मैदान पर होती है और आरम्भ होने पर सुबह से रात तक चलती है। इसे दर्शक खाना खाते , चाय पीते देखते हैं । साथ ही कलाकार भी आराम के समय भोजन कर सकते हैं लेकिन इस सबके बावजूद मंच पर प्रस्तुति नहीं टूटती और एक दिन खत्म न होने पर अगले दिन जारी रहती है । हालांकि तिब्बती ओपेरा का कथानक निश्चित होता है तो भी अभिनेता व अभिनेत्री प्रस्तुति के दौरान दर्शकों के साथ संवाद कर सकते हैं । परम्परागत तिब्बती ओपेरा की इतनी लम्बी प्रस्तुति का शायद एक कारण यह भी है ।

तिब्बती ओपेरा की प्रस्तुति की व्यवस्था नियमित होती है , इस की चर्चा में श्री जाशी तोची ने कहा कि हर तिब्बती ओपेरा की प्रदर्शन-प्रक्रिया निश्चित होती है । आम तौर पर यह तीन भागों में बंटी होती है। पहले भाग में ओपेरा की शुरुआत में देवी-देवताओं की प्रार्थना की जाती है । दूसरे भाग में ओपेरा की मुख्य प्रस्तुति होती है और तीसरा अंतिम भाग जाशी कहलाता है ,जाशी का मतलब है सुख और शांति ।

तिब्बती ओपेरा का एक विशेष त्योहार भी मनाया जाता है । तिब्बती जाति का यह श्येतुन पर्व तिब्बती पंचांग के अनुसार हर वर्ष के छठे माह के अंतिम दिन पड़ता है । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में एक हफ़ते तक इसका भव्य समारोह आयोजित रहता है । श्येतुन पहले एक धार्मिक उत्सव भर था । इस दौरान विभिन्न क्षेत्रों के मशहूर तिब्बती ओपेरा मंडलों की ल्हासा के मंदिरों में प्रस्तुतियां होती थीं, इस लिए यह त्योहार बाद में तिब्बती ओपेरा त्योहार बन गया ।

श्येतुन त्योहार को मनते तीन सौ वर्षों से भी ज्यादा समय बीत चुका है । इस में मंचित तिब्बती ओपेरा तिब्बती लोगों के मनोरंजन का मुख्य साधन रहा है लेकिन आधुनिक समय में इसमें नए किस्म के मनोरंजन भी जुड़ गये हैं जो धीरे-धीरे लोगों की आराम की जिंदगी में स्थान पा रहे हैं । लोगों के रंगबिरंगे आर्थिक व सांस्कृतिक जीवन ने तिब्बती ओपेरा जैसी परम्परागत कला पर संकट ला खड़ा किया है ।

स्वायत्त प्रदेश का लोका क्षेत्र तिब्बती ओपेरा का जन्मस्थान है । हमारी हाल में लोका के राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन के उपाध्यक्ष कचू से मुलाकात हुई। श्री कची ने तिब्बती ओपेरा का विशेष अनुसंधान किया है और वे खुद भी ययययह ओपेरा गाते हैं । वे इस परम्परागत ओपेरा पर आये संकट को लेकर बड़े चिंतित हैं । उन्होंने हमें तिब्बती ओपेरा का एक अंश गाकर सुनाया और कहा कि आजकल युवाओं में पोप संगीत सबसे ज्यादा लोकप्रिय है । वे तिब्बती ओपेरा पसंद नहीं करते । अब सिर्फ तिब्बती चरवाहों को ही अपना यह ओपेरा पसंद हैं, अन्य लोग इसे कम ही पसंद करते हैं ।

श्री कचू की सहायिका दागा की उम्र बीस वर्ष से कुछ ऊपर है । उसे तिब्बती ओपेरा की बहुत कम जानकारी है और यह ओपेरा सुनने-समझने में भी मुश्किल होती है । उसका भी कहना है कि उस के हमउम्र तिब्बती ओपेरा पसंद नहीं करते। उस ने कहा कि तिब्बती ओपेरा देखने-सुनने वाले ज्यादातर बुज़ुर्ग ही हैं । युवा बाहर जाकर पोप म्यूजिक ही सुनना पसंद करते हैं ।

श्री कचू का मानना है कि तिब्बती ओपेरा का परम्परा के आधार पर नया विकास जरूरी है । इधर तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के तिब्बती ओपेरा मंडल की प्रस्तुतियों में भारी परिवर्तन आया है। कलाकार प्रस्तुतति के दौरान मुखौटे नहीं पहनते । इस बीच उन्होंने गाने पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया है और गाते समय वे चेहरे पर आने वाले भावों पर भी ध्यान देते हैं । ऐसा ओपेरा आम तौर पर दो-तीन घंटे ही चलता है और उसका आधुनिक मंच सज्जा , प्रकाश व्यवस्था , और संगीत का मिश्रित प्रभाव भी युवाओं को आकर्षित करता है ।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में तिब्बती ओपेरा मंडल तिब्बती ओपेरा करने वाला एकमात्र पेशेवर मंडल है । उस की स्थापना वर्ष 1960 में हुई । आज इस मंडल में कुल 120 सदस्य हैं । पुराने समय में तिब्बती ओपेरा के पेशेवर स्कूल नहीं होते थे । तब वरिष्ठ कलाकार अपनी कला को लोगों में बांटने के लिए खुद योग्य छात्रों का चुनाव करते थे । ऐसे में अगर कोई कलाकार बुढ़ापे में भी प्रतिभावान विद्यार्थी न हासिल कर पाता, तो उस के देहांत के साथ तिब्बती ओपेरा की उस की शैली भी समाप्त हो जाती थी । इस स्थिति को बदलने और तिब्बती ओपेरा को जीवित रखने के लिए तिब्बती ओपेरा मंडल ने स्वायत्त प्रदेश के संस्कृति प्रबंध विभाग के समर्थन से एक तिब्बती ओपेरा स्कूल खोला , ताकि ज्यादा से ज्यादा नये कलाकारों को तिब्बती ओपेरा में प्रशिक्षित किया जा सके । गत वर्ष तिब्बती ओपेरा मंडल ने 40 से ज्यादा विद्यार्थियों को तिब्बती ओपेरा सीखने के लिए भीतरी इलाके के सीच्वुआन प्रांत की राजधानी छंगतू भेजा । उन्होंने वहां तिब्बती ओपेरा के साथ सीछ्वुआन के उस छ्वुआन ओपेरा के अध्ययन का भी अवसर पाया, जो तिब्बती ओपेरा के बहुत नज़दीक है । इस की चर्चा में तिब्बती ओपेरा मंडल के कलाकार सीतान तोची ने कहा कि हाल तक तिब्बती ओपेरा सिर्फ़ तिब्बत और ल्हासा में प्रदर्शित किया जाता रहा । लेकिन मेरे विचार में तिब्बती ओपेरा और छ्वुआन ओपेरा के बीच अने समानताएं हैं । इस तरह हमारे विद्यार्थी भीतरी इलाके में जाकर और भी कुछ सीख सकेंगे।

" राजकुमारी वनछंग " नामक नये ओपेरा को तिब्बती ओपेरा में हुए सुधार की सब से सफल मिसाल माना गया है । वनछंग 1300 वर्ष पूर्व हुए थांग राजवंश की राजकुमारी थी । उन्होंने चीन की हान और तिब्बती जातियों के बीच शांति की स्थापना के लिए तिब्बती राजा सोंगजान कानबू से विवाह किया और तिब्बती लोगों के लिए भीतरी इलाके की प्रगतिशील तकनीक व संस्कृति तिब्बत ले गयीं। इस तरह उन्होंने हान और तिब्बती लोगों की मैत्री को सुदृढ़ करने में भारी योगदान किया ।