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2004-04-05 20:25:44
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जेएनयू में मेरा जीवन
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मैं सब से पहले सन 1992 के अगस्त में हिन्दी सीखने के लिये जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू गया । वहां एक साल बितने के बाद मैं इस जगह को अपना दूसरा घर मानने लगा । इस के बाद मुझे और एक बार भारत में काम करने का मौका मिला । सन 1996 में मैं हमारे चाइना रेडियो इंटरनेशनल के दिल्ली कार्यालय के प्रधान की हैसियत से दिल्ली गया । तब मैं दक्षिणी दिल्ली के वसंत विहार में रहा था , जो जैन्य के सुन्दर कैम्पस के नजदीक है । तब तो मैं रोज घुमते घुमते जैन्य जाता था । वहां के सभी जगहों के मनोहर दृश्यों और फूलों की सुगंध की याद आज भी मेरी आंखों के सामने उभर रही हैं ।
मेरे भारतीय दोस्तों ने अक्सर मुझ से यह पूछा कि हू साहब , हमें लगता है कि आप दूसरों से बिल्कुल अलग हैं , आप की भारत के प्रति बहुत गहरी भावना है , औप को भारत के बारे में काफी जानकारी है , और आप को हिन्दी भी आती है । यह सब आप को कहां से हासिल हैं , जेएन्यू टसे ?
यह पूछे जाने पर मैं कभी कभी चौकिंग देते हुए यह जवाब देता था कि हां , क्योंकि मेरी पिछली जिंदगी चीन में नहीं , पर एक हिन्दुस्तानी के रुप में भारत में जी थी । वास्तव में जब मैं भारत में रहता था , तब मुझ पर भारतीय जनता की मित्रता , स्नेह और विनोदशीलता की गहरी छाप पड़ी । इस में मुझे जो सब से ज्यादा प्रभाव डाला गया है , वह है जैन्यू ।
जब मैं जैन्यू के लैनक्वेईच स्कूल में पढ़ता था , पहले के कुछ दिनों में मैं भी दूसरे छात्रों की तरह रोज क्लासरूम में पढ़ता और अवकाश में पुस्तकालय में बैठता था । पर मेरा ख्याल था , स्कूल में जो पढ़ाया गया है , वे सब प्राचीन साहित्य की चीज़ें हैं । जैसे तुलसीदास की कविता है , कबीरदास की कविता है , सूरदास की कविता है , जो सब मेरे रोजाना जीवन से बहुत दूर हैं । मेरी जो दिलचस्पी है , वह है भारत के समाज और भारतीय जनता के जीवन के बारे में । इसलिये मैं क्लासरूम में नहीं बैठ सका और वहां से भाग गया । मैं ने अपने अधिक समय का प्रयोग , इस देश के विभिन्न स्थलों की यात्रा करने और आम लोगों के जीवन की जानकारी तलाशने में किया था ।
जेएनयू में पढ़ते समय मेरे बहुत से भारतीय दोस्त भी थे । हम अक्सर बातचीत करते थे । दिल्ली में मई से जुलाई के बीच तापमान बहुत ऊंचा था , दिन में बाहर जाना मुश्किल था , और उस समय स्कूल में भी छुट्टियां थी , यानी समर वकेशन । इसलिये मुझे दिन में या तो पुस्तकाल्य में पढ़ना था , या सिर्फ मेरे होस्टल, पूर्वांचल के ब्रह्मपुत्र छात्रावास में आराम करना था । पर रात को हम सब बाहर जाते थे । मैं अपने दोस्तों के साथ अक्सर रात भर शोपिंग सेंटर के बाहर की कुर्सियों या पत्थरों पर बैठकर बातचीत करता था । हमारी बातचीत के विषय अलग अलग थे , पर आम तौर पर दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों के जीवन , उन के बीच मैत्री और खासकर ये होते रहे , जैसे चीन और भारत हमारे दोनों देशों के बीच संबंध और हमारी दोनों जनता के बीच पारस्परिक समझ । युवकों के लिये यह हमेशा दिलचस्पी वाले विषय रहे हैं । मेरा ख्याल है कि युवकों को अपने देश के विकास और भविष्य के सवाल पर विचार करना ही चाहिये , और उन्हें अपने देश के विकास के लिये कुछ न कुछ योगदान करना ही चाहिये ।
मेरा यह भी ख्याल है कि चीन और भारत दोनों महान देश हैं । इन दोनों देशों के बीच मैत्री का पुल बनना बहुत गौरव की बात है । अगर हमारा काम चीन-भारत मैत्री के एक नई मंजिल पर पहुंचने में मदद हो सके , तब तो हमारा दिल भी फूला न समाएगा ।
( हू मीन )
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