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(GMT+08:00) 2004-03-18 15:46:25    
चीनी छात्रों की विदेशों में पढ़ाई

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चीन और भारत दोनों देशों की बात एक ही है । बहुत से छात्र अपनी जन्मभूमि को छोड़कर , उन्नतिशील तकनीक और प्रबंध विज्ञान सीखने के लिये अमेरिका पश्चिमी देश जा रहे हैं । इन छात्रों में कुछ तो वापस हो चुके हैं , और कुछ ने वहां आवर्जन किया है । विदेशों में पढ़ना और वहां जीवन बिताना हमारे युवकों के लिये काफी उत्तेजित बात है । यह उन के विकसित देशों में निरंतर जाने का कारण भी है । चीनी छात्रों का 1970 के दशक से विदेशों में पढ़ना शुरू हुआ , अब तक कुल 5 लाख 80 हजार चीनी छात्र विदेश जा चुके हैं । वर्ष 1978 में जब चीन ने खुली नीति लागू की , तब बहुत कम चीनी लोग विदेशों में पढ़ जाते थे। उस समय तक चीन सरकार ने हर वर्ष लगभग 3000 चीनी छात्रों को विदेशों में पढ़ने भेजा था । खुलेपन की नीति लागू करने के बाद चीन सरकार ने अपने छात्रों को विदेशों में अपने खर्च पर पढ़ने जाने के लिये प्रोत्साहित करना शुरू किया । इस तरह कुछ चीनी परिवारों के लिये अपने बच्चों को विदेशों में अपने व्यव पर पढ़ने के लिये भेजना एक नया विकल्प बन गया । पिछले दो सालों का सर्वेक्षण बताता है कि हर वर्ष चीन के लगभग 80 हजार छात्र पढ़ने के लिये विदेश जा रहे हैं । उन का अधिकांश अमेरिका जाता है । वर्ष 2000 में कुल 45 हजार चीनी छात्र अमेरिका में पढ़ रहे थे । अमेरिका के बाद चीनी छात्र आम तौर पर अपने गंतव्य के रूप में जापान , कनाडा , ओस्ट्रेलिया , ब्रिटेन , न्यूज़ीलैंड , जर्मनी और फ्रांस आदि देशों को चुनते हैं । जापान में इस समय 30 हजार चीनी छात्र हैं और ओस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले चीनी छात्रों की संख्या 90 हजार तक जा पहुंची है । चीनी शिक्षा मंत्रालय के आंकड़े हैं कि अब तक दो तिहाई चीनी छात्र वापस हो गये हैं । पहले चीन की स्थिति काफी संतोषजनक नहीं , इसलिये कुछ चीनी छात्र विदेशों में सीखने के बाद जब अपने देश वापस गये , उन्हें अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल करने की जगह नहीं मिल पाते थे । लेकिन इधर के वर्षों में यह सुधर गयी है । चीन की आर्थिक विकास बहुत तेज़ी से होता जा रहा है , तकनीशियन और प्रबंधकों का मौका निरंतर उभरते रहे हैं । इसलिये बहुत से छात्र वापस आ चुके हैं और वापस आते जा रहे हैं । भारत की भी ऐसी स्थिति है । अब अमेरिका , ब्रिटेन , जर्मनी और जापान में बहुत से भारतीय छात्र हैं । पहले भारत को भी प्रतिभाओं की बहाली की गंभीर समस्या रही थी । पर आजकल यह भी सुधरी है । भारत का आर्थिक विकास इधर दस सालों में तेज़ बनता जा रहा है , इसलिये प्रतिभाओं की बहाली अब अमेरिका की ओर नहीं , पर भारत की ओर वापस होने लगी है । किसी एक देश के विकास के लिये प्रतिभा सब से महत्वपूर्ण है । है न ? हम विकासशील देश हैं , हमें प्रतिभाओं की बहुत चाहिये । लेकिन कुछ विकसित देशों ने हमारे यहां प्रतिभाओं को खीचने का प्रयास किया है । यह विकासशील देशों के लिये अन्याय है । लेकिन हमें इस सवाल की दूसरी तरफ को भी देखना चाहिये । क्योंकि हम विकासशील देशों की विज्ञान , तकनीक और खासकर प्रबंध स्तर ऊंचा नहीं है , इसलिये हमें अपने छात्र विकसित देशों में भेजना ही चाहिये । पर बात यह है कि इन छात्रों को पढ़ने के बाद वापस होना चाहिये और अपने देश के विकास के लिये योगदान पेश करना ही चाहिये । पत्रों के अनुसार चीनी छात्रों में विदेशों में अध्ययन की रूचि तेज होने के चलते इधर बहुत से विदेशी विश्वविद्यालयों ने भी चीनी छात्रों को अपनी ओर खींचने के लिये कोशिशें शुरू कर दी हैं । जैसे ओस्ट्रेलिया ने चीनी छात्रों के लिये विशेष तौर पर अंग्रेज़ी भाषा के अपने सर्व मान्य मापदंड में रियायत दी है । ब्रिटेन ने यह नियम लागू किया कि उस के यहां में 6 महीनों से ज्यादा अध्ययन करने वाले चीनी छात्र को वह निःशुल्क चिकित्सा सेवा प्रदान करेगा । जर्मनी सरकार ने चीन की राजधानी पेइजिंग में चीनी छात्रों के लिये एक विशेष कार्यलय खोला , जो चीनी छात्रों के वीज़ा आवेदन के विनिमय के जिम्मेदार है । यही नहीं कुछ पश्चिमी देशों के विश्वविद्यालयों ने चीन में शिक्षा प्रदर्शनी भी लगाई हैं । यहीं हम देख पाते हैं कि शिक्षा न सिर्फ शिक्षा की बात है , वह प्रतिभा का सवाल भी है , मार्केट का सवाल भी है । और यहां और एक सवाल है । भारत के छात्रों आम तौर पर अंग्रेजी आती है , उन के पश्चिमी देशों में जाते समय कोई लैंक्वेज प्रोग्राम नहीं है । पर चीन की बीत दूसरी है । बहुत से चीनी छात्रों की अंग्रेजी लिमिटित है , उन की विदेशी कालेज़ों की स्थितियों के प्रति काफी जानकारी नहीं है । इसलिये जब वे विदेशों में जाते हैं , उन्हें कभी कभी मुसिबत मिलती है । और इस में धोखेबाज़ी भी मिलती हैं । मिसाल है कि कुछ एजेंट ने छात्रों को यह बताया है कि वे विदेश में किसी बड़े कालेज में आ जाएंगे , पर जब वे वहां पहुंचे , वे जानेंगे कि वहां सब कुछ नहीं है । यह सवाल केवल चीनी छात्रों के लिये नहीं है । धोखेबाज़ी जगह जगह मिल सकती है । हमें जो करना चाहिये , सावधान ही रहना चाहिये ।