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(GMT+08:00)
2004-03-15 13:54:03
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परिवार नियोजन और बच्चों का प्रशिक्षण
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परिवार नियोजन चीन और भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देशों के लिये बहुत जरूरी है । अब चीन की जनसंख्या एक अरब तीस करोड़ है , जबकि भारत की भी एक अरब के ऊपर है । अगर हम जनसंख्या के हद से ज्यादा वृद्धि को काबू में नहीं कर पाते हैं , तब तो हमारी आर्थिक वृद्धि पर इस का बूरा प्रभाव पड़ेगा । इस लिये भारत में भी जगह जगह ऐसे नारे नज़र आ सकते हैं , छोटा परिवार सुखी परिवार , या हम दो- हमारे दो । इस का मतलब है कि एक परिवार में सिर्फ दो बच्चों का होना अच्छा होता है । जबकि पहले एक ही परिवार में पांच छै बच्चे होते थे । ज्यादा बच्चे माता पिता के जीवन में कितनी कठिनाई पैदा करते हैं और समाज पर इस का दबाव बढ़ता जाता है ।
चीन के शहरों में यह नीति और कड़ी है । अब चीन के शहरों में एक परिवार में सिर्फ एक बच्चा ही होना चाहिये । जैसे भारत का नारा है हम दो , हमारे दो । पर चीन का है , हम दो-हमारा एक । इस तरह यह आशंका भी है कि एक परिवार में सिर्फ एक बच्चा , अगर माता पिता बूढ़े हो जाएं , तो
उन की देखभाल कैसे की जाए ।
इसी उद्देश्य से चीन के शहरों में दंपत्ति अपने बच्चों के शिक्षण को बहुत जोर देते हैं । क्योंकि उन का केवल एक बच्चा है , इसलिये वे अपने बच्चे को भविष्य में प्रशिक्षित और अमीर आदमी बनवाना चाहते हैं । चीनी लोग अपने बच्चों के शिक्षा पर बहुत ध्यान दे रहे हैं और भारी पूंजी डालने का प्रयास कर रहे हैं । चीनी भाषा का एक ऐसा मुहावरा है , एक बच्चे का भविष्य उस के तीन वर्ष से ही देखा जाता है । इस का मतलब है कि बच्चों का प्रारंभिक शिक्षण उस के जिन्दगी भर के लिये बहुत महत्वपूर्ण है । अब चीन के किंडगाडेन में बच्चे तीन उम्र से अंग्रेजी भाषा , संगीत , पेटिंग , नृत्य और यहां तक कम्प्यूटर सीखना शुरू करते हैं । जब ये बच्चे प्राइमरी स्कूल में प्रवेशिष्ट होते हैं , तब तो उन के माता पिता और ज्यादा कष्ट करेंगे । क्योंकि चीन के शहरों में प्राइमरी स्कूल भिन्न भिन्न स्तर के हैं । कुछ स्कूल श्रेष्ठ हैं , कुछ उतना अच्छा नहीं । लोग सब अपने बच्चे के श्रेष्ठ स्कूलों में प्रवेश होना चाहते हैं । पर अच्छे स्कूल में प्रवेश के लिये ज्यादा फीस के अतिरिक्त ऊंच्चा अंक भी होना चाहिये । इसलिये चीन के माता पिता अपने बच्चे के शिक्षण के लिये बहुत कष्ट कर रहे हैं । चीनी भाषा में एक मुहावरा है - माता पिता का दिल , सब से बेचारा दिल । इस का मतलब है कि माता पिता अपने बच्चे के कल्याण के लिये किसी भी मूल्य पर योगदान करने को तैयार है । दुनिया की सब जगह बच्चे के प्रति माता पिता का प्यार बराबर है । लोग अपने खर्च का सब से ज्यादा भाग बच्चों के शिक्षा पर डालते हैं । वे अपने बच्चों के शिक्षा पर बहुत जोर देते हैं । किंडकाडेन , प्राइमरी स्कूल , मिडिल स्कूल , हाई स्कूल , कालेज , और अंत में विदेश में भेजा जाएगा ।
पर इधर के वर्षों में चीनी बच्चों के प्रशिक्षा में अब भी कुछ समस्याएं उभर रही हैं । जैसे कुछ बच्चों को प्राइमरी स्कूल से कालेज तक हमेशा भिन्न भिन्न परीक्षाओं से पास करना पड़ता है । उन के पढ़ाई के सिवा और कुछ बात नहीं है । इसलिये चीन के कुछ छात्र कालेज से स्नातक होने के बाद भी भोजन बनाना नहीं आते हैं , कपड़े धोना नहीं आते हैं , और कुछ छात्र हमेशा माता पिता के यहां से प्यार लेते हैं , पर माता पिता को प्यार वापस कभी नहीं देते ।
इसलिये विशेषज्ञों का मानना है कि सब से महत्वपूर्ण बात है हमारे परिवार में कितने बच्चे नहीं , पर इन बच्चों का कैसा प्रशिक्षण ।
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