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चीन की अल्पसंख्यक जाति

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सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2004-03-11 15:03:29    
चीन के अल्प संख्यक जाति कार्यक्रम का सारांश

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          दोस्तो , वर्ष 2004 से  सी.आर .आई की हिन्दी सेवा में एक नया कार्यक्रम का आरंभ हो रहा है , जो हर शुक्रवार को प्रस्तुत होता है . इस नये कार्यक्रम का नाम है चीन की अल्प संख्यक जाति । जी हां , चीन की अल्प संख्यक जाति के बारे में आप को जरूर बड़ी रूचि होती है और उन के इतिहास , वर्तमान स्थिति , रिति रिवाज और संस्कृति की जानकारी आप अवश्य पाना चाहते हैं । हमारे पिछले कार्यक्रमों से आप को यह मालूम हुआ होगा कि चीन में बहु जनसंख्या वाली हान जाति के अलावा 55 अल्प संख्यक जाति होती हैं । हमारे शब्दों में अल्प संख्यक जाति का अर्थ इन जातियों की जन संख्या  हान जाति की तूलना में बहुत कम होने से है । यानी इन 55 जातियों की कुल जन संख्या देश की कुल जन संख्या का सिर्फ आठ प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा है । हान जाति की जन संख्या देश की कुल जन संख्या का कोई 82 प्रतिशत रहा , इसीलिए चीन में उन जातियों को अल्प संख्यक जाति कहा जाता है । लेकिन ये 55 अल्प संख्यक जातियां चीनी राष्ट्र के महा परिवार के महत्वपूर्ण और समानता वाले सदस्य हैं , उन्हों ने चीन के पांच हजार वर्ष पुराने इतिहास के विकास में बड़ा योगदान किया है और नए चीन के आधुनिक निर्माण में लगातार योगदान कर रही हैं । अतः चीन के बारे में अगर संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहे , तो इन 55 अल्प संख्यक जातियों के संबंध में जानकारी पाना निहायत जरूर है ।
 

         दोस्तो , एतिहासिक विकास के कारण चीन की अल्प संख्यक जातियां बहुधा  देश के सरहदी इलाकों में रहती है , उन की जन संख्या कम होने पर भी उन का आबादी क्षेत्रफल  बहुत विशाल है । चीन के पचास साठ प्रतिशत के भूभाग में अल्प संख्यक जातियां  बसी हुई मिलती है , पिछली दर्जनों सदियों से उन्हों ने अपने मेहनती हाथों से देस के सरहदी क्षेत्रों का विकास किया और कालांतर में अपनी शानदार सभ्यताएं और विशेष संस्कृतियों का सृजन किया , उन की महान संस्कृति चीनी राष्ट्र के सांस्कृतिक खजाने का बेमिसाल धरोहर होने के साथ विश्व सभ्यता का एक अहम भाग भी होती है ।

        दोस्तो , प्राचीन चीन की विशाल भूमि पर अनेक जातियां रहती थी , उन के बीच आवाजाही और आदान प्रदान का लम्बा इतिहास रहा । पांच हजार वर्ष विकसित होने के बाद आज वे 56 जातियों में बंटी हुई , जिन में हान जाति को छोड़ कर अन्य 55 जातियों की जन संख्या अपेक्षाकृत कम है  , फिर उन अल्प जातियों में कुछों की जन संख्या अधिक है तथा अन्य कुछों की बहुत कम । जहां चीन की मंगोल , हुई , तिब्बत , वेवूर , म्यो , ई , ज्वांग , बुई , कोरिया , मांन , थोंग , यो , पाई , थु , हानी , कजाख , ताई तथा ली जातियों की जन संख्या दस लाख से अधिक है  , वहां  हचे , तातार , तुलुंन , अल्वुनछुन , लोपा , मनपा तथा क्वोशान जातियों की जन संख्या दस हजार से भी कम होती है ।

         कहा जाता है कि हजारों साल पहले मध्य चीन के पीली नदी घाटी क्षेत्र में रहने वाली शा जाति ने देश के हुए ह नदी , यांगत्सी नदी तथा होंग श्वे नदी के घाटी क्षेत्रों में बसी  तुंग ई , सान म्यो तथा छांग जातियों के साथ आवाजाही शुरू की , फिर देश के युद्धरत राज्य वंश के काल में  सांग और चाओ  जातियों से अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाली छांग , यङ , ती और मान जातियों के विलय से चीनी राष्ट्र की हान जाति की उत्पति हुई , ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में चीन के प्रथम सामंती सम्राट छिन श होंग ने चीन का एकीकरण किया , इस से बहु जातियों वाला एक एकीकृत विशान देश का जन्म हो गया । 

       दोस्तो , प्राचीन काल में चीन की हान जाति मुख्यतः पीली नदी और यांगत्सी नदी के घाटी क्षेत्रों में रहती थी और खेतीबाड़ी करती थी , जबकि अल्प संख्यक जातियां देश के उत्तरी , पश्चिम तथा दक्षिण भागों में रहती थी और बहुत सी जातियां मवेशी चराती थी या धान की खेती करती थी । विभिन्न क्षेत्रों में अधित विकसित होने के परिणामस्वरूप हान जाति की उन्नतीशी संस्कृति को उस के आसपास रहने वीली अल्प संख्यक जातियों ने भी गृहित किया , साथ ही वे अपनी विशेष परम्पराएं भी सुरक्षित रखे हुई । इस तरह चीनी राष्ट्र के सांस्कृतिक और आर्थिक विकास में स्पष्ट विविधता देखने को मिली । हान जाति ने अल्प संख्यक जातियों से भी बहुत से उन्नत कलाएं सीखी , उदाहरण के लिए हान जाति ने उस समय की अल्प संख्यक जाति  बेती से धुड़सवारी कला सीखी , देश के पश्चिमी भाग में रहने वाली अल्प संख्यक जातियों से अंगूर व तरबूज जैसे फलों के बागबानी सीखे तथा ह नान द्वीप की ई जाति से  बुनाई की तकनीक गृहित की ।

        हान जाति की भांति चीन की अल्प संख्यक जातियों ने चीनी राष्ट्र की शानदार संस्कृति का विकास करने में योगदान किया , उन्हों ने अपनी जाति की भाषा , लिपि तथा साहित्य कला का विकास कर चीनी राष्ट्र के सांस्कृतिक खजाने को समृद्ध बनाया है । मगोल , तिब्बत तथा मान जातियों ने ध्वनी प्रधान लिपि का विकास किया , जो प्राचीन महत्व के साथ उन्नतिशील भी है । चीन में जो लोकप्रिय वाद्य बांसुरी , पीपा , खुंग हो तथा हु छिन नामक तंतु वाद्य यंत्र भी देश के सरहदी क्षेत्रों में रहने वाली अल्प संख्यक जातियों से देश के विभिन्न क्षेत्रों में फैले थे । चीन की अनेक अल्प संख्यक जातियों का कला साहित्य भी काफी विकसित हुआ है ,मंगोल जाति का प्राचीन ग्रंथावली  गुप्त मंगोल इतिहास व महा काव्य कसार , वेवूर जाति का महा काव्य कल्याण व  बुद्धिमता , तिब्बत जाति का महा काव्य राजा केसारस तथा खरकिज जाति का महा काव्य मानस साहित्य रचनाएं विश्व में भी प्रसिद्ध है ।

        दोस्तो , नए चीन की स्थापना के बाद चीन सरकार ने अल्प संख्यक जातियों के विकास को अत्यन्त बड़ा महत्व दिया । चीन के  प्रथम संविधान स्वरूप संयुक्त कार्यक्रम में यह स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि  चीन की सभी जातियां समान होती है , जातीय भेदभाव की मनाही है , अल्प संख्यक जाति बहुल क्षेत्रों में जातीय स्वायत्त व्यवस्था लागू होती है और सभी जातियों को अपनी लिपि का विकास करने तथा अपने रिति रिवाज को सुरक्षित रखने का अधिकार है एवं धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता है । अल्प संख्यक जातियों के लिए सरकार की उदार नीतियों तथा आर्थिक सुधार व खुलेपन की नीति के चलते चीन के अल्प संख्यक जातियों के स्वायत्त क्षेत्रों में आर्थिक विकास तेजी से होने लगा और सामाजिक , सांस्कृतिक व शैक्षिक कार्यों तथा जन जीवन में उल्लेखनीय प्रगति हुई । यह सब  समूचे चीन के विकास का एक अभिन्न भाग है , जिस के बारे में जानकारी नहीं होना  चीन संबंधी  जानकारी अधूरा होगा । इसी ख्याल से हम ने इस साल से चीन की अल्प संख्यक जाति नाम का नया कार्यक्रम शुरू करने का निश्चय किया है , आशा है कि आप  इस का स्वागत करेंगे ।

        दोस्तो , चीन की अल्प संख्यक जाति कार्यक्रम में  हम अल्प संख्यक जातियों के संक्षिप्त इतिहास , उन की परम्परागत संस्कृति , परम्परागत मान्यता , रिति रिवाज ,  कथा कहानी , उन के आधुनिक जीवन , प्रसिद्ध व्यक्तियों और मशहूर स्थलों तथा उन के आबादी क्षेत्रों के रमणीक स्थानों , प्राकृतिक सौंदर्य आदि के संदर्भ में रिपोर्टें प्रसारित करेंगे ताकि श्रोताओं को विस्तृत पहलुओं से उन की स्थिति मालूम हो सके । चीन की अल्प संख्यक जातियों के लोग बहुधा नाच गान के शौकिन हैं , उन के त्यौहार उत्सव और प्रथाएं भी हान जाति से भिन्न होती है , जहां वे रहते हैं , वहां का प्राकृतिक सौंदर्य भी देखता बनता है , इसलिए नए कार्यक्रम में इस क्षेत्र में ज्यादा जानकारी दी जाएगी , उम्मीद है कि श्रोताओं को पसंद आएगा और इस में सुधार के लिए अपना विचार हमें लिख कर बताएंगे , धन्यावाद ।