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(GMT+08:00) 2004-03-04 16:32:51    
चीनी प्राचीन रेशम मार्ग

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लगभग दो हज़ार वर्ष पूर्व चीन विश्व से एक विशाल मार्ग से जुड़ा था । "रेशम मार्ग" नामक इस व्यापार मार्ग ने चीन,यूरोप व एशियाई देशों के बीच एक पुल के रूप में पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक आवाजाही में भारी योगदान किया ।

"रेशम मार्ग" के जरिए चीन प्राचीन समय में मध्य ,दक्षिणी व पश्चिमी एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अफ़्रीका के देशों के साथ व्यापार करता था । दरअसल इस मार्ग से चीन का रेशम एवं उससे बने वस्त्र पश्चिम को पहुंचते थे , इसीलिए इसे यह नाम हासिल हुआ।

पुरातत्व में "रेशम मार्ग" के ईसा पूर्व पहली शताब्दी में चीन के हान राजवंश के दौरान अस्तित्व में आने के प्रमाण हैं । तब के "रेशम मार्ग" पर दक्षिण में चलकर आज के अफ़गानिस्तान, उज़बेकिस्तान और ईरान पहुंचा जा सकता था। इस का सब से लंबा सफर यात्रियों को आज के मिस्र के ऐलेक्जांद्रिया शहर ले जाता था । इस पर दूसरी दिशा में चलने पर पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के काबुल से गुज़र कर लोग फ़ारस की खाड़ी तक पहुंचते । काबुल से दक्षिण की ओर जाने पर मुसाफिर आज के पाकिस्तान के कराची जा पहुंचते और थल मार्ग छोड़कर समुद्री मार्ग अपनाने पर फारस होते हुए रोम जा सकते थे।

ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से ईसा पश्चात दूसरी शताब्दी के बीच पश्चिम और पूर्व के चार महादेश- यूरोप का रोम , पश्चिमी एशिया का फ़ारस , मध्य एशिया का कुशान तथा पूर्वी एशिया के चीन का हान साम्राज्य "रेशम मार्ग" के जरिए पूरी तरह जुड़ चुके थे । "रेशम मार्ग" से इन देशों के बीच संस्कृति का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान भी होने लगा था और इस तरह इनकी सभ्यता का विकास एक-दूसरे से प्रभावित हुआ ।

"रेशम मार्ग" के जटिल यातायात जाल से पश्चिम और पूर्व के बीच आवाजाही बढ़ी । सातवीं से नौवीं शताब्दी के बीच छांग राजवंश में "रेशम मार्ग" का सर्वाधिक विकास हुआ । चीन और पश्चिमी देशों के बीच आवाजाही बढ़ी ही नहीं उसने विविध रूप भी पाया। पश्चिमी क्षेत्रों के रत्न व इत्र , उत्कृष्ट उत्पाद तथा स्वर्ण व रजत मुद्राएं , पश्चिमी व मध्य एशिया का संगीत-नृत्य , आहार-पेय तथा वस्त्र आदि चीन आने लगे और चीन की कृषि उत्पादन और अन्य प्रगतिशील तकनीकें भी विश्व के विभिन्न देशों तक पहुंचीं । चीन की रेशम , चीनी मिट्टी , काग़ज और छपाई की तकनीक तथा कुतुबनुमा ने विश्व सभ्यता के विकास में भारी योगदान किया ।

व्यापारिक आदान-प्रदान के साथ "रेशम मार्ग" विभिन्न क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक आवाजाही में भी सक्रिय रहा । भारत में उत्पन्न विश्व के तीन बड़े धर्मों में से एक बौद्ध धर्म ने ईसा पूर्व 206 से220 के बीच चीन के पश्चिमी हान राजवंश में चीन मे प्रवेश पाया । तीसरी शताब्दी में निर्मित शिंगचांग की कज़र गुफ़ा में अब तक सुरक्षित दस हज़ार वर्ग मीटर क्षेत्रफल वाले भित्तिचित्रों से बौद्ध धर्म के भारत से चीन पहुंचने की बात जाहिर होती है। अनुमान है कि बौद्ध धर्म "रेशम मार्ग" के जरिए कज़र से कानसू प्रांत के तुनह्वांग पहुंचा और इस के बाद चीन के भीतरी इलाके में दाखिल हुआ। "रेशम मार्ग" की अब तक सुरक्षित बौद्ध गुफ़ाओं में तुंनह्वांग की मोकाओ तथा लोयांग की तुंगमन गुफ़ाएं बहुत प्रसिद्ध हैं। इन गुफ़ाओं के निर्माण में पूर्वी और पश्चिमी शैली का मिश्रण देखने को मिलता है जो "रेशम मार्ग" के जरिए पूर्व व पश्चिम के बीच हुई सांस्कृतिक आवाजाही का सबूत माना जाता है । आज ये गुफ़ाएं विश्व की सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल हैं ।

नौवीं शताब्दी के बाद , यूरोप और एशिया महाद्वीपों के राजनीतिक-आर्थिक ढांचे के बदलने के साथ विशेषकर जहाज़ की तकनीक में प्रगति आने से व्यापार में जहाज़रानी की भूमिका दिन ब दिन बढ़ती गई जिस से प्राचीन "रेशम मार्ग" का प्रयोग कम होता गया।

ऐतिहासिक "रेशम मार्ग" ने विश्व सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । इधर संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को ने "रेशम मार्ग के अनुसंधान की नयी योजना " तैयार की है और उसे "संवाद का मार्ग" बनाने का प्रयास किया है ताकि पूर्व और पश्चिम के बीच आवाजाही बढ़ायी जा सके ।