चीन की 55 अल्पसंख्यक जातियां हैं, जिन की कुल जन संख्या 12 करोड़ है और ज्यादातर अल्प संख्यक जातियां देश के पश्चिमी भाग में रहती हैं । देश के हजारों वर्ष लम्बे पुराने इतिहास में विभिन्न अल्प संख्यक जातियों ने अपनी अपनी विशेष संस्कृति की सृष्टि की , जिस से चीनी राष्ट्र की शानदार संस्कृति में चार चांद लग गए।
उत्तर पश्चिमी चीन में रहने वाली वेवूर जाति की एक प्राचीन संगीत रचना मुकाम एक जीवंट उदारहण है । मुकाम शीषर्क यह प्राचीन संगीत रचना दरअसल बारह लम्बे संगीतों की श्रृंखला है , जो 15 वीं शताब्दी से पहले वेवूर जाति के लोक कलाकारों के निरंतर प्रयासों से विभिन्न कालों में तैयार की गई और परिपूर्ण बनायी गई थी । मुकाम संगीत रचना चीन में नामी होने के साथ साथ अब विदेशों में भी स्वागत युक्त हुई।
चीन सरकार ने वेवूर जाति की इस महान रचना के संरक्षण के लिए खासा काम किया है । 1949 में चीन लोग गणराज्य की स्थापन से पहले यह संगीत रचना सदियों से उपेक्षित रही थी । उस जमाने में सदियों लम्बे सामाजिक उथल पुथल तथा लगातार युद्ध छिड़ने के कारण मुकाम लुप्त होने की स्थिति में पड़ी । नए चीन की स्थापना के बाद सरकार ने वेवूर जाति के सांसकृतिक धरोहर को बचाने और सुरक्षित करने का फैसला लिया , पचास के दशक से ही उस का संरक्षण व संकलन करने का काम शुरू किया गया और साठ के दशक में बारह मुकाम के नाम से इस का संग्रह प्रकाशित किया गया । इस कोशिश के चलते अधिक से अधिक देश वासियों को इस संगीत श्रृंखला की मधुर धुन सुनने का मौका प्राप्त हुआ । पिछले साल में मुकाम के कुछ संगीतों को सी .डी और वी .सी .डी में टेप किए गए , इस से और अधिक संख्या में लोग उस का आनंद उठा सके । चीनी राष्ट्रीय समाचार प्रकाशन कार्यालय ने 2001 के अन्त से 2005 तक मुकाम के सभी बारह संगीत श्रृंखलाओं के सी .डी बनाने की योजना भी बनायी।
मुकाम के सी .डी और वी . सी .डी बनाने के काम की चर्चा करते हुए शिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश के रेडियो , टेलिविजन व फिल्म ब्यूरो के उप प्रभारी श्री अब्लिच .आब्दुला ने गहरा अनुभव बताते हुए कहा , मुकाम के सी .डी और वी. सी. डी बनाने के काम में केन्द्र से लेकर स्थानीय सरकारों और विभिन्न जातीय संगीत कार्यक्रताओं की कड़ी मेहनत संजोई हुई है । धन राशि के अभाव को दूर करने के लिए केन्द्र सरकार ने बीस लाख य्वान का अनुदान किया , राष्ट्रीय रेडियो , टी.वी व फिल्म ब्यूरो ने लाखों य्वान मूल्य के डिजिटल रिकार्टिंग मशीनें मुहैया कीं और कैमरामन के लिए तकनीक में दक्ष विशेषज्ञों को नियुक्त किया।
चीन के लम्बे पुराने एतिहासिक काल के दौरान विभिन्न अल्प संख्यक जातियों ने अपनी अपनी अतुल्य संगीतों और नृत्यगानों का सृजन करने के अलावा बेशुमार लिखित कृतियां सांसकृतिक धरोहर के रूप में तैयार कर रखी हुईं। इन सांस्कृतिक धरोहरों को विनाश से बचाने तथा उन्हें संगृहित और प्रकाशित करने के लिए देश के विभिन्न अल्प संख्यक जाति बहुल क्षेत्रों ने बड़ी संख्या में अपने प्राचीन पुस्तकों का संकलन करने की संस्थाएं स्थापित कीं । चीन के जातीय एतिहासिक पुस्तक अनुसंधान प्रतिष्ठान के प्रधान श्री ली तुंग सङ ने इस क्षेत्र के काम का परिचय कियाः चीन के विभिन्न स्थानों ने अब तक अल्प संख्यक जातियों की तीस हजार किस्मों की प्राचीन पुस्तकों को विनाश से बचाया और उन का संकलन किया , जिन में बहुत से ऐसे मुल्यवान कॉपि भी शामिल हैं जो मात्र एक ही मिल पाई हो या मुश्किल से प्राप्त हुई हो । बड़ी संख्या में तिब्बत जाति का महा काव्य राजा कैसर , मंगोल जाति का वीरकाव्य चांगकर और किर्कची जाति का एतिहासिक काव्य मानेस जैसे मूल्यवान तथा लोकप्रिय अल्पसंख्यक जातीय कृतियां प्रकशित की गई।
विश्व का सब से लम्बा काव्य माने जाने वाला तिब्बत का महा काव्य राजा कैसर आज से एक हजार वर्ष पहले प्रकाश में आया था । वह तिब्बती वाचन कलाकारों द्वारा मौखिक रूप से विकसित किया गया है , जो देश के तिब्बत , युन्नान , छिनहाई तथा सछ्वान प्रांतों के तिब्बती बहुल क्षेत्रों में सदियों से प्रसारित होता है , कैसर काव्य में तिब्बत जाति के इतिहास , कला साहित्य , धर्म , रितिरिवाज तथा सामाजिक मान्यता से जुड़ी प्रचूर विषयवस्तुएं संगृहित हैं । इधर के बीस सालों में चीन सरकार ने तिब्बती जाति के इस एतिहासिक धरोहर को विनाश से बचाने के लिए कई सौ विशेषज्ञों और विद्वानों का एक बड़ा जांच व अनुसंधान दल गठित किया। संबंधित विभागों ने विशेष तौर पर कैसर काव्य के अनुसंधान का नेतृत्वकारी दल भी कायम किया । अब तक इस की 150 से अधिक हस्तलिखित पुस्तकों की खोज निकाली गई और उन का व्यवस्थित संकलन किया गया , जिन के कुल एक करोड़ पचास लाख शब्द हैं।
सूत्रों के अनुसार 1998 से चीन के अल्पसंख्यक जातीय प्राचीन पुस्तक संकलन व अध्ययन प्रतिष्ठान ने चीन की अल्प संख्यक जातियोंके प्राचीन पुस्तकों की सूची बनाना शुरू की , इस में देश की सभी 55 अल्पसंख्यक जाति का एक एक ग्रंथ शामिल है और उन के एतिहासिक सांस्कृतिक धरोहरों का विस्तृत विवरण है । इस महान काम के लिए कुल चालीस करोड़ य्वान की राशि लगेगी , जो 2008में उसे पूरा किया जाएगा।
चीन के बहुत से अल्पसंख्यक जाति बहुल क्षेत्रों में जातीय संग्रहालय व जातीय रिति रिवाज परिचय इलाके भी खोले गए , जिस का उद्देश्य अल्प संख्यक जातियों की परम्परागत संस्कृति , सामाजिक मान्यता तथा रिति रिवाज सुरक्षित करना है । अल्पसंख्यक जातियों की संस्कृति के संरक्षण काम में अति कम जन संख्या वाली जातियों की संस्कृति का संरक्षण खासा उल्लेखनीय है । इस की चर्चा करते हुए चीनी राष्ट्रीय जातीय मामला आयोग के सांस्कृतिक प्रचार विभाग के उप प्रधान श्री छन ल्ये छी का कहना है कि हमारे भावी कार्य का जोर एक लाख से कम जन संख्या वाली जातियों के सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण पर लगेगा । सरकार इस क्षेत्र में कारगर कदम भी उठाएगी।
दक्षिण पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत के सीश्वांगपांना के पहाड़ी क्षेत्र में जिनो जाति रहती है , जिस की जन संख्या सिर्फ बीस हजार है । पिछले साल के मई माह में जिनो के एक छोटे गांव में जिनो संग्रहालय खोला गया , जो पहाड़ी गांव में खुला चीन का एकमात्र जातीय संग्रहालय है । यह संग्रहालय जिनो जाति की परम्परागत वास्तु शैली में बनाया गया है ,जिस में बड़ी मात्रा में जिनो के पारिवारिक जीवन , धार्मिक विश्वास तथा सांस्कृतिक मान्यता से संबंधित वस्तुएं सुरक्षित हैं।
चीन के युननान प्रांत देश का एक ऐसा प्रांत है .जहां सब से अधित अल्पसंख्यक जातियां रहती हैं , यहां जातीय संग्रहालय के अलावा बहुत सी जगहों में जातीय संस्कृति संरक्षित गांव भी स्थापित किए गए है , जो जातीय संस्कृति के संरक्षण , प्रदर्शन तथा अनुसंधान के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
यह निर्विवाद है कि चीन ने अल्प संख्यक जातियों की संस्कृति को संरक्षित करने में भारी उपलब्धियां प्राप्त की हैं , किन्तु विकसित देशों की भांति यहां भी यह समस्या मौजूद है कि आधुनिकीकरण की दौड़ में किस तरह अल्प संख्यक जातियों की परम्परागत संस्कृति और मान्यता व रितिरिवाज सुरक्षित की जाए और आधुनिक समाज में किस तरह उन की संस्कृति का विकास किया जाए। यह काम अब भी कठिन और दूरगामी है।
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