|
 |
(GMT+08:00)
2004-01-08 15:25:56
|
 |
चीन व भारत के बीच व्यापारिक संपर्क
cri
आज हम आजमगढ़ उतर प्रदेश के मुहम्मद शाहिद आज़मी और उतर प्रदेश के ही बरेली के शकील अहमद अंसारी के पत्र शामिल कर रहे हैं। इन श्रोता दोस्तों ने पूछा है कि चीन की कितनी व्यापारिक कम्पनियों का भारत में पूंजीनिवेश है, और चीन और भारत आपस में किन किन चीजों का व्यापार करते हैं। तो अब हम इन श्रोताओं के सवाल का जवाब देने का प्रयास करते हैं।
चीन और भारत एक दूसरे के पड़ोसी हैं। चीन-भारत संबंध 2000 साल पुराने हैं। चीन के ईसा पूर्व छिंग राजवंश काल में ही दोनों देशों के बीच आवा-जाही शुरू हो गई थी। हेन राजवंश काल में द्विपक्षीय आदान-प्रदान को विशेष गति मिली, और सातवीं शताब्दी आते-आते चीन के स्वेई और थांग राजवंशकाल में दोनों के बीच आदान-प्रदान एक नई मंजिल पर जा पहुंचा था। दोनों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का पैमाना इतना बड़ा हुआ है कि विश्व इतिहास में अभूतपूर्व है। ईसा की दूसरी शताब्दी से 12 वीं शताब्दी के बीच के 1000 वर्षों में चीनी भाषा में बौद्ध मत सूत्रों के 1600 से अधिक संग्रह अनुदित हो चुके थे इन में संग्रहीत रचनाओं की संख्या 5700 से अधिक थी।
तो चीन और भारत के बीच आदान-प्रदान पिछले दो हजार वर्षों से जारी है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के इतिहास में यह बहुत दुर्लभ है। एक सिक्के के दो पहलू होते हैं चीन के धर्म, दर्शन और कला पर जहां भारत का गहरा प्रभाव पड़ा, वही दूसरी तरफ भारत को चीनी और कागज बनाने की प्रगतिशील तकनीक चीन से मिली।
चीन-भारत संबंधों की ताजा घटना इस साल जून माह में भारतीय प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन की यात्रा रही। उन की चीन यात्रा के दौरान चीनी कस्टम कार्यालय ने इस वर्ष की पहली तिमाही में दोनों देशों के बीच हुए व्यापार का आंकड़ा जारी किया। आंकड़े ने यह रकम पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 77.8 प्रतिशत अधिक बता कर 1 अरब 66 करोड़ अमेरिकी डालर दर्ज की।
पिछले कुछ वर्षों में चीन-भारत व्यापार में भारी इजाफा हुआ। वर्ष 2002 में दोनों देशों के बीच व्यापार की कुल रकम 4 अरब 90 करोड़ अमेरिकी डालर रही।
चीन लोक गणराज्य की स्थापना 1 अक्टूबर 1949 को हुई, ऐर 1 अप्रैल 1950 को, चीन और भारत के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए। वर्ष 1951 से चीन और भारत के बीच समुद्री और सीमा व्यापार बढ़ता गया है।
20 वीं शताब्दी के 50 वाले दशक में दोनों देशों के बीच व्यापार को विशेष गति मिली। जनवरी 1951 में दोनों देशों की सरकारों के बीच चीन के 50 हजार टन चावल के बदले भारत से 16 हजार 500 टन बोरों के आयात का समझौता हुआ। इस वर्ष द्विपक्षीय व्यापार की रकम 7 करोड़ 20 लाख अमेरिकी डालर रही। 14 अक्टूबर 1954 को, भारत की यात्रा कर रहे चीनी उप विदेश व्यापार मंत्री श्री खोंग व्येन ने भारत सरकार के प्रतिनिधि के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते, सीमा पार व्यापार के दस्तावेज की अदला-बदली की। 50 वाले दशक के अंत तक दोनों देशों के सीमा व्यापार को छोड़ कर द्विपक्षीय व्यापार की रकम 2 करोड़ 23 लाख अमेरिकी डालर तक जा पहुंची थी। तब चीन भारत को देशी माल, इस्पाती साज-सामान, लोहे व इस्पात के उपकरण, क्षार, अखबारी कागज और हल्के उद्योग के उत्पादों का निर्यात करता था, और भारत से सन के उत्पादों, तंबाकू, अभ्रक काली मिर्च और चपड़े का आयात करता था।
पर साठ और सत्तर वाले दशकों में चीन और भारत के बीच व्यापार ठप रहा।
अप्रैल 1976 में चीन और भारत के बीच राजदूत स्तर के राजनयिक संबंध बहाल हुए। वर्ष 1977 में द्विपक्षीय व्यापार में फिर से उभार आता शुरू हुआ। और 1978 से 1980 के बीच, द्विपक्षीय व्यापार की रकम 10 करोड़ 10 लाख अमेरिकी डालर तक जा पहुंची।
पिछले एक दशक से अधिक समय में दोनों देशों के बीच सरकारी आदान-प्रदान ने गति पकड़ी। वर्ष 1988 में तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री श्री राजीव गांधी चीन की औपचारिक यात्रा पर आए। इस से दोनों देशों के बीच राजनीति, अर्थतंत्र, व्यापार और संस्कृति के क्षेत्रों में संबंधों को विस्तार मिला। इस का जवाब तत्कालीन चीनी प्रधान मंत्री श्री ली फडं ने वर्ष 1991 के दिसंबर माह में भारत की यात्रा कर दिया।
वर्ष 1993 में तब के भारतीय प्रधान मंत्री श्री नरसिम्हा राव ने चीन की यात्रा की। इस दौरान दोनों पक्षों ने अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किए। वर्ष 1994 में तत्कालीन चीनी विदेश व्यापार मंत्री सुश्री वू ई ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान, दोनों एक द्विपक्षीय व्यापार प्रोटोकल पर सहमत हुए।
चीन और भारत के राजनीतिक संबंधों के तेजी से विकसित होने से अनेक आर्थिक व व्यापारिक संबंधों के विकास का बेहतर और स्थिर वातावरण तैयार हुआ। दोनों देशों के आर्थिक सुधार अपनाने के कारण उनके अपने-अपने अर्थतंत्र में तेज वृद्धि हुई, साथ ही वे एक दूसरे के पूरक बने। इस के चलते 90 वाले दशक से द्विपक्षीय व्यापार में बड़ी वृद्दि हुई। वर्ष 1991 में द्विपक्षीय व्यापार की रकम में 7.28 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जबकि 1992 और 1993 में यह वृद्धि दर अलग अलग तौर पर 28.57 और 98. 98 प्रतिशत रही। वर्ष 1993 में द्विपक्षीय व्यापार की रकम 67 करोड़ 57 लाख अमेरिकी डालर का अंक छू रही थी।
वर्ष 1994 के नवंबर माह तक चीन-भारत द्विपक्षीय व्यापार की रकम 76 करोड़ 20 लाख अमेरिकी डालर आंकी जा रही थी और इस वर्ष भारत दक्षिण एशिया में चीन का सब से व्यापारिक साझीदार बन चुका था। वर्ष 1995 में द्विपक्षीय व्यापार की रकम 1 अरब 16 करोड़ अमेरिकी डालर तक जा पहुंची, तो वर्ष 1999 में यर रकम 1 अरब 98 करोड़ 80 लाख अमेरिकी डालर रही, वर्ष दो हजार में यह रकम 2 अरब 91 करोड़ 40 लाख अमेरिकी डालर हो गई। गत वर्ष द्विपक्षीय व्यापार की रकम का आंकड़ा रहा 4 अरब 90 करोड़ अमेरिकी जालर।
आज भारत, चीन को खनिज, प्लास्टिक उपकरण, मछली, और औषधि का निर्यात कर रहा है, जबकि चीन, भारत को इलेक्ट्रोनिक उपकरण, कोक, कोयले, रासायनिक साजसामान, रेशम, औषधि और चांदी का।
भारतीय बाजार में चीन निर्मित विद्युत उपकरण, साइकिल, मोबाइल, इलेक्ट्रोनिक उपकरण, खिलौने अगर बड़े ध्यानाकर्षक हैं, तो चीनी बाजार में भारत में बने जूते भी हाथोंहाथ बिक रहे हैं।
दोनों देशों के बीच व्यापार में हो रही तेज वृद्धि को भांपते हुए चीनी वाणिज्य मंत्री श्री ल्वू फ़ू व्येन ने गत 24 जून को भारतीय प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा के दौरान भविष्यवाणी की कि चीन और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार की यह वृद्धि यदि इसी गति से चलती रही, तो निकट भविष्य में द्विपक्षीय वार्षिक व्यापार की रकम 10 अरब अमेरिकी डालर तक पहुंच जाएगी।
चीनी वाणिज्य मंत्री श्री ल्वू फ़ू व्येन ने इस दौरान आयोजित “चीन भारत आर्थिक सहयोग एवं विकास संगोष्ठी ”में बताया कि वर्ष 2002 में चीन और भारत का द्विपक्षीय व्यापार 4 अरब 94 करोड़ 60 लाख अमेरिकी डालर का रहा, जो इस से पूर्व के साल की तुलना में 37 प्रतिशत अधिक था। इस वर्ष जनवरी से मई के बीच की व्यापार रकम 2 अरब 90 करोड़ अमेरिकी डालर रही, जो पिछले साल की समान अवधि से 70 प्रतिशत की ज्यादा थी।
श्री ल्वू फ़ू व्येन ने कहा कि इस रूझान को देखें, तो द्विपक्षीय व्यापार के वर्ष 2005 तक 10 अरब अमेरिकी डालर के इस लक्ष्य तक पहुंचने की बड़ी संभावना है ही, जो चीनी प्रधान मंत्री श्री वन च्या पाओ ने पेश किया है।
खबरें हैं कि दक्षिण एशिया में भारत चीन का सब से बड़ा व्यापारिक साझीदार बन गया है। इस वर्ष ङी द्विपक्षीय व्यापार में बड़ा इजाफा हुआ है, इस में इंजीनियरिंग सौदे, तकनीकी व्यापार और एक दूसरे के यहां विनियोजन भी शामिल रहा है।
श्री ल्वू फ़ू व्येन ने कहा कि चीन और भारत विश्व के सब से बड़ी जनसंख्या वाले देश हैं, उन की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या की एक तिहाई है, दोनों देशों में के बाजार बहुत बड़े हैं। दोनों की स्थिति मिलती जुलती है, और दोनों के समान हित उनके मतभेदों कही ज्यादा हैं। चीन सरकार भारत के साथ व्यापार के विकास को भारी महत्व देती है, औरमानती है वर्तमान में द्विपक्षीय व्यापार व आर्थिक विकास के बड़ा मौका है।
इस वर्ष 23 जून को, चीनी प्रधान मंत्री श्री वन च्या पाओ और भारतीय प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 《चीन भारत संबंध सिद्धांत》और《सर्वांगीण सहयोग घोषणा-पत्र》पर भी हस्ताक्षर किए। इन दोनों दस्तावेजों में कहा गया कि सरकारी अधिकारियों और अर्थशास्त्रियों से बने दोनों देशों के दल द्विपक्षीय व्यापारिक सहयोग के विकास और इसके लिए एक दूसरे की आवश्यकता की पूर्ति पर विचार विमर्श करेंगे। इस के तहत आगामी 5 वर्षों के लिए आर्थिक व व्यापारिक विकास योजना बनायी जाएगी, और दोनों पक्षों के उद्योगों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
चीनी वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, गत वर्ष के अंत तक, भारत में चीन की 15 संयुक्त पूंजी से संचालित 15 कंपनियां चल रही थीं, जो व्यापार, मशीनरी, विद्युत उपकरण, रसायन और सूचना तकनीक जैसे व्यवसाय में लगी थीं। इस के साथ ही चीन में भारत के विनियोजन से 71 व्यवसाय चल रहे हैं, जिन में औषधि, वस्त्र, अग्निसह साजसामान, सूचना तकनीक शामिल हैं।
गत वर्ष के अंत तक, चीन ने भारत में श्रम सहयोग के कुल 178 ठेके लिए, जिन की कुल रकम 1 अरब 7 करोड़ 20 लाख अमेरिकी डालर के पार बताई गई है।
|
|
|