|
 |
(GMT+08:00)
2004-01-08 15:20:18
|
 |
क्या चीन सरकार विकलांगों को कोई आर्थिक सहायता प्रदान करती है ?
cri
कोआथ, बिहार के राकेश रौशन और उनके साथियों ने इस बार पूछा है कि क्या चीन सरकार विकलांगों को कोई आर्थिक सहायता प्रदान करती है ? आज का हमारा यह कार्यक्रम उन के इस सवाल के उत्तर को समर्पित है।
जी हां, राकेश रौशन भाई, चीन सरकार विकलांगों को आर्थिक सहायता ही नहीं करती, विभिन्न क्षेत्रों में उनके अधिकारों व हितों का संरक्षण भी करती है।
नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, इस समय चीन में विकलांगों की कुल संख्या कोई 6 करोड़ है। इन में मंद-बुद्धि, मूक-बधिर, दृष्टिहीन या अन्य शारीरिक अंगों को खो चुके लोग, तथा मानसिक रोगी आदि शामिल हैं। 4 दिसंबर, 1982 को पांचवीं चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा के पांचवें अधिवेशन द्वारा संशोधित संविधान की धारा 45 में पहली बार विकलांगों के अधिकारों व हितों के संरक्षण की व्यवस्था की गई। तय पाया गया कि राष्ट्र और समाज दृष्टिहीनों, बधिरों और अन्य विकलांगों को शिक्षा, रोजगार और जीवन यापन में मदद दे।
28 दिसंबर, 1990 को सातवीं चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा के 17वें अधिवेशन में 《 चीन लोक गणराज्य विकलांग संरक्षण कानून 》पारित हुआ। इस कानून ने संविधान के तहत विकलांगों के वैध अधिकारों व हितों के संरक्षण और विकलांग कल्याण कार्य की प्रगति की गारंटी के साथ उनके सामान्य लोगों की तरह बराबरी का सामाजिक जीवन जीने व आम लोगों की ही तरह सामाजिक भौतिक व सांस्कृतिक सभ्यता का उपभोग करने की गारंटी दी।
इस कानून ने विकलांगों के अधिकारों व हितों के संरक्षण का जिम्मा पूरी तौर पर सरकार व समाज को सौंप दिया। इस के तहत विकलांग कल्याण कार्य को राष्ट्रीय आर्थिक व सामाजिक विकास योजना का एक हिस्सा बनाने, और राजकीय बजट में शामिल करने की भी बात तय हुई। विकलांगों की आंशिक रूप से नष्ट शारीरिक क्षमता की बहाली के लिए राष्ट्र व समाज द्वारा कारगर कदम उठाने का वचन लिया गया। विकलांग बच्चों को निःशुलक शिक्षा दे कर राष्ट्रीय अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था में शामिल किया गया व उन्हें रोजगार की सुविधाएं पेश करने की बात की गई। इससे एक तरफ उन्हें विशेष उद्योगधंधों में रोजगार दिलाने का निर्णय लिया गया, तो दूसरी तरफ विभिन्न व्यवसायों में उनके आरक्षण की व्यवसाय की गई, और इस तरह उनके समुचित रोजगार हासिल करने का प्रबंध किया गया।
विकलांगों द्वारा संचालित उद्यमों को कर मुक्त रखने के साथ उत्पादन, संचालन, कर्ज लेने और, तकनीक आदि के क्षेत्रों में उन्हें सुविधाएं दिये जाने और उनके जीवन स्तर को उन्नत करने के लिए उचित सरकारी कल्याण कार्यक्रम चलाने के साथ सरकार के निर्धन विकलांगों को जीवन निर्वाह भत्ता, राशन या अन्य सहायता देने जैसे लक्ष्य भी इस कानून में शामिल रहे।
वर्ष 1949 में नए चीन की स्थापना के बाद विकलांग भी स्वस्थ व्यक्तियों की ही तरह देश के मालिक बने। उन्हें राजनीतिक अधिकार और जीवन यापन का मौलिक अधिकार मिला। सरकार विकलांग कल्याण कार्य को निरंतर महत्व देती रही। वर्ष 1953 में चीनी दृष्टिहीन कल्याण संस्था स्थापित हुई, और वर्ष 1956 में चीनी मूक-बधिर कल्याण संस्था अस्तित्व में आई। वर्ष 1965 तक, चीन के हरेक प्रांत में इनकी स्थानीय शाखाएं स्थापित हो चुकी थीं। मार्च, 1984 में चीनी विकलांग कल्याण कोष कायम हुआ। मार्च 1986 में संयुक्त राष्ट्र के“ विकलांग दशक”से समन्वय के लिए चीनी आयोजक समिति का गठन हुआ।
मार्च, 1988 में, चीनी विकलांग कल्याण कोष व चीनी दृष्टिहीन व मूक-बधिर संघ के आधार पर चीनी विकलांग संघ की स्थापना की गई। इस संघ की स्थापना से चीन के विकलांग कल्याण कार्य को विशेष गति मिली। विकलांगों के स्वास्थ्य और शिक्षा को जहां बल मिला, वहीं उनके रोजगार के मौके बढ़े, और वे संस्कृति, खेल में आगे आए। पर्यावरण और विधि-निर्माण आदि क्षेत्रों में भी विकलांग कल्याण कार्य ने प्रगति देखी। इससे देश के अधिकांश विकलांगों के जीवन में बड़ा सुधार आया।
विकलांगों के स्वास्थ्यलाभ के लिए चीन परम्परागत चिकित्सा और आधुनिक तकनीक दोनों का इस्तेमाल कर रहा है। वर्ष 1993 के अंत तक, मोतियाबिंद के आपरेशन 9 लाख से अधिक दृष्टिहीनों की दृष्टि वापस लौटा चुके थे। इस बीच 3 लाख 20 हजार पोलियो के रोगियों की शल्य चिकित्सा के बाद शारीरिक क्षमता बहाल की जा जुकी थी और 38 हजार मूक-बधिर सुनने व बोलने की प्रशिक्षण पा कर वाक की क्षमता पा चुके थे।
जी हां, चीन में इधर मानसिक रोगियों के उपचार के अभियान में भी 7 लाख व्यक्तियों को स्वास्थ्यलाभ हुआ। दुर्बलदृष्टि वालों की नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिए उन्हें विशेष चश्मे लगाए गए। आयोडीन के अभाव से कछ बच्चे मंद-बुद्धि रह जाते हैं। इस समस्या की जड़ काटने के लिए देश में व्यापक तौर पर अयोडीन युक्त नमक का इस्तेमाल किया जाता है, और गर्भवतियों व बच्चों को अयोडीन की खुराक दी जाती है।
मूक-बधिर बच्चों की वाक क्षमता लौटाने के लिए देशभर में 600 से अधिक वाक्यत प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किए गए हैं। और विभिन्न शारीरिक अंग खो चुके लोगों के उपचार की भी विशेष व्यवस्था की गई हैं।
शिक्षा क्षेत्र में भी विकलांगों को तरह तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं। आम लोगों की ही तरह विकलांगों के लिए भी 9 वर्षीय अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था कायम है। दृष्टिहीन, मूक-बधिर और मंदबुद्धि बच्चों के लिए देश भर में एक हजार से अधिक विशेष स्कूल हैं। साथ ही आम स्कूलों में भी विकलांग बच्चों के लिए करीब 4 हजार विशेष कक्षाएं चल रही हैं। अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने वालों को व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है, या वे उच्च शिक्षासंस्थानों में दाखिला पाते हैं। सिर्फ 1988 से 1993 तक के पांच वर्षों में 1 लाख 30 हजार से अधिक विकलांगों ने व्यावसायिक प्रशिक्षण पाया, जबकि करीब 4 हजार ने उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश किए। इधर मूक-बधिरों और दृष्टिहीनों के लिए खास उच्च शिक्षासंस्थाएं भी खुली हैं।
विकलांगों को रोजगार देने के लिए सरकारी नीतियों में विविध सुविधाएं रखी गई हैं। 1993 के अंत तक, देश में विकलांगों के लिए तय विशेष उद्योगधंधों की संख्या 56 हजार तक पहुंच गई थी, और 8 लाख 40 हजार विकलांग इन में रोजगार पा चुके थे। इस वर्ष इन उद्योगधंधों का कुल उत्पादन मूल्य 89 अरब यूवान दर्ज किया गया था। तब सरकारी संस्थानों और उद्योगधंधों में 14 लाख से अधिक विकलांगों को रोजगार मिला। यह संख्या देश भर के कर्मचारियों व मजदूरों की कुल संख्या का 0.93 प्रतिशत थी। देश के 20 प्रांतों व नगरों में रोजगार शुदा विकलांगों का अनुपात 1.5 व 2 प्रतिशत के बीच है। कई लाख विकलांग निजी व्यवसायों में लगे हैं। आंकड़ों के अनुसार, विभिन्न नगरों के आधे विकलांगों को रोजगार हासिल है, जबकि ग्रामों में यह प्रतिशत 60 है। इन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के लिए करीब 500 विकलांग श्रमिक सेवा केन्द्र स्थापित हैं। विकलांगों को ब्याज-मुक्त ऋण मिलता है। क्षेत्र विशेष में महारत हासिल करने वाले विकलांगों के जीवन में उल्लेखनीय सुधार आया है। वर्ष 1991 की विकलांग व्यावसायिक कोशल ऑलंपिक प्रतियोगिता में 83 देशों व क्षेत्रों के प्रतिनिधि शरीक हुए थे, और चीनी प्रतिनिधि मंडल 15 स्वर्ण, 10 रजत और 10 कांस्य पदक जीत कर प्रथम स्थान पर रहा था।
वर्ष 2001 चीन की दसवीं पंचवर्षीय योजना का प्रथम वर्ष था। इस वर्ष देश ने विकलांग कल्याण कार्य में कई उल्लेखनीय कामयाबियां हासिल कीं। बड़ी संख्या में सरकारी चिकित्सक दूर-दराज के गांवों या अल्पसंख्यक जाति बहुल क्षेत्रों में भेजे गए, जहां उन्होंने 4 लाख 91 हजार व्यक्तियों का मोतियाबिंद का आपरेशन किया, और उनमें से 98.8 प्रतिशत की दृष्टि लौटाने में सफल रहे।
देश में मूक-बधिर बच्चों का चिकित्सा जाल भी पूर्णता की ओर बढ़ रहा है। ऐसे 18 हजार बच्च को बोलने की ट्रैनिंग पा कर वाक की क्षमता हासिल कर चुके हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के 7000 निर्धन मूक-बधिर बच्चों को आधे दाम पर ही ओडियोफोन प्रदान किया गया। स्वास्थ्यलाभ के बाद इन बच्चों के 22.6 प्रतिशत ने सामान्य प्राइमरी स्कूलों में दाखिला भी पाया।
देश की दसवीं पंचवर्षीय योजना में कुष्ठ रोग से पीड़ितों का उपचार नया विषय है। गत वर्ष 1700 कुष्ठ रोगियों का आपरेशन किया गया, 500 को कृत्रिम अंग प्रदान किये गये, और 5700 को स्वास्थ्यलाभ प्रशिक्षण दिया गया।
इधर विकलांगों के उपयोगी उपकरणों की आपूर्ति में भी तेजी लाई गई। 7000 विकलांगों ने मुफ्त में या आधे दाम पर कृत्रिम अंग पाये।
विकलांगों को शिक्षा दिये जाने से उन की कार्यक्षमता बढ़ी। गत वर्ष के अंत तक, देश भर चल रहे विशेष विकलांग स्कूलों की संख्या 1691 तक पहुंच गई थी, जबकि सामान्य स्कूलों में उन के लिए चलाई जा रही कक्षाओं की संख्या 3824 रही। इन स्कूलों या विशेष कक्षाओं में दाखिल विकलांग बच्चों की संख्या 5 लाख 50 हजार दर्ज की गई। यही नहीं, 2166 विकलांगों ने सामान्य उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश पाया, और 585 को विशेष उच्च शिक्षासंस्थानों में दाखिला मिला।
गरीब विकलांगों को सहायता देना चीन सरकार अपना एक महत्वपूर्ण कार्य मानती है। गत वर्ष 28 लाख 24 हजार गरीब विकलांगों को सरकार की ओर से आर्थिक सहायता मिली। उन में से 16 लाख 80 हजार सरकारी समर्थन से कार्य कुशल बन कर निर्धनता से उबरे।
देश भर चल रहे न्यूनतम जीवन स्तर प्रतिभूति व्यवस्था का भी 20 लाख 10 हजार विकलांगों को फायदा पहुंचा, जबकि अन्य 4 लाख 70 हजार को विकलांग-गृहों या वृद्ध-सदनों में आसरा मिला। इस तरह 28 लाख 50 हजार गरीब विकलांगों को न्यूनतम जीवन स्तर की प्रतिभूति प्राप्त हुई।
|
|
|