तिब्बती कलाकार श्री थुतन तिब्बत जनता में अत्यन्त प्रसिद्ध है , वे तिब्बती औपेरा , तिब्बती वाद्य तथा तिब्बती हस्यावाचन जैसे कला विधाओं में पारंगत हैं और अनेक कला प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत हुए हैं ।
आप को मालूम नहीं होगा कि तिब्बती कला क्षेत्र में असाधारण नाम पाने वाला हमारा कलाकार थुतन 1951 में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले लामा मंदिर का एक भिक्षु था , पुरानी जमाने में गरीबी के कारण बालक थुतन को मंदिर में पनाह लेना पड़ा , वह रोज मंदिर के शारीरिक मेहनत करता था । लेकिन बालक थुतन में तिब्बती लोक कला सीखने का बड़ा कुतुहट था । मठ मंदिर में होने वाली धार्मिक गतिविधियों के दौरान प्रयुक्त वाद्य यंत्र और तिब्बती औपेरा का गीत संगीत सीखने के वो बड़े शौकीन थे । इस के दौरान उस ने एक उस्ताद से भी कुछ न कुछ सीखा । जब तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति हुई ,तो वह नवोगठित तिब्बती युवा कला प्रचार दल का सद्स्य बना और बाद में तिब्बती जातीय कला मंडली में शामिल हुए । कला मंडली में श्री थुतन ने कला सृष्टि की तीखी प्रतीभा का परिचय किया । उन्हों ने कला मंडली के साथियों के साथ मिल कर तिब्बती चेका यानी तिब्बती भाषा में हास्यवाचन की कला विधा का विकास किया , इस कला शैली में तिब्बती लोगों में मशहूर बहादुर राजा कसेर की कहानी पर कार्यक्रम पेश किया । इस कला शैली का तिब्बतियों में बड़ा स्वागत किया गया ।
श्री थुतन ने चेका कला शैली में राजा कसेर की कहानी के अलावा लोक कथा---राजा पर कुता का भौंक आदि पर भी हास्यावाचन कार्यक्रमों का सृजन किया ।
श्री थुतन को तिब्बती परम्परागत वाद्य यंत्र --छै तारों के तंतु वाद्य पर भी महारत हासिल है । इस प्रकार के वाद्ययंत्र पर उन्हों ने महा राजा कसेर की कहानी , अन्य एतिहासिक कहानी तथा लोक कथाओं पर लोकप्रिय कार्यक्रम प्रस्तुत किए । 1982 में दक्षिण चीन क्षेत्र के कला समारोह में उन्हों ने इस तंतु वाद्य पर कसेर की कहानी गायी और समारोह का प्रथम पुरस्कार जीता ।
तिब्बती लोक कला के विकास में भारी योगदान के लिए श्री थुतन को चीनी राष्ट्रीय कला सम्मेलन के प्रतिनिधि होने का गौरव मिला और चीनी लोक कला संघ की परिषद के सदस्य नियुक्त हुए ।
पिछली शताब्दी के अस्सी वाले दशक से श्री थुतन ने धार्मिक संगीतों का संकलन और विकास करने के काम में भी हाथ बटाना शुरू किया । इस काम में उन्हों ने कुछ मठों के लामाओं की मदद भी ली । बालावस्था में ल्हासा के बौध मंदिर में कुछ समय तक लामा होने के कारण श्री थुतन ने तिब्बती धार्मिक संगीतों पर काफी जानकारी प्राप्त की थी , यह उन के धार्मिक संगीतों को विरासत में गृहित करने तथा उस का विकास करने में बड़ी मदद सिद्ध हुई है । 1985 में ल्हासा जातीय कला मंडली के साथियों के साथ उन्हों ने जो मंगल स्वर्ग लोक नाम का संगीत बनाया है , वह इस कोशिश की असाधारण सफलता है ।
इस संगीत में शांति के प्रति तिब्बती लोगों की गाढ़ा अभिलाषा और सुन्दर जीवन के लिए उन की गहरी तमन्ना प्रकट हुई है और कला की दृष्टि से यह रचना भी उच्च चोटी का है । इसे विश्व के विभिन्न देशों का स्वागत और सराहना मिला और चीन के शांहाई कला समारोह में पुरस्कार मिला और चीन लोक गणराज्य की स्थापना की पचासवीं वर्षगांठ के उपलक्ष में पेइचिंग में आयोजित सांसकृतिक समारोह तथा खुनमिन विश्व बाग कला मेले में प्रस्तुत भी किया गया ,जिसे व्यापक दर्शकों की ओर से हार्दिक सराहना मिली ।
एक गरीब बालक से तिब्बत के एक सुप्रसिद्ध कलाकार बनने की प्रक्रिया में स्वयं थुतन की अपनी प्रतीभा और कड़े परिश्रम की भूमिका है और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार , ल्हासा कला मंडली तथा व्यापक तिब्बती जनता के प्रोत्साहन और समर्थन भी प्रबल कारक है । उन का कहना है कि केवल नए समाज में ही वे जैसे साधारण लोग लोकप्रिय कलाकार बन सकते हैं ।
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