तिब्बती बौध धर्म यानी लामा धर्म चीन के विभिन्न धर्मों का एक विशेष संप्रदाय है , चीन के सभी तिब्बती लोग लामा धर्म में आस्था रखते हैं ।
चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाजे शहर में तिब्बत का सुप्रसिद्ध लामा मंदिर जाशलुंबू मठ आबाद है , मंदिर में लामा नित्य पूजा पाठ करते सुनाई देते हैं । घी तेल बत्ती की अमर रोशनी में लाल रंग के धार्मिक वस्त्र पहने लामा गायन की आवाज में धार्मिक सूत्र जपा रहे हैं , जो मंदिर का दर्शन करने आए लोगों को गाढ़ा धार्मिक वातारण में ला देता है ।
चीन के भीतरी इलाके से थोड़ा अलग तिब्बत में धर्म का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान होता है । तिब्बत के करीब सभी तिब्बती लोग तिब्बती बौध धर्म के अनुयायी हैं । तिब्बती संस्कृति में धर्म का विशेष प्रभाव देखने को मिलता है । तिब्बती जाति की प्रथा के अनुसार कोई भी तिब्बती जन्म के बाद ही धार्मावलंबी बन गया है ।
तिब्बत बौध धर्म का सब से बड़ा तीर्थ स्थल तिब्बत की राजधानी ल्हासा के केन्द्र में स्थित पोताला महल है । पोताला महल का दर्शन करने के लिए रोज सुबह से रात तक धार्मिक अनुयायी दूर नजदीक से आते हैं । हर समय वहां लोगों की भीड़ लगती है । तिब्बती धर्मावलंबी हाथ में धार्मिक चक्र घूमाते हुए , मालाएं उठाते हुए घड़ी की सूई की दिशा में पोताला महल का परिक्रमा करते हैं और मुंह में धार्मिक सूत्र जपाते हैं । वे बड़े श्राद्धा व आस्था की मुद्रा में दिखाई पड़ते हैं , समझा जाता है कि उन के और बुद्ध भगवान के बीच आध्यात्मिक संपर्क हो रहा हो । कुछ तिब्बती धर्मावलंबी तो दूर दराज स्थान से आए है , बहुत थके मंदे होने के बावजूद वे कदम कदम पर साष्टांग नतमस्तक कर पोताला का दर्शन करने आए हैं ।
पोताला महल का परिक्रमा करने वाली भीड़ में हमारी मुलाकात ओचुवांगमू से हुई , वह ल्हासा शहर में रहने वाली एक तिब्बती महिला है , उस ने फुटे टुटे हान भाषा में हमें उस के परिवार के धार्मिक विश्वास से अवगत कराते हुए कहा, हमारे परिवार के सभी लोग पोताला का परिक्रमा करने आए हैं , हम तो रोज सुबह पोताला महल का परिक्रमा करते हैं ।
बातचीत में हमें मालूम हुआ है कि ओचुवांगमू एक तलाकशुदा महिला है , उस के दो पुत्र हैं , दोनों पुत्रों में छोटा वाला मां के साथ रहता है । स्वास्थ्य खराब होने की वजह से ओचुवांगमू अपनी छोटी बहन छांगच्युज्वुमा के घर में रहती है , जिस से उसे छोटी बहन से भी जीवनयापन में मदद मिल सकती है ।
हम ओचुवांगमू के साथ उस की छोटी बहन के घर गए , घर का सजावट और वातावरण हमें बताता है कि यह एक आधुनिक ढंग का आम शहरी परिवार है ।
ओचुवांगमू की छोटी बहन चालीस वर्षीय छांगच्युज्वुमा तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के विज्ञान तकनीक विभाग की सरकारी कर्मचारी है , वह जंगली जीव जंतु संरक्षण का काम करती है । सम आयु वाले तिब्बतियों में से वह एक ऐसा कम उपलब्ध व्यक्ति है , जो उच्च शिक्षा पाने के बाद आगे अध्ययन के लिए कभी विदेश भी जा चुकी है । छांगच्युज्वुमा का घर दो मंजिलों का एक बंगला है , चारों ओर सुन्दर ढंग की एक छोटी चारदीवारी है । बंगला की पहली मंजिल पर दो सिटिंग हाल हैं , जिन में से एक यूरोपीय शैली का है , जिस में सोफा व विभिन्न किस्मों के घरेलू उपयोगी विद्युत यंत्र सज्जित हुए है । इस के अन्दर का सिटिंग रूम तिब्बती शैली का है , जिस की दीवारों पर विशेष तिब्बती चित्र कला से कपड़ों पर चित्रित बुद्ध तस्वीर लगी हुई है । बैठक पर बकरी के ऊनों से बनाया गया तिब्बती कंबल ओढ़ा हुआ है , सिटिंग रूम में तिब्बती शैली की लाख से अलंकृत अन्लमारी व मेज रखे गए हैं । मकान की छतों पर चारों ओर भी रंगबिरंगे चित्र अंकित है । दूसरे तिब्बती परिवारों से भिन्न हुए छांगच्युज्वुमा के मकानों के छत चित्रों में दुर्लभ तिब्बती जानवरों के चित्र बनाए गए हैं । इस से जाहिर है कि परिवार का मालिक पशु संरक्षण विशेषज्ञ है । श्रीमती छांगच्युज्वुमा के अनुसार उस ने लामा धर्म के अनुयायी मां पाप के प्रभाव में आ कर जंगली जानवरों की रक्षा करने का काम चुना है । वह कहती है, बालावस्था में हमारे मां पाप हमें शिक्षा देते हुए कहा कि मानव को अहिंसा होना चाहिए । वास्तव में जीव जंतुओं की हत्या से भी पर्यावरण पर असर पड़ता है । तिब्बती लोग बौध धर्म में विश्वास रखते हैं , बौध धर्म अहिंसा मानता है और बौध धर्म के सिद्धांत के अनुसार हिंसा करना एक पाप होता है ।
उच्च शिक्षा से स्नातक तथा विज्ञान के काम में लगी श्रीमती छांगच्युज्वुमा एक नास्तिक महिला है , लेकिन धर्म में पक्का विश्वास रखने वाले अपने मां पाप का बड़ा सम्मान करती है और उन के धार्मिक विश्वास को भी अच्छी तरह समझती है ।
छांगच्युज्वुमा की बड़ी बहन ओचुवांगमू आस्तिक है , वह रोज सुबह सुबह उठती है और पोताला महल का परिक्रमा करने जाती है । रात को पलंग पर सोने से पहल वह बुद्ध मुर्ति के सामने साष्टांग नमस्कार करती है । तिब्बती बौध धर्म से निष्ठ अनुयायी अपनी जिन्दगी में कम से कम दस हजार साष्टांग नमस्कार करते हैं । नित्य अवकाश समय ओचुवांगमू हाथ में धार्मिक चक्र घूमाते हुए या तो पूजा पाठ करती है या मौन दिल में सूत्र जपाती है ।
जीव जंतु संरक्षण विशेषज्ञ के नाते छांगच्युज्वुमा का मानना है कि धार्मिक शिक्षा से तिब्बतियों को जानवरों की रक्षा करने की प्रेरणा मिल सकती है । वह अकसर गांवों और चरगाहों में तिब्बतियों में जंगली जानवरों की रक्षा करने की शिक्षा देने जाती है , लेकिन शुद्ध विज्ञान के महत्व का व्याख्यान बहुत से तिब्बतियों को समझ में नहीं आता , और वे बौध धर्म के अहिंसा सिद्धांत का महत्व ज्यादा आसानी से समझते हैं ।
छांगच्युज्वुमा ने हमें बताया कि उन के दो बड़े भाई भी हैं , 60 वर्षीय बड़े भाई एक लामा है । तिब्बत में लामा धर्मावलंबियों के दान पर जीवनयापण करते हैं , वे खुद शारीरिक श्रम नहीं करते हैं , उन का काम धार्मिक ज्ञान का अध्ययन करना है । तिब्बत में लामा बुद्धिजीवी वर्ग के लोग माने जाते हैं , तिब्बती लोग उन का बड़ा समानादर करते हैं । आज से पचास साल पहले तिब्बत का शिक्षा कार्य लामा मंदिरों के हाथ में था , चाहे अमर परिवार हो अथवा गरीब परिवार , दोनों के बच्चे मंदिरों में शिक्षा पाने भेजे जाते थे । छांगच्युज्वुमा के बड़े भाई ही बालावस्था में मंदिर में लामा बनने भेजा गया था । वे कहते थे ।
पुराने जमाने में तिब्बत की सार्वजनिक शिक्षा कार्य का अधिकार मंदिरों के हाथ में है , मेरे बड़े भाई ने मंदिर में शिक्षा पायी थी , वे कभी कभी मजाक के रूप में मुझ से कहते थे कि तुम विश्वविद्यालय से स्नातक है , हमारे दोनों का शिक्षा स्तर बराबर है । मंदिरों की शिक्षा व्यवस्था के तहत भी अनेक विष्यों पर डिग्री प्राप्त होती है । मेरे बड़े भाई ने विश्वविद्यालय के बी .ए की समान डिग्री प्राप्त की थी । मंदिरों की शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत चिकित्सा , गणित , भौतिक शास्त्र और प्रकृति शास्त्र पढ़ाए जाते हैं । बेशक मंदिरों में धार्मिक ज्ञान मुख्य रूप से सीखाया जाता है । बहु विषयों की शिक्षा पाने के बाद हम दोनों भाई बहन के अनेक दृष्टिकोण मिलते जुलते हैं और हमारी विचारधारा भी वस्तुगत होती है।
यो छांगच्युज्वुमा के परिवार में कोई धार्मिक विश्वास रखते है , तो किसी को धर्म में आस्था नहीं है , फिर भी वे मेलमिलाप के साथ एक परिवार में रहते हैं और एक दूसरे के विकल्प का सम्मान करते हैं । छांगच्युज्वुमा नास्तिक अवश्य है , किन्तु तिब्बत में जन्मने और पले बढ़े होने के कारण वह परिवार के अन्य सदस्यों के धार्मिक विश्वास को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखती है और उन के विश्वास व जीवन की प्रथा को बदलने के लिए समझाना बुझाना भी नहीं चाहती । हां ,उस की बड़ी बहन ओचुवांगमू का जीवन धर्म से घनिष्ट रूप से जुड़ा हुआ है , वह रोज तिब्बती भाषा में पूजा पाठ करती है ।
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