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(GMT+08:00) 2003-12-06 18:00:37    
चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के ल्हासा शहर की जातीय कला मंडली

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चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के ल्हासा शहर की जातीय कला मंडली तिब्बती जातीय विशेषता वाली एक अत्यन्त मशहूर नृत्य गान मंडली है , उस के द्वारा प्रस्तुत तिब्बती नृत्यगान व्यापक दर्शकों को बरबस आकृष्ट करते है ।

ल्हासा जातीय कला मंडली तिब्बत स्वायत प्रदेश की एक ऐसी मशहूर नृत्यगान मंडली है , जो अपनी स्थापना के समय से ही तिब्बती जाति के सांस्कृतिक धरोहरों को विरासत में लेने तथा उन का संरक्षण व विकास करने के काम को अपना लक्ष्य बनाती रही है ।

ल्हासा कला मंडली के सुप्रसिद्ध कलाकार व कला मंडली के सलाहकार श्री थुतन ने अपनी कला मंडली के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि ल्हासा जातीय कला मंडली का पूर्व रूप ल्हासा युवा सांस्कृतिक प्रचार दल था , जो तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद 1954 में स्थापित हुई , वर्ष 1960 में उस का नाम बदल कर ल्हासा सांस्कृतिक प्रचार मंडली का रूप धारण कर लिया गया तथा 1976 में ल्हासा नृत्य गान कला मंडली के नाम से पुकारा जाने लगी । कला मंडली सभी सदस्य तिब्बती हैं , जो तिब्बत के विभिन्न स्थानों से चुने गए गाने नाचने में पारंगत युवा युवती हैं । वे सभी लोग तिब्बती संस्कृति के अगाध प्रेमी हैं । 1979 के बाद ल्हासा जातीय कला मंडली ने देश के विभिन्न स्थानों के कला प्रतिष्ठानों से छात्रों को भर्ती करना शुरू किया , अब उन की संख्या सौ तक पहुंची है , जो कला मंडली की मुख्य शक्ति बन गए । ल्हासा जातीय कला मंडली अपनी स्थापना के समय से ही तिब्बती जाति और तिब्बत पठार पर बसी अन्य अल्पसंख्यक जातियों के लोक गीतों और नृत्यों पर महारत हासिल करने की अथक कोशिश करती है तथा नई नई कला शैलियों और नए नए कार्यक्रमों का सृजन करती है और तिब्बत के ग्रामीण क्षेत्रों तथा चरगाहों में जा जा कर सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश करती है ताकि स्थानीय लोगों को तिब्बती संस्कृति के ठोस रूप में मनोरंजन और शिक्षा मिल सके ।

अभी आप जो वाचन सुन रहे है , वह ल्हासा जातीय कला मंडली द्वारा प्रस्तुत तिब्बती चेका यानी तिब्बती भाषा का हास्या वाचन का एक अंश है , सुनने में बहुत बड़ा मजा लगता है ना . हां तिब्बती भाषा में हास्या वाचन की कला विधि का विकास ल्हासा जातीय कला मंडली का विशेष सृजन है । वर्ष 1979 में चीन का दसवां राष्ट्रीय कला सम्मेलन हुआ , ल्हासा कला मंडली के अनुभवी कलाकार श्री थुतन ने सम्मेलन में भाग लिया और वे राष्ट्रीय कला परिषद के सदस्य चुने गए । कला विकास के लिए अपने दायित्व से प्रेरित हो कर उन्हों ने अपनी कला मंडली के साथियों के साथ मिल कर तिब्बती भाषा में हास्यावाचन यानी चेका का विकास किया , चीन में हास्यावाचन एक अत्यन्त लोकप्रिय कला शैली है , आम तौर पर दो कलाकार आपस में हास्यास्पद वार्तालाप करते हुए श्रोताओं को बड़ा आनंद देते हैं । तिब्बती भाषा के हास्यावाचन को तिब्बती लोगों से बहुत बड़ी दाद मिली और वह एक सफल कला विधि बन गया । इस का एक कार्यक्रम राजा कैसर का मुकुट न केवल चीन में धूम मचा , बल्कि ब्रिटेन आदि विदेशों में भी पसंद किया गया । 1981 में लंदन के ईलिसेपा महल में श्री थुतन ने राजा केसर का मुकुट नामक हास्यावाचन पेश किया , दर्शकों ने कई बार तालियां बजा बजा कर उन की प्रस्तुति की तारीफ की ।

राजा केसर की कहानी को रंग मंच पर मंचन के लिए लाना भी ल्हासा जातीय कला मंडली का एक योगदान है । केसर तिब्बत का एक मशहूर प्राचीन राजा था , उस ने तिब्बत के विभिन्न कबीलों का एकीकरण करने में असाधारण योगदान किया था । उस के बारे में दंत्त कथाएं तिब्बतियों में काफी लोकप्रिय है । राजा केसर की कहानी को रूपांतरित कर मंच पर प्रस्तुत करना तिब्बती जाति की परम्परागत संस्कृति का विकास करने की एक प्रशंसनीय कोशिश है । इस के लिए ल्हासा जातीय कला मंडली को व्यापक रूप से तारीफ मिली ।

तिब्बती बौद्ध धर्म के धार्मिक संगीत का रुपांतरण कर उसे रंग मंच पर प्रस्तुत करने की कोशिश भी तिब्बती जातीय संस्कृति का विकास करने का ल्हासा कला मंडली का एक उल्लेखनीय योगदान है ।लम्बे अरसे में तिब्बती लामा मंदिरों में पूजा के लिए बड़ी तादाद में धार्मिक संगीत तैयार हुए , यह तिब्बती कला परम्परा की एक महत्वपूर्ण धरोहर है , लेकिन अतीत में ये संगीत केवल मंदिर में धार्मिक आयोजन के समय बजाये जाते थे । उसे मंच पर लाए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना एक असाधारण प्रयास है ।

ल्हासा जातीय कला मंडली के कलाकारों ने विभिन्न मंदिरों में जा कर धार्मिक संगीत का गहरा अध्ययन किया और अनुभवी लामाओं से संगीत सीखा । इस के आधार पर उन्हों ने मंगल स्वर्ग लोक नाम का संगीत बनाया और उसे मंच पर प्रस्तुत किया , यह संगीत कई भागों में बंटा है , जिस में सुन्दर भविष्य के प्रति तिब्बतियों की तमन्ना और गाढ़ा अभिलाषा अभिव्यक्त हुई है । अभी आप ने जो धुन सुनी है , वह मंगल स्वर्ण लोक संगीत का एक अंश है , जिस में जो सुरीली धुन बजती है , वह एक प्रकार के विशेष पत्थर को बजाने से आती है । पत्थर का यह वाद्ययंत्र बनाना भी ल्हासा कला मंडली का एक आविष्कार है , इस आविष्कार का उच्च मूल्यांकन किया गया और विज्ञानिक फिल्म का रूप भी दिया गया और राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानिक किया गया , औस्ट्रेलिया आदि देशों में इस की प्रस्तुति से दर्शकों को खूब आनंद प्राप्त हुआ और इस की भूरि भूरि तारीफ की गई ।

ल्हासा जातीय कला मंडली ने तिब्बती जाति के लोक नृत्य गान को संकलित और विकसित करने में भी बड़ी कामयाबियां हासिल की है । तिब्बती जाति के लोक नृत्य गान के आधार पर नया कार्यक्रम बनाने की भरसक कोशिश की । कला मंडली के कलाकार अकसर चरगाहों और गांवों में जा कर वहां प्रचलित स्थानीय नाच गान का अध्ययन करते हैं और पुराने नृत्य गान को नया रूप दे कर मंच में लाते हैं । ल्हासा शहर से कुछ दूर एक मछुवा गांव में चमड़े का नाव नामक नाच गान चलता है . कला मंडली के कलाकारों ने इस नाच गान का रुपांतर कर एक अत्यन्त मनोहारी कार्यक्रम बनाया , जिस में सुधार व खुलेपन की नीति लागू होने के बाद तिब्बती गांव वासियों की खुशहाली तथा उन की मेहनत के सुन्दर दृश्य का वर्णन किया गया है । इस नाच गान को तिब्बती किसानों और चरवाहों तथा कला जगत के हस्तियों की प्रशंसा प्राप्त हुई । इस के अवाला कला मंडली द्वारा रुपांतरित चरवाहों का नृत्य , हमारा तिब्बत नाम का लोक गीत तथा फलता फूलता झील आदि भी बहुत लोकप्रिय हैं ।

ल्हासा जातीय कला मंडली के नेता ने कहा कि उन की कला मंडली तिब्बत के विभिन्न स्थानों के अलावा पेइचिंग , शांगहाई व हानचाओं आदि देश के विभिन्न प्रांतों व शहरों में भी कार्यक्रम पेश करती है । उन्हों ने पेइचिंग शहर के निमंत्रण पर 1999 में देश की स्थापना की पचासवीं वर्षगांठ के समय पेइचिंग में आयोजित शानदार समारोह तथा युन्नान प्रांत के खुनमिन शहर में आयोजित विश्व बागकला मेले के दौरान कार्यक्रम प्रस्तुत किया । उन्हों ने ब्रिटेन , स्वीजरलैंड , इटाली , यूनान , अमरीका , औस्ट्रिया और औस्ट्रेलिया तथा हांगकांग व थाईवान में जो तिब्बती नृत्यगान प्रस्तुत किए है , उसे असाधारण रूप से स्वागत मिला। ल्हासा जातीय कला मंडली ।