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13-07-30:'हम दो हमारे दो' चीन में ऐसी इच्छा पूरी होने में लगेगा वक्त
2013-08-07 18:08:55

न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में, स्वीकार कीजिए हेमा कृपलानी का नमस्कार। ब्रिटेन के राजघराने को मिल गया है अपना नन्हा वारिस। पहले उसके जन्म पर और फिर उसके जन्म के बाद उसके नाम को लेकर, पूरी दुनिया में हलचल मची रही। वैसे किसी भी माता-पिता के लिए घर में संतान का आना ईश्वर का वरदान है। ये कोई उनके दिल से पूछे कि उन्हें कितनी खुशी मिली है, माता-पिता बनकर। चीन में एक बच्चे के कारण तो ये और भी ज्यादा मायना रखता है। चलिए, आज इसी पर बात करते हैं।

चीन की जनसंख्या नीति फिर से सुर्खियों में बनी हुई है। इसका पूरा श्रेय चीन के डेवलपमेंट रिसर्च फांउडेशन की अक्टूबर 2012 में चीन के जनसांख्यिकीय चुनौतियों पर आई एक रिपोर्ट को जाता है। रिपोर्ट तैयार करने वाले विद्वानों ने सलाह दी कि देश की वर्तमान नीतियों में परिवर्तन होना चाहिए और दंपत्तियों को धीरे-धीरे दो बच्चे पैदा करने की अनुमति मिलनी चाहिए। हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में लोग चीन में "दो बच्चे" की नीति की वकालत करते हुए देखे जा रहे हैं क्योंकि देश की जनसंख्या तेज़ी से बूढ़ी होती जा रही है। वर्तमान में चीन की 9.1 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 65 वर्ष या उससे अधिक है। अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2027 तक इस अनुपात में 15 प्रतिशत का इजाफा होगा और वर्ष 2035 में 20 प्रतिशत तक का। जुलाई 2012 में राज्य परिषद के तहत विकास शोध केंद्र के सोशल डिवेलपमेंट शोध सेक्शन द्वारा दिए गए एक सार्वजनिक सुझाव के अनुसार चीन की जनसंख्या नीति समाज के लिए मिलने वाले लाभ तेज़ी से गायब हो रहे हैं और ते़ज़ी से बढ़ती वृद्धों की आबादी और भविष्य में संभावित श्रम की कमी देश के लिए गंभीर चुनौतियाँ खड़ी कर देगी। इसलिए मौजूदा परिवार नियोजन नीति में समायोजन जल्द से जल्द किया जाना चाहिए या फिर किसी अप्रिय स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। झांग लीली अप्रैल 2003 में दूसरी बार गर्भवती हुईं। वह 34 साल की थी और उनका पहला बच्चा उस समय पाँच साल का था। यह अप्रत्याशित गर्भ था और उन दोनों ने खुद को देश की परिवार नियोजन नीति का उल्लंघन करते हुए पाया। झंग ने गर्भपात करवाने के लिए चिकित्सक से सलाह ली। यह बात 2003 की शुरुआत की है और चीन उस समय सार्स की चपेट में था। डॉक्टरों ने उसे सलाह दी कि अस्पताल में जाँच के लिए आना और आपरेशन के दौरान सार्स रोग के होने का जोखिम उठाना पड़ेगा। इसलिए उन्होंने उसे सलाह दी कि वह गर्भपात न करवाए और बच्चे को जन्म दे। झांग ने सलाह मान ली और अगले वर्ष जनवरी में उसने एक स्वस्थ बालक को जन्म दिया जो उसका दूसरा बच्चा था।

झांग ने स्टेट ओनड बिज़नेस वाली कंपनी में अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और एक फुलटाइम माँ और गृहणी बन गईं। लेकिन उसे अपने इस बलिदान की कीमत चुकानी पड़ी। सड़क पर चलते हुए या किसी फंक्शन-पार्टी में झांग और उसके दो बच्चों को अक्सर लोग निहारते थे - कुछ तो ईर्ष्या के कारण तो कुछ केवल आकर्षित होकर।

चाइना यूथ डेली द्वारा बच्चे के जन्म पर आयोजित एक ऑनलाइन सर्वेक्षण के मुताबिक 6000 उत्तरदाताओं में से 77.5 प्रतिशत का मानना है कि हम दो–हमारे दो, आर्दश परिवार की परिभाषा है। यानी पति-पत्नी और दो बच्चे।

सितम्बर 1982 में चीन सरकार ने परिवार नियोजन को बुनियादी राष्ट्रीय नीति के रूप में स्थापित किया। दो महीने बाद, संविधान में संशोधन किया गया जिसका कहना था कि दंपत्ति परिवार नियोजन के लिए बाध्य हैं। तब से राष्ट्रव्यापी जनसंख्या नियंत्रण नीति लागू की गई है।

परिवार नियोजन कानून का उल्लघंन करने वालों को एक बड़ी रकम का भुगतान करना होता है जिसे "सामाजिक समर्थन शुल्क " (social support fee) कहा जाता है। सीमित प्राकृतिक और सामाजिक संसाधनों के अतिरिक्त उपयोग करने के लिए उन्हें इस प्रकार दंड दिया जाता है।

दंड की राशि हर जगह अलग-अलग होती है और अगर किसी ने परिवार नियोजन कानून का उल्लघंन किया तो आमतौर पर ऐसे किसी व्यक्ति को अपनी वार्षिक आय का तीन से छह गुना तक दंड के रूप में देना होता है। और अगर जो लोग इस राशि का भुगतान नहीं करते वे अपने नवजात शिशु का जन्म पंजीकरण नहीं करा सकते या उनके बच्चे का स्थायी निवास पंजीकरण नहीं किया जाएगा जिसे चीनी भाषा में हुखोउ कहा जाता है। बिना हुखोउ के बच्चे के लिए हर काम में समस्या होगी। जैसे कि पब्लिक स्कूल में प्रवेश और सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करना असंभव हो जाएगा। झांग ने अपने दूसरे बच्चे को बीजिंग के निवासी का पंजीकरण करवाने के लिए दो लाख युआन यानी 32 हज़ार अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया। हालांकि, जहाँ कुछ ऐसे हैं जो परिवार नियोजन नीति का दिखावा कर रहे हैं तो वहीं कई ऐसे भी हैं जो इस नीति का चीन के विकास के लिए इसे आवश्यक समझ कर इसकी रक्षा कर रहे हैं। एक बच्चे की नीति ने दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश में बढ़ती जनसंख्या के दबाव को ढील दी है और अर्थव्यवस्था को विकसित करने में मदद की है। अधिकांश चीनी परिवारों के लिए इस नीति का मतलब यह है कि अपनी सीमित आय से अपने एक बच्चे को बेहतर शिक्षा और बेहतर जीवन दें और इस पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित करें। अगर चीन ने 30 साल पहले परिवार नियोजन की नीति स्थापित नहीं की होती तो आज दुनिया को और 400 मिलियन लोगों का पेट भरना पड़ता।

इस अतिरिक्त जनसंख्या का अन्य बातों के आलावा संसाधनों, भूमि और खाद्य कीमतों पर कितना अधिक प्रभाव होता, सोचिए ज़रा। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने चीन की परिवार नियोजन उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए कहा है कि दुनिया में जनसंख्या को स्थिर करने में इस नीति का बहुत बड़ा योगदान रहा।

चीन की मौजूदा परिवार नियोजन नीति, सितम्बर 1980 में पीपुल्स डेली अखबार में प्रकाशित एक सार्वजनिक पत्र से शुरू की गई जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी और यूथ लीग के सदस्यों से एक बच्चा पैदा कर उदाहरण स्थापित करने का आग्रह किया गया।

रेनमिन विश्वविद्यालय में जनसांख्यिकी के एक प्रोफेसर गु बाओछंग ने कहा कि सार्वजनिक पत्र में चीन की संभावित जनसंख्या संकट का बहुत खुलकर मूल्यांकन किया गया और कार्रवाई करने के लिए पार्टी व यूथ लीग के सदस्यों को बुलाया गया।

1970 और 1980 के दशक में स्थिति को देखते हुए जब कई चीनी परिवार भूख और गरीबी में रह रहे थे, तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रण में लाने के लिए सभी लोगों के लिए अनिवार्य परिवार नियोजन नीति आवश्यक कदम हो गया था, गु ने कहा।

हालांकि, 30 साल बाद अब समय आ गया है जब चीन को अपनी इस नीति का दुबारा मूल्यांकन करना चाहिए। 2011 में छठी राष्ट्रीय जनगणना के परिणामों में चीन की जन्मदर और जनसंख्या वृद्धि की दर दोनों में गिरावट देखी गई। जनगणना के अनुसार वर्ष 2000 से 2010 तक चीन की नेट जनसंख्या वृद्धि 70 लाख के आसपास थी। किशोरों और युवाओं के अनुपात में 16.6 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई जबकि बुजुर्गों की जनसंख्या का अनुपात जिनकी आयु 65 साल या उससे ज्यादा है में 8.9 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया। साल 2011 में बुजुर्गों की जनसंख्या में 9.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जनसंख्या नियत्रंण नीति कई अन्य सामाजिक समस्याओं को भी अपने साथ लेकर आई। उनमें से एक है असंतुलित लिंग अनुपात, तेज़ी से बढ़ती उम्रदराजों की आबादी, श्रम शक्ति में आई कमी और चीनी परिवारों में पलते नन्हे सम्राटों की समस्या – जहाँ परिवार में एक ही बच्चा जो बन जाता माता-पिता से लेकर दादा- दादी,नान-नानी के ध्यान का केन्द्र और इसी लाड-प्यार के चक्कर में जाता बिगड़ जैसी कुछ समस्याएँ शामिल हैं। ये समस्याएँ देश की सामाजिक एकता के लिए हानिकारक साबित हो रही हैं। गिरता जन्म दर भी गहरी चिंता का विषय बन गया है। राष्ट्रीय जनसंख्या और परिवार नियोजन आयोग के डेटा के अनुसार चीन की वर्तमान प्रजनन दर 1.8 पर आ गई है। लेकिन कुछ विशेषज्ञों ने छठी राष्ट्रीय जनसंख्या गणना का विश्लेषण करने के बाद बताया कि वास्तव में प्रजनन दर 1.5 है। देश की मौजूदा जनसंख्या संरचना को बनाए रखने के लिए यह बहुत कम है। मोटे तौर पर 2.1 पर प्रजनन दर को बनाए रखना किसी भी मौजूदा पीढ़ी के साइज़ के लिए आवश्यक है। आजकल, अधिकतर विकसित देशों में कम प्रजनन दर है जबकि विकासशील देशों में इसकी तुलना दो या तीन गुना ज्यादा होना असमान्य नहीं है। बच्चों को पालने के खर्च में बढ़ोतरी, घरों की बढ़ती कीमतें, देर से शादी और उस कारण देर से, बढ़ती उम्र में बच्चे पैदा होना और काम का दबाव जैसे कारण है जिनकी वजह से किसी देश की प्रजनन दर में कमी देखी जाती है। जनसंख्या की तरफ रुझान बहुत धीरे-धीरे बदलते हैं। इसलिए, जनसंख्या नीति में समायोजन दूरदर्शी होने चाहिए। अगर हम पहले से ही कम प्रजनन दर के प्रभाव को देख रहे हैं, तो कहीं ऐसा न हो कि नीति को समायोजित करने में बहुत देर हो जाए। हमें जल्द कुछ करना चाहिए और दंपत्तियों को दूसरा बच्चा पैदा करने की अनुमति दे देनी चाहिए। ऐसा ज़ुओ श्वेजिन, जनसांख्यिकी के एक विद्वान ने कहा। दूसरे बच्चे के जन्म की अनुमति देने से न केवल हम तेज़ी से गिरती प्रजनन दर को रोक पाएँगे और बूढ़े होते चीनी समाज की समस्या से भी लड़ पाएँगे बल्कि परिवार नियोजन नीति और लोगों की व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच के असंतुलन को भी ठीक कर पाएँगे। इसके साथ एक अतिरिक्त फायदा और होगा वह यह कि जन्म नियंत्रण से संबंधित सामाजिक लागत और वित्तीय व्यय में भी कमी होगी। ज़ुओ ने कहा।

इसके अलावा जितने ज्यादा नवजात शिशु पैदा होंगे उतनी घरेलु खपत में भी विस्तार होगा जिससे अर्थव्यवस्था को भी फायदा होगा।

ज़ुओ ने दुनिया के रुझान की ओर इशारा करते हुए कहा कि अगर चीन दपंत्तियों को दूसरा बच्चा पैदा करने की अनुमति भले ही दे लेकिन उसके बावजूद प्रजनन दर 2.0 से नीचे ही रहेगी। आर्थिक विकास और सामाजिक एकता पर नकारात्मक प्रभाव नगण्य होगा। ई फूशियन, एक कट्टरपंथी जनसांख्यिकी विशेषज्ञ के अनुसार परिवार नियोजन नीति को पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए। जितना अधिक विकसित समाज उतनी ही कम प्रजनन दर होती है। पुराने समय में, कई विकसित देशों और क्षेत्रों ने अपने नागरिकों को दूसरा बच्चा पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के कई प्रयास किए हैं। लेकिन उन्हें अभी तक किसी तरह के बेबी बूम देखने को नहीं मिले हैं। यू के अनुसार सामाजिक विकास और समृद्धि, उस जनसंख्या पर निर्भर करती है जो अपने आप को नवीनीकृत करने में लगी रहती है।

चीन की जनसंख्या नीति को शुरू हुए 30 साल हो गए हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि इसके कार्यान्वयन में किसी तरह के बदलाव किए गए हैं। वास्तव में, बहुत हद तक जिस नीति से अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, परिवार नियोजन नियमों को बदलती अर्थव्यवस्था के साथ बदला जाना चाहिए और ऐसा किया जा रहा है।

शुरुआत में एक बच्चे की नीति को चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में भयंकर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। 1982 में आर्थिक सुधारों ने ग्रामीण क्षेत्रों में बस प्रवेश भर ही किया था उस समय। घर के अनुबंध की जिम्मेदारी प्रणाली की शुरुआत के साथ, जिस घर में अधिक काम करने वाले हाथ होंगे, वह उतना ही जल्दी आर्थिक रूप से संपन्न हो पाएगा। परिवार नियोजन कानून खेती करने वाले परिवारों में काम करने वालों की संख्या कम कर देगा और इसे आर्थिक संपन्नता में एक बाधा माना जाने लगा। इस स्थिति को आसान बनाने के लिए 1984 में केंद्र सरकार ने ग्रामीण परिवारों में जहाँ पहली संतान बेटी है ऐसे परिवारों को दूसरा बच्चा पैदा करने की अनुमति दे दी। परिवार नियोजन नीति को अधिक उचित, लचीला और सहिष्णु बनाने के लिए संशोधन किया गया था।

1985 में शांक्सी प्रांत के इचंग कांउटी ने अपनी दो बच्चों की नीति की शुरुआत की। जहाँ किसी महिला ने अगर 24 साल या उसके बाद अपने पहले बच्चे को जन्म दिया है तो वह जब 30 साल की होगी तो उसे अपना दूसरा बच्चा पैदा करने की अनुमति मिलेगी।

नीति के लागू होने के लगभग तीन दशकों बाद भी कांउटी में अभी भी राष्ट्रीय औसत की तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर बहुत कम देखी जा रही है।चीन ने 2008 में अपने परिवार नियोजन नीति में नए सिरे से समायोजन किया, क्योंकि 1980 के दशक में पैदा हुए वन चाइल्ड जनरेशन के चीनी बच्चे शादी की उम्र तक पहुँच गए है। अब जहाँ दंपत्ति अपने-अपने परिवार में एक ही संतान रहे ऐसे दंपत्तियों को दो संतान पैदा करने की अनुमति दी गई।

जुलाई 2011 में गुआंगदोंग ने भी केन्द्र सरकार को आवेदन प्रस्तुत किया कि वे भी आधिकारिक तौर पर हेलोंगजियांग, जिलिन, लियाओनिंग, जियांगसू और झझियांग जैसे प्रांतों में चल रहे पायलट प्रोजेक्ट में शामिल होंगे जहाँ पति-पत्नी में से कोई भी एक बच्चे के परिवार से है तो ऐसे दंपत्तियों को दो बच्चों की अनुमति दी जाती है। 33 साल पहले पीपुल्स डेली में छपे लेख एक बच्चे की नीति में पहले भी उल्लेख किया गया था कि अगर 30 साल के समय में तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या वृद्धि से संबंधित समस्याओं को हल कर लिया गया तो परिवार नियोजन की अलग नीतियाँ बनाईं जाएँगी। अब, 31 साल बाद जब इस नीति ने अपनी सफलता साबित कर दी है तो अब समय है बड़े समायोजन का।

हाल के वर्षों में देश ने सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में कई सुधार होते हुए देखें हैं तो अब समय हो गया है कि देश अपने परिवार नियोजन पर भी एक नज़र डाले।

पहले से ज्यादा तेज़ी से बूढ़ी होती आबादी और गिरते प्रजनन दर को देखते हुए चीन के लिए समय है कि कोई बड़ा समायोजन करने पर विचार करें। लेकिन बुनियादी राज्य नीति के लिए एक बड़ा समायोजन दूरगामी प्रभाव लेकर आएगा और उसे पूरी तरह रद्द करना जल्दबाजी होगा। विकल्पों पर अधिक तैयारी, चर्चा और शोध की जरूरत है।

देश की 12वीं पंचवर्षीय योजना में चीन के नेताओं ने पहले से ही संकेत दिया है कि वे इस मुद्दे से निपटने की इच्छा रखते हैं। जिसमें कहा गया कि धीरे-धीरे सुधार करते हुए हमें बुनियादी राज्य नीति के तहत परिवार नियोजन पर डटे रहना चाहिए। किसी भी समायोजन से पहले गहराई में उसका अध्ययन करना जरूरी है। देश की प्रजनन क्षमता पर त्वरित प्रभाव का अच्छी तरह विश्लेक्षण किया जाना चाहिए। 30 साल बाद राज्यों द्वारा परिवार नियोजन का पालन कर चीन की जनसंख्या को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया गया है। यह नीति में समायोजन का आधार है। लेकिन अगर इस नीति के रद्द होते ही प्रजनन दर एकदम से बढ़ जाता है तो ये पिछले 30 सालों में जितना भी पाया वह बेकार हो जाएगा। किसी भी तरह का समायोजन दूरंदेशी होना चाहिए और किसी भी परिवर्तन को चीन की जनसांख्यिकी संरचना को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए। जनसंख्या में हुई तेज़ वृद्धि या गिरावट आने वाली पूरी पीढ़ी के भविष्य को प्रभावित कर सकती है। अगर विकसित देशों के अनुभवों पर एक नज़र डाले तो बूढ़ी होती आबादी का बढ़ना आम बात है।

एक बच्चे की पॉलिसी को निरस्त करने का यह मतलब नहीं कि बढ़ती उम्र की प्रवृति को रोका जा सके। इस समस्या से निपटने के लिए चीन को अपनी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली और वृद्धों की देखभाल सेवा उद्योग में सुधार करना चाहिए।

कामकाजी जनसंख्या की आयु में सिकुड़न के अनुपात को देखते हुए अर्थव्यवस्था को और अधिक उत्पादक बनाने की जरूरत है। अगर श्रम उत्पादकता में तेज़ी से सुधार होता है तो आनुपातिक सिकुड़ते श्रमिक पूल के प्रभाव को महसूस नहीं किया जाएगा।

जैसे-जैसे देश की अर्थव्यवस्था श्रम प्रधान से पूंजी प्रधान की तरफ बढ़ रही है चीन की श्रम उत्पाकदता में स्वाभाविक वृद्धि देखी जा रही है। जब तक जनसांख्यिकी में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं होता तब तक चीनी परिवारों में एक बच्चा हो या दो, परिवार की सुख-समृद्धि में कोई फर्क नहीं पड़ेगा और प्रगति होती रहेगी। इसी के साथ न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यही समाप्त होता है और मैं हेमा कृपलानी लेती हूँ विदा अगले सप्ताह तक। नमस्कार।

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