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कान्नान तिब्बती चरवाहों के घुमंतू से स्थाई निवास तक का नया जीवन
2012-11-05 18:27:55

शरत ऋतु की शुरूआत होते ही कानसू प्रांत में कान्नान के घास मैदान में घास का रंग पीला हो जाता है। तिब्बती याक और भेड़ बकरियां आराम से मैदान में घास खा रहे हैं। शाम से लेकर रात्रि तक यहां शीतल पवन की बयार बहने लगती है, शीतल पवन के कारण थोड़ी ठंड लगने लगती है। अब हमारे संवाददाता कान्नान तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर की शाहो कांउटी के सांगखो गांव में चरवाहे लाओपाई के घर में आ पहुंचे हैं, यहां पर घर के अंदर थोड़ी गर्मी है जिससे हमारे संवाददाता को थोड़ा आराम मिला। लड़की तोउ केची तिब्बती बाल गीत गा रही है, उसकी मीठी आवाज़ ने हमारे शरीर में से ठंड को पूरी तरह निकाल दिया और अब हम आरामदायक गर्मी महसूस कर रहे हैं।

वर्ष 2004 में सांगखो गांव के प्रथम खेप वाले निवासी के रूप में लाओपाई और परिवारजन पहले घुमंतू जीवन से विदा लेकर सरकार की सहायता राशि से निर्मित स्थाई आवास मकान में रहने लगे। तब से आज तक उनका जीवन धीरे-धीरे बदल रहा है। तिब्बती चरवाहे लाओ पाई ने कहा:

"सात साल पहले हम घुमंतू जीवन बिताते थे। परिवार के लोग काले तंबू में रहते थे। और रोज़ाना पशुपालन के काम में व्यस्त रहते थे। स्थाई निवास के लिये मकान में आ बसने के बाद हमारे जीवन में परिवर्तन आया है। हमारे बच्चों के लिये स्कूल जाना आसान हो गया और घर के बाहर और आसपास सड़कें बेहतर हो गईं। इसके साथ ही गांव में पेय जल और बिजली की सप्लाई भी बहाल हो गई जिससे जीवन बहुत सुविधापूर्ण लगने लगा है।"

57 वर्षीय तिब्बती चरवाहा लाओपाई पशु पालन का काम करता था। लेकिन अब उसकी उम्र ज्यादा होने के कारण स्थाई निवास मकान में रहने के बाद वह धीरे-धीरे चरागाह के जीवन से बाहर निकल आया। आज उसका बेटा और बहु घर से 10 किलोमीटर दूर स्थित ग्रीष्मकालीन चरागाह में चराई के काम में व्यस्त हैं। सर्दियों में वे दोनों घर में वापस लौटते हैं। अब लाओपाई पत्नि के साथ घर में पोते और पोती की देखभाल करते हैं।

चाहे जीवन कितना मुश्किल क्यों न हो, बच्चों को अच्छी स्थिति देनी चाहिए। चाहे कोई कितना भी गरीब क्यों न हो, बच्चों को उसे अच्छी शिक्षा देनी चाहिए। यह वाक्य तिब्बती बहुल क्षेत्रों के चरवाहों के बीच बहुत मशहूर है। पहले घुमंतू जीवन बिताने के दौरान, चरवाहों के घर के बच्चों का स्कूल जाना एक मुश्किल काम था। कुछ चरवाहे दस-बारह किलोमीटर दूर स्थित चरागाह में चराई करते थे। स्कूल में शिक्षा शुरू होने के वक्त उनके बच्चों को कांउटी शहर में जाना था। इस तरह चरवाहों को अपने बच्चों को चरागाह से कांउटी शहर तक पहुंचाना पड़ता था। इसकी चर्चा में शाहो कांउटी के सांगखो टाउनशिप के कर्मचारी तान चङच्या, जो तिब्बती चरवाहों के निवास कार्य के लिये जिम्मेदार हैं।

"पहले बच्चों को स्कूल में पहुंचाना चरवाहों के लिए बहुत मुश्किल था। वे सुबह छह बजे उठते थे, एक दिन के खाद्य पदार्थ तैयार करके घोड़े की मदद से चरागाह से कांउटी शहर की ओर जाते थे। घोड़े की पीठ पर बच्चा भी सवार होता था। कांउटी पहुंचने के बाद वे लोग होटल में रहने के बजाए बाहर रहते थे। दूसरे दिन बच्चों का नाम स्कूल में पंजीकृत होने के बाद चरवाहों को कांउटी शहर से एक दिन के खाद्य पदार्थ खरीद कर फिर घोड़े से चरागाह तक वापस लौटना पड़ता था। उस समय उनके बच्चों का स्कूल जाना बहुत मुश्किल था।"

तिब्बती चरवाहे लाओपाई की 12 वर्षीय पोती तोउ गेची अपनी छोटी बहन के साथ घर के गलियारे पर लगे कारपेट पर अंग्रेज़ी पढ़ रही हैं। पढ़ाई के दौरान दोनों बहने एक दूसरे की आवाज सुन रही हैं और एक दूसरे को गलती भी बता रही हैं। कभी कभार उनकी हंसने की आवाज़ गूंज उठती है। सात साल पहले स्थाई निवास स्थान में स्थानांतिरत होने से पहले के जीवन के बारे में तिब्बती लड़की तोउ गेची को याद नहीं आती। लेकिन उसने कहा कि वर्तमान जीवन के प्रति वो बहुत संतुष्ट और खुश है। उसने कहा कि यहां रहने के बाद स्कूल जाना बहुत सुविधापूर्ण है। घर से कुछ मीनट में वो स्कूल पहुंचती है। दूसरे साथियों के साथ खेलना तिब्बती छोटी लड़की तोउ गेची के लिए सबसे खुशी की बात है। उसने कहा:

"दोस्तों के साथ खेलना मुझे बहुत अच्छा लगता है और मैं इससे खुश रहती हूं। वे मेरे साथ खेलते हैं और वो भी बहुत खुश हैं। मुझे स्कूल जाना पसंद है। होमवर्क करते समय शिक्षक मेरी मदद करते हैं। मुझे चीनी भाषा बोलना पसंद है। साथ ही चीनी भाषा कक्षा, तिब्बती भाषा कक्षा और गणित कक्षा को भी पसंद करती हूँ। अपने नए घऱ में आने के बाद मैं बेहद खुश हूँ। गर्मियों की छुट्टियों में मैं सहपाठियों के साथ खेलती हूँ। मेरा जीवन बहुत सुखद है। बड़ी होने के बाद मैं एक डॉक्टर बनना चाहती हूँ। अगर कोई बीमार हो, तो मैं उसका इलाज कर सकती हूँ।"

तिब्बती चरवाहे लाओपाई ने कहा कि हाल के वर्षों में देश ने किसानों और चरवाहों के समर्थन में जोर दिया। स्थाई निवास स्थान में रहने वाले चरवाहे घुमंतू जीवन से विदाई ले चुके हैं। साथ ही सरकार ने चिकित्सा बीमा, सामाजिक प्रतिभूति बीमा में किसानों और चरवाहों की भागीदारी को प्रोत्साहन दिया। आज न सिर्फ़ यहां के लोग बीमा करवा सकते हैं, बल्कि याक और भेड़ बकरियों का भी बीमा करवा सकते हैं। दूर दराज के चरागाहों में अपने पशुओं को चराई करवा रहे पुत्र और बहू को अब कोई चिंता नहीं होती।

याक और भेड़ बकरियों का बीमा करवाने के बारे में कान्नान तिब्बती प्रिफेक्चर की लुछ्यु कांउटी के काशो गांव के चरवाहे गेरी जाशी के पास ज्यादा अनुभव है। उसके घर में कुल एक सौ याक पाले गए हैं। गांव में उसका जीवन थोड़ा विलासपूर्ण माना जाता है। वर्ष 2012 के वसंत ऋतु के शुरूआत में कान्नान के घास मैदान में गंभीर बर्फ़ बारी हुई। गेरी जाशी के घर में तीन-चार याक ठंडे से मर गए। सौभाग्य की बात है कि उसने पहले से ही अपने याक का बीमा करवा लिया था। संबंधित अनुबंध के मुताबिक बीमा कंपनी ने जाशी को तीन याक की मुआवज़ा राशि दी और इस तरह उसे छह हज़ार युआन मिले। इसके बारे में बताते हुए तिब्बती चरवाहे गेरी जाशी ने कहा:

"बीमा में भाग लेने के लिए याक और भेड़ बकरियों के लिये अलग-अलग पैसे देने पड़ते हैं। एक याक 12 युआन और एक भेड़ या बकरा 1.2 युआन। अगर पशु की गैर प्राकृतिक तौर पर मृत्यु हुई, तो बीमा कंपनी अलग-अलग तौर पर याक और भेड़ बकरियों के लिए दो हज़ार युआन और तीन सौ युआन का मुआवज़ा देती है। मैंने घर के 80 याकों को बीमा में शामिल किया।"

तिब्बती चरवाहे गेरी जाशी के घर के आंगन में पहुंचने के तुरंत बाद हवा में घी और दूध की सुगंध आ रही है। स्थाई निवास में स्थानांतरित होने के बाद उसने घर के कमरों को अच्छी तरह सुसज्जित किया। घर में तिब्बती शैली बिलकुल साफ तौर पर नज़र आ रही है :लकड़ी से बने हुए पीले रंग के फ़र्निचरों पर शुभसूचक बादल और सूत्र चक्र अंकित किए जाते हैं। मंजिल पर गहरे लाल रंग वाला तिब्बती कारपेट लगाया जाता है और कोने में पेओनी लाल रंग की अलमारी रखी हुई है, जिसके पास एक सफेद याक के रूप वाला खिलौना रखा जाता है। घर में रंगीन टीवी, टेलिफ़ोन, फ़्रिज और कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक उकरण भी रखे हुए हैं। तिब्बती चरवाहे गेरी जाशी ने कहा कि घर की आर्थिक आय एक सौ याकों से होने वाली कमाई पर निर्भर रहती है। हर साल याक का दूध और घी बेचने से अच्छी कमाई हो जाती है।

गेरी जाशी ने बताया कि उसका स्थाई निवास मकान सरकार द्वारा 50 हज़ार युआन और उसके पास रखे हुए 20 हज़ार युआन से निर्मित हुआ है। मकान के भीतरी डिज़ाइन के लिए एक लाख युआन का खर्च हुआ, जो घर की सभी जमा राशि के बराबर है। हर दिन आरामदेह मकान में रहते हुए छोटे पोते की देखभाल करना, गांव में स्थापित छोटे से मंदिर में जाकर पूजा करना, सूत्र चक्र घूमाना, टीवी कार्यक्रम का आनंद लेना, पड़ोसियों के साथ गपशप करना और याक और भेड़-बकरियों का पालन करना तिब्बती चरवाहे गेरी जाशी के रोज़मर्रा जीवन का हिस्सा है। अपने जीवन के प्रति वो बहुत संतुष्ट है। उसने कहा:

"पहले चरागाह का जीवन मुझे पसंद है, और आज के स्थाई जीवन को भी मैं पसंद करता हूँ। ये बहुत आरामदेश लगता है। विशेष कर छोटे बच्चों का स्कूल जाना और वृद्ध लोगों की बीमारी का इलाज करना बहुत सुविधापूर्ण है।"

गेरी जाशी के 24 वर्षीय छोटे बेटे चोमा च्या को स्पष्ट रूप से याद है कि पहले घुमंतू जीवन बिताने के समय परिवार के लोग मिट्टी वाले छोटे मकानों में रहते थे, जिसमें न बिजली थी और न ही पानी, जीवन बहुत कठिन था। चीनी लोगों के सबसे बड़े और परम्परागत त्योहार यानी वसंत त्यौहार मनाने के वक्त परिवार के सभी लोग सिर्फ़ एक साथ मांस खाते थे, शराब पीते थे और नाचने के बाद ही सोते थे। लेकिन आज वे स्थाई निवास मकान में रहने लगे हैं। अब पेय जल, बिजली की भारी सुविधाएं उन्हें मिली हुई हैं। वसंत त्योहार के समय परिवार के लोग सब लोगों की ही तरह टीवी सेट के सामने बैठकर केंद्रीय टीवी स्टेशन यानी सीसीटीवी द्वारा आयोजित वसंत त्योहार मिलन समारोह के कार्यक्रमों का इन्तज़ार करते हैं। चोमा च्या अभी-अभी कान्नान तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर के स्वास्थ्य स्कूल से स्नातक बन चुका हैं। उसने कहा कि अब परिवार के सभी लोग स्थाई आवास में अपना जीवन बिताने लगे हैं। बड़े भाई और भाभी पिता जी के पशु पालन कार्य को जारी रखते हैं। वह एक तिब्बती डॉक्टर बनना चाहता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा चरवाहों और किसानों का इलाज कर सके।

पानी और बिजली की सुविधा के अलावा तिब्बती युवा चोमा च्या को घर में बैठते ही इन्टरनेट का प्रयोग करने पर ज्यादा संतुष्ट हुआ। उसने कहा कि इन्टरनेट के प्रयोग से कान्नान के घास मैदान में रहने के बावजूद अब उसे अंदरूनी इलाकों में जाना बहुत नज़दीक लगता है इसके साथ ही बाहरी दुनिया के बारे में आसानी से जानकारी हासिल हो जाती है। कानसू प्रांत के कान्नान तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर की लु छ्यु कांउटी के प्रसारण विभाग की उप-प्रधान वांग लीफ़ांग ने कहा कि वर्तमान में सारी कांउटी में चरवाहों के लिए कुल 23 स्थाई निवास गांवों का निर्माण किया गया है। अधिकतर चरवाहे स्थाई जीवन बिताने लगे हैं। इसके साथ ही स्थाई निवास स्थानों में बुनियादी तौर पर"छह क्षेत्रों में सुविधा"मिली हुई है । इसका परिचय देते हुए सुश्री वांग लीफ़ांग ने कहा: 

"पहले चरवाहे तंबू और मिट्टी से बने छोटे छोटे मकानों में रहते थे। स्थाई निवास के मकानों के निर्माण के दौरान सरकार ने एकीकृत बंदोबस्त किया और छह क्षेत्रों में ये सुविधा प्रदान की। यानी मार्ग, बिजली, पानी, टेलिफ़ोन, केबल टीवी और रेडियो। इस गांव में सांस्कृतिक केंद्र भी स्थापित हुआ है, जिसमें कंम्प्यूटर भी लगाया गया है। छुट्टियों में विद्यार्थी इससे इन्टरनेट का प्रयोग कर सकते हैं।"

सुश्री वांग लीफ़ांग ने जानकारी देते हुए कहा कि काशो गांव की तरह नव निर्मित स्थाई निवास स्थानों में जीवन स्थिति ज्यादा से ज्यादा बहतर हो रही है।"छह क्षेत्रों में सुविधा"साकार होने के आधार पर अधिकांश चरवाहों के घर में इन्टरनेट की सुविधा भी मिली हुई है। उनका जीवन अधिक से अधिक सुविधापूर्ण और आरामदेह हो रहा है। वर्तमान में सरकार बुनियादी संस्थापन के क्षेत्र में चरवाहों के समर्थन के अलावा चरागाह क्षेत्र में कई परियोजनाओं के कार्यान्वयन भी सहायता देती है, यानी घास के मैदान को लोहे के तारों की बाड़ से घेरना, पशुओं के आश्रय को गर्म बनाए रखना, पशुओं की बीमारी की रोकथाम करना और चारा उत्पादन की क्षमता बढ़ाना आदि। इसके साथ ही सरकार चरवाहों को वैज्ञानिक रूप से पशु पालने की सहायता देती है। इसके बाद पशुओं की मृत्यु दर में कमी आई है, चरवाहों के पास आर्थिक क्षति कम होती है और उनकी आय बढ़ गई है। इसकी चर्चा में सुश्री वांग लीफ़ांग ने कहा:

"सरकार ने घास के मैदान का चरवाहों के लिए बंटवारा किया, चरवाहे लोहे के तारों से बाड़ बनाकर अपने घास के मैदान को दूसरों के मैदान से अलग करते हैं, इससे याक और भेड़ बकरियां अचल स्थलों में घास खाते हैं। जब चरवाहों को अपनी याकों और भेड़ों को दुहना होता है तो वो उन्हें बाड़ से बाहर निकालकर दुह सकते हैं। पशुओं के आश्रय को गर्म रखने वाली परियोजना का मतलब है कि हर चरागाह में आश्रय स्तापित किया जाता है। बर्फ़ आपदा होने के समय सभी पशुओं को गर्म आश्रय में पहुंचाता है। इस कदम से पशुओं की मृत्यु दर में गिरावट आई है।" 

हमारे संवाददाता तिब्बती चरवाहे गेरी जाशी के घर से निकल कर काशो गांव में आ गए हैं। गांव की सड़कों के दोनों किनारे पर कई तिब्बती महिलाएं कताई का काम कर रही हैं। वे गपशप करती हैं और कभी कभार हंसती भी हैं। नज़दीक के घास के मैदान में दादी और दादा अपने पोते या पोती की देखभाल कर रहे हैं। उनके पुत्र और बहू दूर दराज़ के ग्रीष्मकालीन फ़ार्म में अपने पशुओं को चराई करवा रहे हैं। भावी पीढ़ी की देखभाल करना इन वृद्ध चरवाहों की समान अभिलाषा है। अब वे सुखद जीवन बिता रहे हैं।

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