Web  hindi.cri.cn
हान व तिब्बती जातियों का खून फूअड़ रोड से सिंचित
2012-11-05 15:58:21

अभी आप ने जो चाय घोड़ा रोड नामक गाना सुना है, वह चीन की प्रसिद्ध तिब्बती जाति की गायिका हान होंग ने गाया है, इस गाने में प्राचीन चाय घोड़ा रोड के माध्यम से हान व तिब्बती जातियों के बीच स्थापित खून के रिश्ते का गुणगान किया गया है। इस गीत का बोल है कि साउसुर्या के गीत के साथ साथ घोड़े की नाल ध्वनि दूर से सुनाई दे रही है, खांगपा की युवतियां फूलों की तरह सुंदर दिखाई देती है, नाशी जातीय पुरुष इस मनमोहक दृश्य देखने में मस्त हैं। प्राचीन चान घोड़ा रोड का रहस्यमय दृश्य आप को अपनी चपेट में ले जाता है, इस पुराने चाय घोड़े रोड में न जाने कितनी रहस्यपूर्ण बातें छिपी हुई हैं।

कहा जाता है कि चीन के भीतरी क्षेत्रों में चाय पीने का इतिहास कोई चार हजार वर्ष से अधिक पुराना है , जब कि तिब्बत में चाय पीने का इतिहास डेढ़ हजार वर्ष भी पुराना है। चीन के इतिहास में थांग राजवंश सब से प्रतिभाशाली काल माना जाता है, सातवीं शताब्दी में राजकुमारी वन छंग और आठवीं शताब्दी में राजकुमारी चिन छंग की शादी क्रमशः तिब्बत के थुफान राजाओं से हुई, वे तत्कालीन राजधानी छांगआन से चाय समेत बहुत विविधातापूर्ण सामान बर्फीले पठारीय तिब्बत ले गयीं। उसी समय से ही बर्फीले पठार पर बसी जनता चाय पीने की आदी हो गयी है और चाय स्थानीय जीवन में एक अपरिहार्य चीज बन गयी है, बड़ी मात्रा में चाय लगातार भीतरी क्षेत्रों से तिब्बत पहुंचायी जाने लगी, तब से ही चाय घोड़ा रोड तिब्बती जनता की लाइफ लाइन के रुप में सामने आयी है। लम्बे अर्से से चाय संस्कृति के अध्ययन में संलग्न युनन्ना प्रांत की फूअड़ चाय पत्रिका एजेंसी के उप प्रधान प्रोफेसर ह्वांग येन ने इस प्राचीन चाय घोड़ा रोड का विवरण करते हुए कहा:

"चाय घोड़ा रोड का इतिहास बहुत पुराना है, ईसा पूर्व के आसपास के छिन हान काल से ही मूलभूत चाय घोड़ा रोड प्रकाश में आ गया है। थांग राजवंश काल में फूअड़ क्षेत्र में उत्पादित चाय तिब्बत के इसी प्राचीन रोड़ के माध्यम से थुफान तक पहुंचायी जाती थी। उस समय तिब्बती व्यापारी अपने घोड़े के बदले में चाय का अदला बदली करते थे, इसी तरह विश्वविख्यात चाय घोड़ा व्यापार भी प्रकाश में आ गया है।"

चाय घोड़ा व्यापार का अर्थ है कि तिब्बती क्षेत्र में पैदा खच्चरों, लेजरों, जड़ी बूटियों से सछ्वान व युनन्नान प्रांतों और भीतरी क्षेत्रों में उत्पादित चाय, कपड़ों, नमक और रोजमर्रे में आने वाले बर्तनों का आदला बदली किया जाता है यानी मालों से मालों का व्यापार किया जाता है। आम तौर पर कहा जाये, तिब्बत की ओर पहुंचने वाले दो प्राचीन चाय घोड़ा रोड ही हैं, एक है कि युन्नान प्रांत के फूअड़ चाय के उत्पादन क्षेत्र से निकलकर ताली, लीच्यांग से होकर पूर्व तिब्बत व मध्य तिब्बत पहुंच जाता है, फिर च्यांगची व यातुंग गुजरकर क्रमशः नेपाल व भारत तक पहुंच जाता है। दूसरा रोड है कि सछ्वान प्रांत के याआन से निकलकर पश्चिम सछ्वान पठार गुजरकर ल्हासा पहुंच जाता है, फिर वहां से आगे चलकर नेपाल व भारत तक जाता है। ह्वांग येन ने कहा कि तिब्बत की ओर पहुंचने वाले चाय घोड़ा रोड का इतिहास बहुत पुनारा नहीं है। उनका कहना है:

"फूअड़ क्षेत्र से कुल पांच निकलने वाले चाय घोड़ा रोडों में से एक है कि तिब्बत की ओर जाने वाला चाय घोड़ा रोड ही है। हमारे स्थानीय लोग राजधानी पेइचिंग की ओर जाने वाले सरकारी मार्ग को आगला रोड कहते हैं, जबकि तिब्बत की ओर जाने वाले रोड को पिछवाड़ा रोड कहते हैं। गत सदी के 60 वाले दशक में इसी पिछवाड़े रोड पर बहुत चहल पहल नजर आती थी, यातायात अहम भूमिका निभाती थी।"

विश्व छत के नाम से नामी छिंगहाई तिब्बत पठार पर जब लोगों को तेज भूख लग रही है, तो वे एक कप मक्खी चाय पीने से एकदम तरोताजा हो जाते हैं, जब थक जाते हैं, तो एक कप गरमागर्म चाय पीने से पूरी थकावट समाप्त हो जाती है। जब लोग कड़ाके की सर्दियों में कई कप मक्खन चाय पी लेते हैं, तो पूरा बदन तुरंत ही गर्म हो जाता है। यहां तक कि लोग किसी बीमारी से लग जाते हैं, तो एक प्याला गाढ़ी चाय पीने से बीमारी का इलाज भी किया जाता है। चाय पीना तिब्बती सामाजिक जीवन का एक अभिन्न भाग बन गया है। प्रमुख चाय उत्पादन क्षेत्र की हैसियत से युन्नान प्रांत तिब्बती चाय संस्कृति में अहम स्थान बना लेता है। युन्नान प्रांत के फूअड़ चाय संघ के महा सचिव चू ची आन ने कहा:

"तिब्बती क्षेत्रों में तिब्बती जाति में लम्बे अर्से से फूअड़ चाय पीने की परम्परा बनी रही है, वे फूअड़ चाय से मक्खन चाय भी बनाने को पसंद करते हैं। 1996 में दसवें पचन अर्दनी ने विशेष तौर पर युन्नान प्रांत में फूअड़ चाय के उत्पादन, प्रोसेसिंग और बिक्रि का निरीक्षण दौरा किया, साथ ही दसियों टन फूअड़ चाय का आर्डर भी कर दिया। उन के द्वारा आर्डर फू्अड़ चाय पत्तिय़ों का आकार प्रकार मशरुम जैसा है, इसलिये इस चाय को विशेष तौर पर पंचन थो कहलाया जाता है, इस चाय का प्रयोग मुख्य रुप से धार्मिक जगत की हस्तियों की सेवा में किया जाता था। तिब्बती जाति में यह कहावत प्रचलित है कि तीन दिन में खाना खाये बिना लोग सह सकते हैं, पर दिन में चाय न पीने से रह नहीं सकते। तिब्बती जाति फूअड़ चाय अपने प्राण की तरह समझती है।"

अतीत के लम्बे अर्से से युन्नान तिब्बती चाय का प्रमुख स्रोत है, दक्षिण युन्नान प्रांत में उत्पादित चाय तिब्बत की ओर जाने वाले चाय घोड़ा रोड के अहम ठिकाने ताली में जमा ली जाती थी, फिर वहां पर तिब्बती जाति के पसंदीदा विशेष चाय पत्थर के रुप में चाय का प्रोसेसिंग किया जाता था, फिर बनी बनायी चाय पत्थर इसी चाय घोड़ा रोड के जरिये तिब्बत में पहुंचायी जाती थी। चीन लोक गणराज्य की स्थापना के बाद सरकार ने तिब्बत आदि सीमांत क्षेत्रों में चाय की पर्याप्त सप्लाई की गारंटी के लिये विशेष संस्था की स्थापना के साथ साथ भारी वित्तीय भत्ता जैसी विशेष उदार नीतियां भी निर्धारित की। अब आर्थिक विकास और यातायात में सुधार के चलते युन्नान और भीतरी क्षेत्रों की चाय तेज व सुचारु रुप से तिब्बत आदि अल्पसंख्यक जातियों बहुल क्षेत्रों में पहुंचाय़ी जाती है। अब चाय घोड़ा रोड एक नवीनतम रुप में भीतरी इलाकों व अल्पसंख्यक जातीय क्षेत्रों के खूनी रिश्ते को घनिष्ट रुप से जोड़ देता है। युन्नान प्रांत के फूअड़ चाय संघ के महा सचिव चू ची आन ने कहा:

"चीन में एक रेश्मी रोड और एक चाय घोड़ा रोड ने भीतरी इलाकों व सीमांत क्षेत्रों, सीमाओं और जातियों के बीच सम्पर्क को जोड़ दिया है। इसलिये चाय घोड़ा रोड चाय, घोडों और भिन्न भिन्न प्रकार वाले मालों का सौदा ही नहीं, बल्कि वह जातीय सामंजस्य, जातीय एकता, सीमांत स्थिरता और जातीय संस्कृतियों के बीच आपसी आदान प्रदान और मेल मिलाप को बढावा देने वाला प्रशस्त रास्ता भी है।"

आप की राय लिखें
Radio
Play
सूचनापट्ट
मत सर्वेक्षण
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040