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घास मैदान के प्रथम गांव का नया जीवन
2012-11-05 15:24:27

जब विशाल घास मैदान का उललेख किया जाता है, तो आम लोगों के सामने यह दृश्य नजर आता है कि अपार विशाल घास मैदान पर बेशुमार गाएं और भेड़ बकरियां झुंट में झुंट दिखायी देती हैं, अंगिनत तंबुएं पूरे घास मैदान पर बिखरे हुए हैं, जब कि मेहनत चरवाहे साल भर में इन तंबुओं में बसे हुए हैं। पर यदि आप दक्षिण पश्चिम चीन स्थित सछ्वान प्रांत के आपा तिब्बती छांग स्वशासन प्रिफेक्चर के घास मैदान के दौरे पर जाते हैं, तो आप को अवश्य ही आश्चर्य होता है कि घास मैदान पर बसने वाले चरवाहों के जीवन में बड़ा बदलाव आ रहा है।

मुछांग गांव सछ्वान प्रांत के आपा तिब्बती छांग स्वशासन प्रिफेक्चर की सोंन फान कांऊटी का तिब्बति जातीय गांव है , गहरे पर्वतों के बीच खड़ा यह गांव समुद्री सतह की तीन हजार पांच सौ मीटर की ऊंचाई पर है, यहां की विशाल भूमि पर कम लोग रहते हैं, इसलिये यह गांव घास मैदान के प्रथम गांव के नाम से विख्यात है। पर्वत की तलहटी स्थित इस गांव का प्राकृतिक दृश्य अत्यंत दर्शनीय है, इतना ही नहीं, राजमार्ग के निकट स्थित होने से यातयात बहुत सुविधापूर्ण है।

पूरा गांव बहुत साफ सुधरा है, तिब्बती वास्तु शैली में निर्मित मकान कतारों में सुव्यवस्थिर रुप से नजर आते हैं, जबकि रंगबिरंगी प्रार्थना झंडियां हवा के झोकों में फहरते हुए दिखायी देती हैं। हालांकि यह गांव बड़े पर्वतों के बीच खड़ा हुआ है, पर यहां के हरेक गांव वासी के घर में टीवी सेट, फ्रिज, सोफा आदि आधुनिक घरेलू विद्युत उपकरण और फर्निचर सजे हुए हैं। पर तीन साल पहले यहां की हालत एकदम अलग थी। मुछांग गांव के प्रधान लांगकाश्योंगपे ने हमारे संवाददाता से कहा:

"इस गांव की स्थापना से पहले तमाम गाववासी पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन बिताते थे, उन के पास न कोई स्थिर स्थान था और न कोई मकान, साल भर में समूचे गांव वासी सम्मेलन बुलाने के मौके पर एकत्र हो जाते थे। क्योंकि हमारे तीस हजार हैक्टर विशाल घास मैदान पर सिर्फ 71 परिवारों के 291 लोग हैं, रहने के लिये तंबूओं के अलावा कोई स्थित स्थान नसीब नहीं था, इसलिये वे इस विशाल घास मैदान पर बहुत दूर-दूर तक बिखरे हुए हैं, एक दूसरे से मिलना बहुत कठिन थे , बिजली न होने से टीवी देखना भी असम्भव था।"

पिछले अनेक सालों में मुछांग गांव के चरवाहों को तंबू लिये गायों व भेड़ बकरियों को चेराने के लिये पहाड़ों पर धूप दौड़ करना पड़ता था। केवल त्यौहार के उपलक्ष में वे एक दूसरे से मिलते थे, आम दिनों में एक दूसरे से मिलना कोई आसान काम नहीं था। लम्बे अर्से से कोई स्थिर निवास स्थान उपलब्ध न होने से चरवाहों की जीवन गुणवत्ता काफी हद तक प्रभावित हो गयी है।

उस समय टीवी सेट एक दुर्लभ चीज समझी जाती थी, बीमारियों के इलाज में बड़ी दिक्कतें हुई थीं, यहांतक कि बच्चों की पढ़ाई भी ठीक से नहीं की जा सकती थी, क्योंकि बच्चे स्कूल से बड़ी दूरी पर बसते थे, ठीक समय पर स्कूल जाना उन के लिये बिलकुल असम्भव था, इसलिये हाई स्कूल तक पढ़ने वाले बच्चे इने गिने थे। अब सभी गांव वासी बड़े बड़े रोशनीदार मकानों में रहते ही नहीं, बल्कि नल के पानी और बिजली की सप्लाई उपलब्ध भी है, गांव प्रधान लांगकाश्योंपे ने कहा कि आज इतने बड़े सुविधापूर्ण व आरामदेह मकानों में रहने की कल्पना पहले कभी भी नहीं की जा सकती । उन्होंने हमारे संवाददाता से कहा कि स्थिर निवास स्थान से गांववासियों के जीवन में इतना बड़ा बदलाव आया है। 2009 से सछ्वान प्रांतीय सरकार ने तिब्बती क्षेत्रों के चरवाहों के उत्पादन व जीवन स्थिति को सुधारने के लिये स्थिर निवास निर्माण योजना शुरु कर दी । इस योजनानुसार मुछांग गांव के तमाम निवासी अलग अलग स्थानों से इसी गांव में स्थानांतरित हुए हैं। गांव में दूर संचार, राजमार्ग और पानी व बिजली आदि आधारभूत संस्थापनों का निर्माण सरकारी धनराशि से किया गया है। नये स्थिर मकानों में बसने से गांववासियों के जीवन में बड़ा सुधार हुआ है। इसकी चर्चा में लांगकाश्योंगपे ने कहा:

"पहले बाल बच्चों को पढ़ाई में बड़ी दिक्कते हुई थीं, क्योंकि जब बच्चा स्कूल में पढ़ने जाता है, तो घर में उस की देखभाल के लिये एक प्रमुख अभिभावक को रहना पड़ता था, लेकिन अब इस की जरुरत नहीं है, स्कूली बच्चे निश्चिंत रुप से कस्बे स्थित स्कूल में जाते हैं, सार्वजनिक बस स्कूल की ओर आती जाती है , यातायात बहुत सुविधाजनक है । इस के अलावा इलाज करने की स्थिति भी काफी सुधरी है, अब नव निर्मित अस्पताल गांव के बगल में है, बस से सिर्फ दस मिनट का रास्ता है । जबकि पहले बीमारियों का इलाज इतना मुश्किल था कि अस्पताल पहुंचने में घोड़े पर सवार होने में पूरा दिन लगता था, वाहन से भी आधे दिन का समय लगता था, कुछ गम्भीर रोगियों को अस्पताल जाने के रास्ते पर अपना दम तोड़ना पड़ता था।"

लांगकाश्योंगपे ने कहा कि अब मुछांग गांववासी के पास अपना बड़ा मकान ही नहीं, अपना अलग प्रागण भी है, कुछ अमीर गाववासियों ने अपने प्रागण में दुमंजिली इमरात भी बनवायी है। मकान की निर्माण लागत की चर्चा करते हुए गांव प्रधान लांगकाश्योंपे ने कहा कि मकान के निर्माण में सरकार ने हाथ बटाने के लिये कुछ धन राशि दे दी है, जबकि अन्य कुछ गाववासियों पर निर्भर थी। उन्होंने एक मकान की ओर इशारा करते हुए कहा:

"इतने बड़े मकान के निर्माण में लगभग 63 हजार य्वान की जरूरत पड़ती है, सरकार हाथ बटाने के लिये 25 हजार य्वान देती है, साथ ही निम्न ब्याज दर पर तीस हजार य्वान का कर्ज मिलता है, 8 हजार य्वान की मकान निर्माण भत्ता भी प्राप्त है, मकान की सजावट को छोड़कर गांववासियों को मकान के निर्माण में अपना ज्यादा खर्चा करने की जरुरत नहीं है, क्योंकि जमीन का बंटवारा सरकार ने मुफ्त में दे दिया है।"

हमारे संवाददाता ने गांव में पशु चिकित्सक त्सेचू की मुलाकात की, वे बड़ी खुशी से हमारे संवाददाता को अपने घर ले गये, त्सेचू की बुढी मां माइको से हमारे संवाददाता का उत्साह के साथ स्वागत किया। बुढी मां माइको की उम्र इस साल 80 वर्ष हो गयी है, 1958 में मुछुंग गांव की स्थापना से ही वे गांव कमेटी में कार्यरत रही। पिछले दसियों सालों में बुढी मां ने अपनी आंखों से मुछुंग गाव में आये सभी परिवर्तनों को देख लिया है, उन्होंने तिब्बती भाषा में हमारे संवाददाता से कहा कि वे आज के जीवन पर बेहद संतुष्ट हुई हैं। बुढी मां माइको ने कहा:

"अब नया गांव निर्मित हो गया है, जीवन बहुत सुखद है, मैं अपने बुढापे जीवन पर बहुस संतुष्ट हूं, बहुत सुखी हूं।"

तिब्बती बंधु त्सेचू का पारिवारिक जीवन वाकई बहुत सुखद है, एक बड़ा सुखी परिवार कहने लायक है। उन की बड़ी बेटी स्थानीय तिब्बती अस्पताल में काम करती है, छोटा बच्चे बाहर पशुओं को चराने गया है। हालांकि साल के अधिकतर समय में पशुओं को चराने बाहर जाता है, पर वह हरेक माह में घर वालों से मिलले वापस आता है, इस पर त्सेचू को कोई चिन्ता भी नहीं है। क्योंकि सरकार ने स्थानीय चरवाहों के लिये एक नया तंवू जीवन अभियान शुरू कर दिया है, इस अभियान के अनुसार पशुओं को चराने बाहर जाने वाले चरवाहों को नये गुणवान तंबू और रोजमर्रे में कुछ आने वाली चीजें बांटी जाती हैं, इस तरह चहवाहों का चराई जीवन बड़ी हद तक सुधर गया है। तिब्बती बंधु त्सेचू ने कहा:

"पुराने ढंग वाले तंबू याक बालों से बुने हुए हैं। विशेषकर जब बाहर पानी बरसता है, तो तंबू में पानी का रिसाव होता है। नयी डिजाइन वाले तंबू बहुत बढ़िया है, मुस्लाधार वर्षा बरसते समय तंबू में जरा सा गिला भी नहीं है, पक्के कमरे की तरह आरामदेह है। पठार पर यूवी बहुत तेज है, पर तंबू में पूवी से बचने के लिये एक विशेष कवर लगा हुआ है, इस से तंबू में ज्यादा गर्मी भी नहीं है। इसी प्रकार वाले तंबू की डिजाइन बहुत मानवोचित है, हरेक चरवाहे के घर को मुफ्त में एक नया तंबू वितरित होता है।"

त्सेचू ने हमारे संवाददाता को हरेक परिवार को वितरित नये तंबू दिखा दिये। नये तंबू में न ज्यादा गर्मी है और न ज्यादा ठंड। नयी डिजाइन वाला तंबू हल्का ही नहीं, पानी और आग रोधक भी है, इतना ही नहीं, आसानी से लगाया भी जा सकता है। और तो और हरेक तंबू के साथ रोलावे बिस्तर, इस्पात चुल्हा, सौर प्रकाश, अल्मारी, जल योजन और खुलने व बंधने वाली कुर्सी समेत ये नौ वस्तुएं भी बांटी जाती हैं, इसी प्रकार वाले तंबू में रहना सचमुच बहुत आराम है। खासकर दूरस्थ घास मैदान में बसने वाले चरवाहे अपने तंबू में बैठकर आराम से टी वी देखकर आनन्द उठा सकते हैं।

गांव के प्रधान लांगकाश्योंपे के ख्याल से स्थिर निवास स्थान से न सिर्फ चरवाहों की जीवन स्थिति बड़ी हद तक सुधर गयी है, बल्कि बहुत ज्यादा चरवाहों का सोचने का तरीका भी बदल गया है। उन्हों ने इस का परिचय देते हुए कहा:

"जब स्थिर निवास स्थान अभियान शुरु हुआ, तो काफी ज्यादा स्थानीय चरवाहों को इस अभियान पर एतराज हुआ, उन के विचार में यह अभियान करना कोई जरूरी नहीं है। लेकिन कई परिवारों के मकान खड़े किये जाने के बाद उन का विचार बदल गया है, फिर एक के बाद एक नया मकान बनवाया गया है।"

आज स्थानीय सरकार के नेतृत्व में मुछांग गांववासी पशु पालन धंधे का विकास करने के चलते पर्यटन उद्योग में भी लग गये हैं। त्येचू का परिवार भी इस का अपवाद नहीं है, वे अपने खाली कमरों को सुधार कर यहां के दौरे पर आने वाले पर्यटकों को तिब्बती स्टाइस वाले भोजन और रहने की सुविधाएं और अश्वारोही पर्यटन सेवा भी उपलब्ध करा देते हैं। तिब्बती बंधु त्सेचू ने कहा:

"पर्यटन कार्य से प्राप्त आय दैनिक जीवन बनाये रखने के लिये काफी है, जबकि याक और दूसरे धंधों से प्राप्त आय बैंक में जमायी जाती है।"

त्येचू ने बताया कि अपने घर में कुल तीन सौ से ज्यादा याक पाले जाते हैं, हर वर्ष पशु पालन से करीब एक लाख 50 हजार य्वान की आय प्राप्त है। वे खुद एक पशु चिकित्सक हैं, आम दिनों में इस से कुछ कुछ कमा सकते हैं। गांव में उन की पारिवारिक आर्थिक स्थिति माध्यमिक स्तर की है, वे मौजूदा जीवन पर काफी संतुष्ट हैं।

जब हमारे संवाददाता इस गांव से निकल जाते हैं, तो इस गांव के स्वागत केंद्र में प्रसारित उल्लासपूर्ण घाम मैदानी गीत सुनाई देते हैं, गीत की मधुर आवाज में स्थानीय तिब्बती चरवाहों की आस्थाएं और आत्मसंतुष्ट मनोदशा संजोये हुए हैं।

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