12 जुलाई को सौ सदस्यीय भारतीयों का एक दल 10 दिनों की चीन की यात्रा पर आया हुआ है। 13 और 14 जुलाई को इस दल को राजधानी बीजिंग के अलग अलग स्थलों पर ले जाया गया। इस दल के साथ मुझे मेरी चीनी सहयोगी लिली के साथ जाने का मौका मिला। हम लोग राजधानी बीजिंग में मुख्य रूप से फॉरबिडेन सिटी और चीन की महान दीवार घूमने गए। मित्रों ये अनुभव मेरे लिये बहुत अच्छा रहा। वैसे तो पहले भी मैं फॉरबिडेन सिटी की यात्रा कर चुका हूं लेकिन विस्तृत रूप से फॉरबिडेन सिटी के दर्शन करने का मौका मुझे भारतीय दल के साथ ही मिला। यहां पर मैं एक बात आपको बता दूं कि जैसे भारत में हमारे ऐतिहासिक स्थलों का रख रखाव किया जाता है ठीक वैसे ही यहां पर भी चीनी प्रशासन अपने ऐतिहासिक स्थलों का रख रखाव करता है और समय समय पर पेंटिंग और टूट फूट की मरम्मत करता रहता है। फॉरबिडेन सिटी इतना बड़ा इलाका है कि यहां पर हर रोज़ करीब चार लाख पर्यटक घूमने आते हैं। ये महल लाल नीले पीले और न जाने कितने ही रंगों से भरा हुआ है और देखने में बड़ा ही आकर्शक लगता है। इस महल की दीवारें तो लाल रंग में रंगी हुई हैं और लकड़ी के दरवाज़ों पर पीतल के मोटे मोटे पत्तर चढ़ाए हुए हैं जिनपर विभिन्न डिज़ाइन बना हुआ है जो देखने में काफी आकर्षक लगता है। अपनी नज़रों को आप जैसे जैसे दीवार से ऊपर ले जाएँगे तो छत के निचले हिस्से पर नक्काशीदार लड़की का काम और विभिन्न रंगों की छटा देखते ही बनती है। फॉरबिडेन सिटी को देखने के लिये सुबह जल्दी आ जाना पड़ता है क्योंकि अगर चार लाख टिकट बिक गए तो उस दिन किसी और पर्यटक के अंदर जाने पर रोक लगा दी जाती है और इस महल को देखने के लिए आपको अपना पूरा एक दिन लगाना पड़ेगा। फॉरबिडेन सिटी में ढेर सारे छोटे छोटे महल और कमरे बने हुए हैं जिनमें राजा और उसकी ढेर सारी रानियां रहा करती थीं।
हम दोपहर बाद चीन की महान दीवार के दर्शन के लिये गए। बस से जैसे ही हमें महान दीवार दिखाई दी वैसे ही हम सभी उत्साह से भर उठे और जिन लोगों के पास कैमरे थे उन लोगों ने अपने कैमरों में इस दीवार के एक अंश को कैद करना शुरु कर दिया। बस से उतरने के बाद हमने मुख्य द्वार से दीवार जाने के लिये एंट्री ली और हमारा महान दीवार पर चढ़ने का काम शुरु हुआ। आपको बता दूं कि अगर आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो आप महान दीवार पर नहीं जा सकते क्योंकि यहां से दीवार तक पहुंचने के लिये बहुत चढ़ाई करनी पड़ती है। आप जब भी दीवार पर चढ़ने जाएं तो दोनों में से किसी एक किनारे को पकड़कर आगे जाएं, आपको बता दूं कि दोनों किनारों पर लोहे की रेलिंग लगी है और उसका सहारा लेकर ही आप अपनी दीवार की यात्रा शुरु करें। यहां कुछ जगहों पर चढ़ाई 60 डिग्री कोण के आसपास है।
महान दीवार से आप अपनी नज़र जहां भी दौड़ाएंगे आपको हर जगह हरे भरे पहाड़ दिखाई देंगे। साथ ही आपको दूर तक महान दीवार भी दिखाई देगी और जगह जगह पर दीवार पर बने हुए कंगूरे भी दिखाई देंगे जहां से पुराने समय में सैनिक नीचे जाते थे और जहां पर छोटी छोटी टुकड़ियों में सैनिक ड्यूटी बदलने के समय इकट्ठा होते थे। हमारे कुछ साथी तो महान दीवार की सबसे ऊंचाई वाली जगह पर भी चले गए। लेकिन कुछ साथियों को मैंने बड़ी मुश्किल से थोड़ी दूर जाते देखा। उनकी सांसें फूल गई थीं। जिसकी वजह से वो बहुत रुक रुक कर चढ़ रहे थे। कई भारतीय साथी अपनी फोटो खिंचवाने में मशगूल दिखे तो कुछ दीवार के साए में बैठे सुस्ताते रहे। महान दीवार देखने के लिये आपका शारीरिक तौर पर स्वस्थ होना बेहद आवश्यक है क्योंकि दीवार पर चढ़ाई के बाद अगले दिन तक शऱीर में दर्द रहता है। शाम ढलते ही दल के सभी लोग वापस लौट कर आ गए और हम बस के द्वारा रात को हम लोग एक्रोबेटिक्स देखने के लिये थियेटर आए और उसके बाद वापस होटल का रुख किया।
( पंकज श्रीवास्तव)