एपेक:एक साथ विश्व चुनौतियों का मुकाबला करें
पेरू की राष्ट्रपति दीना बोलुआर्ट के निमंत्रण पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग 13 से 17 नवंबर तक पेरू के दौरे पर हैं। इस दौरान शी चिनफिंग लीमा में आयोजित होने वाले एपेक नेताओं के 31वें अनौपचारिक सम्मेलन में भाग लेंगे।
वर्ष 2013 से शी चिनफिंग ने कई बार एपेक नेताओं के अनौपचारिक सम्मेलनों में भाग लिया या इसकी अध्यक्षता की। उन्होंने एशिया-प्रशांत साझे भविष्य वाले समुदाय की अवधारणा पर प्रकाश डाला और आपसी विश्वास, समावेशी, सहयोगी व साझा जीत वाले एशिया-प्रशांत साझेदारी का प्रवर्तन किया। इससे एशिया-प्रशांत सहयोग में चीन की बुद्धिमत्ता दिखाई गयी।
इससे पहले शी चिनफिंग ने एशिया-प्रशांत सहयोग के महत्व की चर्चा में कहा कि खुलापन एशिया-प्रशांत सहयोग की जीवन रेखा है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र का विकास एपेक के हर सदस्य के हितों से सम्बंधित है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक सहयोग से चीन को विकास के अधिक अवसर मिले, जबकि चीन अपने खुलापन से क्षेत्र के अंतःसंबधन भी बढ़ाता है।
एपेक अपनी स्थापना के बाद से हमेशा खुली विश्व अर्थव्यवस्था के निर्माण पर कायम रहता है। इससे पिछले 30 से अधिक सालों में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय चौगुनी से भी अधिक रही। एक अरब लोग गरीबी से बाहर निकले। औसत शुल्क स्तर 17 प्रतिशत से 5 प्रतिशत तक कम हुआ और विश्व आर्थिक वृद्धि में एपेक का योगदान 70 फीसदी तक पहुंचा। अब एशिया-प्रशांत क्षेत्र दुनिया में सबसे बड़ी जीवन शक्ति और निहित शक्ति वाला क्षेत्र बन गया है।
अब दुनिया में सदी का अभूतपूर्व परिवर्तन तेजी से हो रहा है। विश्व अर्थव्यवस्था के सामने कई जोखिम और चुनौतियां मौजूद हैं। वैश्विक विकास इंजन होने के नाते एशिया-प्रशांत क्षेत्र और बड़ी ज़िम्मेदारी उठाता है। पेरू, जापान और थाईलैंड समेत कई देशों के राजनयिकों और विशेषज्ञों को उम्मीद है कि वर्तमान एपेक सम्मेलन एशिया-प्रशांत सहयोग के लिये नयी योजना बनाएगा।
गौरतलब है कि एपेक की स्थापना वर्ष 1989 में हुई थी। अब इसके 21 सदस्य और 3 पर्यवेक्षक हैं। एपेक एशिया-प्रशांत क्षेत्र में उच्च स्तरीय, सबसे व्यापक और सबसे प्रभावशाली आर्थिक सहयोग व्यवस्था है। वर्ष 1991 में चीन एपेक का सदस्य बना।
(ललिता)