अमेरिका द्वारा चीन के प्रति टैरिफ बढ़ाने से खुद पर नुकसान पहुंचेगा
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय ने हाल ही में चीन के प्रति टैरिफ बढ़ाने के अंतिम कदमों की विज्ञप्ति जारी की।ऐसी एकतरफावादी और संरक्षणवादी कार्रवाई न सिर्फ दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच संपन्न समानताओं के विरुद्ध है, बल्कि अमेरिका की अविश्वसनीयता भी जाहिर है।
विश्लेषकों के विचार में अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाने के पीछे राजनीतिक तत्व स्पष्ट है। अमेरिकी आम चुनाव करीब आने के साथ अमेरिका के दो दलों की चुनाव लड़ाई तीव्र हो रही है। चीन के प्रति कठोर रूख दिखाना तथाकथित राजनीतिक है। हास्यास्पद है कि डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार ने टीवी की खुली बहस में रिपब्लिक पार्टी के उम्मीदवार की टैरिफ योजना पर आरोप लगाया, दूसरी तरफ डेमोक्रेटिक पार्टी सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम समय में चीन के प्रति टैरिफ बढ़ा दिया।
टैरिफ युद्ध से असली समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। सम्बंधित आंकड़ों के अनुसार अमेरिका द्वारा चीन के खिलाफ अतिरिक्त टैरिफ लगाने के बाद से अमेरिकी उद्यमों और उपभोक्ताओं का नुकसान 2 खरब 21 अरब अमेरिकी डॉलर को पार कर गया है। अमेरिकी सरकार अतिरिक्त टैरिफ बढ़ाने से अपने व्यवसायों की सुरक्षा करना चाहती है और व्यावसायिक चेन स्वदेश लाना चाहती है, लेकिन परिणाम उल्टा है ,क्योंकि ऐसी कार्रवाइयां आर्थिक नियम के प्रतिकूल है।
इस बार अमेरिकी सरकार ने चीन के नवीन ऊर्जा उद्योग को निशाना बनाया। लेकिन सम्बंधित अमेरिकी उद्यमों ने इसका विरोध और असंतोष व्यक्त किया है। अध्ययन से पता चला है कि इस से सम्बंधित अमेरिकी उद्यमों के आयात का खर्च बढ़ जाएगा और चीन पर निर्भरता का नीतिगत लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकेगा।
उल्लेखनीय बात है कि अतिरिक्त टैरिफ बढ़ाने से व्यापक अमेरिकी उपभोक्ताओं को अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। मूडीज कंपनी के हिसाब के अनुसार अमेरिकी उपभोक्ताओं ने चीन के प्रति अतिरिक्त टैरिफ का 92 प्रतिशत बोझ उठाया है।
इसके अलावा चीन के प्रति अतिरिक्त टैरिफ लगाने से अमेरिका की छवि को और नुकसान पहुंचेगा। क्योंकि डब्ल्यूटीओ ने फैसला सुनाया है कि अमेरिका का 301 टैरिफ अधिनियम डब्ल्यूटीओ के नियम के विरूद्ध है। दूसरी तरफ अमेरिका द्वारा चीन के प्रति बड़ा टैरिफ लगाने से वैश्विक व्यापार और आर्थिक वृद्धि पर गंभीर कुप्रभाव भी पड़ेगा।
(वेइतुंग)