साझे भविष्य के लिए सहयोग की ज़मीन तैयार करता एससीओ
लगभग एक साल पहले शांगहाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद की 23वीं बैठक में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने वैश्विक समुदाय से एक सवाल उठाया था : एकता या विभाजन, शांति या संघर्ष, सहयोग या टकराव-ये हमारे समय द्वारा फिर से उठाए गए प्रश्न हैं। ये सवाल प्रासंगिक बने हुए है क्योंकि दुनिया तेजी से भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक अनिश्चितता से गुज़र रही है।
इस संदर्भ में, कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए एससीओ का बढ़ता सहयोग और प्रतिबद्धता एक साथ काम करने के माध्यम से प्राप्त एकता और प्रगति का एक मजबूत उदाहरण है। यह क्षेत्र को सुरक्षित रखता है और संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप विश्व शांति, समृद्धि और दीर्घकालिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देता है। बढ़ते गुट टकराव और अलगाववादी प्रवृत्तियों से जूझ रहे विश्व में, एससीओ कनेक्टिविटी और सहयोग के साथ-साथ खुलेपन और समावेश की दृढ़ता के साथ वकालत करता है।
संयुक्त सैन्य अभ्यास, खुफिया जानकारी साझा करने और आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ से निपटने के लिए समन्वित प्रयासों के माध्यम से, एससीओ क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ाता है। इस सहकारी सुरक्षा ढांचे ने संघर्षों की क्षमता को कम कर दिया है और सभी सदस्य राज्यों के लिए एक सुरक्षित वातावरण को बढ़ावा दिया है।
जैसा कि एससीओ देश अपने सहयोग को बढ़ाते हैं, संगठन न केवल सुरक्षा और आर्थिक सहयोग के माध्यम से, बल्कि अपने सदस्य देशों के बीच आपसी समझ को बढ़ाकर क्षेत्रीय गतिशीलता को आकार देने में और भी बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
शैक्षिक आदान-प्रदान, पर्यटन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर, एससीओ बाधाओं को तोड़ने और विविध संस्कृतियों के बीच पुलों का निर्माण करने में मदद करता है।
एससीओ सदस्य राज्यों के विश्वविद्यालयों के एक नेटवर्क के रूप में जो अनुसंधान और शिक्षा पर सहयोग करते हैं, एससीओ विश्वविद्यालय शैक्षणिक और व्यावसायिक अवसरों को बढ़ाता है और भविष्य के नेताओं के बीच दीर्घकालिक सहयोग और सद्भावना के लिए एक आधार बनाता है।
जैसा कि दुनिया अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रही है, कनेक्टिविटी, सहयोग और बहुपक्षवाद के लिए एससीओ की दृढ़ प्रतिबद्धता एक अधिक सामंजस्यपूर्ण और समृद्ध भविष्य के लिए आशा की किरण प्रदान करती है।
(दिव्या पाण्डेय)